प्रेम या व्यापार – दूसरा अध्याय । Love or Trading part 2: Love Story in Hindi

प्रेम या व्यापार – दूसरा अध्याय । Love or Trading part 2:  Love Story in Hindi

प्रेम या व्यापार (Love or Trading part 2) एक प्रेम कहानी (Love Story in Hindi) है कात्यायनी की जो प्रेम या व्यापार (Love or Trading) के भंवर में अटकी अपने सवालों के जवाबों की तलाश पिछले 20 वर्षों से कर रही है। क्या उसे अपने सवालों के जवाब मिले, आइए जानते हैं इस प्रेम कहानी (Love Story in Hindi) में।

प्रेम या व्यापार के प्रथम अध्याय में अब तक आपने कात्यायनी के जीवन के बारे में पढ़ा जो प्रेम या व्यापार (Love or Trading) के भंवर में अटकी अपने सवालों के जवाबों की तलाश पिछले 20 वर्षों से कर रही है। इस कहानी को बढ़ाते हुए दूसरे अध्याय में यह जानने की कोशिश करते हैं कि कात्यायनी के वह कौन से सवाल थे, क्या उसे सवालों का जवाब मिले जिसे वह ढूंढ रही थी?

अगर आपने इस कहानी का प्रथम अध्याय नहीं पढ़ा है तो Love or Trading part 1 लिंक को क्लिक करके पढ़ सकते हैं।


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प्रेम या व्यापार – दूसरा अध्याय । Love or Trading part 2:A Heart-touching Love Story in Hindi

जैसे-जैसे कात्यानी घाट की तरफ बढ़ती जाती मन खुशी, क्रोध, डर और दुख की एक अजीब सी मिश्रित भावना से घिरता जाता। सूर्य देव अपने घर लौट जाने को उतावले हो रहे थे, और घाट पर संध्या आरती की तैयारी होने लगी।

चारों तरफ दीप और बल्ब की रोशनी में गंगाघाट की अद्भुत छटा बिखरी हुई थी। लोगों की भीड़-भाड़ बढ़ने लगी। आरती के लिए घाट पर आज भी लोगों में वही श्रद्धा, वही उत्साह देखा जो वर्षों पहले देखा था।

आसमान सिंदूरी रंग में नहा चुका था। पक्षियों का झुंड चह-चहाते हुए अपने घोंसले में वापस जाने के लिए उड़ान भर रहे थे। कात्यायनी की आंखें आज प्रकृति की इस अद्भुत अनुपम छटा को नहीं बल्कि अपने जीवन की अनमोल निधि… अपना प्यार… अपने रूद्र को ढूंढ रही थी।

आरती का समय हो गया था। घाट पर मंत्र और घंटे, घड़ियाल, शंख ध्वनि में सारा वातावरण डूब गया। भीड़ ज्यादा होने से कात्यानी रूद्र को नहीं ढूंढ पाई और निराश होकर वहीं एक कोने में बैठ गई। उसे ऐसा लगा जैसे आज उसने एक बार फिर से उसे खो दिया।

प्रकृति ने फिर उसका मजाक बनाया। वह आंखों में आंसू लिए गंगा में पड़ रहे आरती के प्रतिबिंब को देखते रही। जैसे-जैसे मंत्र कात्यानी के कानों में पड़ते ऐसा लगता की गंगा की धारा में वह भी बहती जा रही है। कात्यायनी ने अपनी आंखें बंद कर ली और स्वयं को उस दिव्य वातावरण में डूबने दिया। 

आरती समाप्त हो चुकी थी, लोग धीरे-धीरे अपने घरों की ओर प्रस्थान कर रहे थे। कात्यायनी के अंदर जैसे प्राण ही नहीं… निर्जीव वहीं बैठी रही। घाट आए सभी लोग जा चुके थे, जहां अभी थोड़ी देर पहले ही शंख और घंटे की ध्वनि में मां गंगा की धारा प्राण-दायनी लग रही थी, वहीं सन्नाटा गिरते ही मां गंगा की गर्जना डराने लगी, लेकिन कात्यायनी विवेक शून्य होकर वहीं बैठी रही।

आज उसे अपने अंदर कुछ महसूस नहीं हो रहा था। तभी किसी की आवाज ने उसमें चेतना का विस्तार किया। मेंमसाहब गाड़ी सामने सीढ़ियों तक ले आया हूं, घाट भी बिल्कुल खाली हो गया है, चलिए घर चलिए।

यह श्याम की आवाज थी, जो कात्यानी का ड्राइवर है। उम्र में कात्यानी से बहुत बड़ा इसलिए कात्यायनी उसे श्याम ना कह कर काका कहती है। कात्यायनी ने उसे ऐसे देखा, जैसे उसे पहचानती ही नहीं। उसके इस प्रकार देखने से ड्राइवर ने फिर से कहा… क्या हुआ मेंमसाहब, तबियत तो ठीक है ना?

कात्यायनी की आवाज भी ऐसा लग रहा था जैसे बहुत थकी हुई है, और बड़ी मुश्किल से बस इतना ही कहा कि नहीं काका सब ठीक है चलिए, और ड्राइवर के पीछे-पीछे चल दी। ऐसा लगा जैसे मीलों का सफर तय करके आई है, पैर उठते ही नहीं है।

शरीर में इतनी भी जान नहीं की सीढ़ियां चढ़ सके, जबान तालू में चिपक गए, आवाज तक नहीं निकल रही। काका ने जब कात्यानी की हालत देखी तो उसे सहारा देकर किसी तरह ऊपर ले आए और गाड़ी में बैठाया। पानी की बोतल कात्यानी की तरफ बढ़ते हुए बोले थोड़ा पानी पी लीजिए ।

कात्यायनी ने पानी पिया और आंखें बंद करके सीट पर अपना सर टीकाकार बैठ गई । ड्राइवर ने देर न करते हुए गाड़ी स्टार्ट कर दी और गाड़ी घर की तरफ तेजी से दौड़ा दी ।

सड़के भी खाली हो चुकी थी क्योंकि बाजार भी लगभग बंद हो चुका था। इक्का-दुक्का दुकान खुली थी, वह भी बंद हो रही थी। घर पहुंच कर काका ने गाड़ी दरवाजे पर खड़ी कर दी और दरवाजे के अंदर जाकर जोर से आवाज लगाई। मालती… ओ मालती… जल्दी आ… क्या कर रही है?

अंदर से एक अधेड़ उम्र की औरत लगभग दौड़ते हुए आई… क्या हो गया.. इतनी जोर से क्यों चिल्लाते हो… क्या बात हो गई? 

मेंमसाहब की तबीयत ज्यादा खराब हो गई है, जल्दी चल। काका ने मालती से कहा और जल्दी से गाड़ी के पास वापस आकर गाड़ी का दरवाजा खोलकर कात्यायनी को गाड़ी से निकलने में उसकी मदद करने लगे।

मालती कात्यायनी को उसके कमरे में छोड़कर जल्दी से रसोई की तरफ भागी और कात्यायनी के लिए खाना और दवाइयां का डिब्बा लेकर उसे कात्यायनी तक फिर वापस पहुंचाने में 5 मिनट भी नहीं लगा। मालती ने कात्यायनी को दवाइयां दी और कात्यायनी ने उसे खाने से मना कर दिया और सोने की इच्छा जाहिर की। 

मालती ने किसी तरह से उसे दवाइयां खिलाई और सोने दिया। 

सुबह कात्यायनी की नींद मालती की ही आवाज से खुली।  जो बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फेर रही थी और बड़े प्यार और अपनेपन से पूछ रही थी अब कैसी तबीयत है बिटिया? 

कात्यानी उसका स्नेह और ममता भरास्पर्श पाकर बच्चों की तरह सिमट गई और बोली ठीक हूं काकी… मुझे क्या हुआ है? तुम और काका तो बिना वजह परेशान होते हो।

अच्छा हम और काका नाहक ही परेशान होते हैं। अपनी तो सुध ही नहीं रहती तुझे… ना खाने की, ना पीने की, और ना ही समय पर दवाइयां लेने की और बोलती है, कि हम नाहक ही परेशान होते हैं।

बिटिया काम में खुद को इतना मत उलझा की अपना भी होश ना रहे। जान है तो जहान है समझी। चाल उठ… जा मुंह धो कर बाहर आजा। डॉक्टर साहब कब से बैठे हैं, तेरा इंतजार कर रहे हैं। मैं चाय लेकर आती हूं।

काकी डॉक्टर साहब को क्यों बुला लिया मैं मर थोड़े ही रही हूं। कात्यायनी ने हंसते हुए काकी को छेड़ा।

मरे तेरे दुश्मन। जब देखो यह लड़की फालतू की बकवास करती है, फिर से फालतू की बात की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा समझी। पता नहीं क्या समझती है अपने आप को। और मालती गुस्से से बडबडाते हुए चली गई। 

हेलो डॉक्टर कैसे हैं आप ?

हेलो कात्यानी मैं ठीक हूं, आप बताइए कैसा महसूस कर रही हैं?

श्याम काका का फोन रात को ही आ गया था, मैंने ही उन्हें दवाई देने को कहा था और थोड़ी देर में ही मैं भी आ गया था तब से इधर ही हूं।

सॉरी डॉक्टर… काका ने बिना वजह ही आपको परेशान किया। चेकअप के बाद डॉक्टर जा चुके थे और कात्यायनी भी अपने काम पर जाने के लिए तैयार होकर निकल चुकी थी। 

शाम होते-होते ना जाने क्यों कात्यायनी को ऐसा लगने लगा कि जैसे गंगा का वह घाट उसे बुला रहा है। जैसे कोई उसकी प्रतीक्षा कर रहा है। कात्यानी फिर शाम होते ही गंगा घाट पहुंच गई और चुपचाप किनारे पर बैठ गई। धीरे-धीरे भीड़ बढ़ने लगी आरती के सुंदर मंत्र में पूरा घाट डूब गया, और फिर धीरे-धीरे लोग आरती के बाद अपने अपने घर जाने लगे।

कात्यायनी ना चाहते हुए भी पता नहीं क्यों रोज शाम को घाट पहुंच जाती। घंटे अकेले शांत बैठी रहती, फिर वापस आ जाती। लेकिन न जाने अकेले होते हुए भी उसे अकेला क्यों नहीं लगता था। ऐसा लगता जैसे कोई उसके साथ है।

कुछ दिनों से कात्यायनी का यही रूटीन बना हुआ था। काम से फ्री होते ही वह घाट पहुंच जाती और घंटो अकेले बैठी रहती फिर घर वापस आती।

कात्यायनी का आजकल बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था, किसी भी काम में। इधर कई दिनों से वह घाट पर नहीं जा पा रही थी, क्योंकि काम ज्यादा होने से वह शाम को निकाल नहीं पाती थी।

कात्यायनी इंटीरियर डिजाइनर है, और उसे बनारस के तीन चार बड़े होटल के इंटीरियर के लिए मुंबई से बुलाया गया था। त्यौहार का सीजन आने से पहले काम जल्दी खत्म करने का बहुत प्रेशर था।

 कई दिनों बाद जब कात्यानी घाट पर गई तो उसने देखा जहां एकांत में वह बैठा करती थी वहां कोई बैठा हुआ है। कात्यानी अंधेरे की वजह से उसे ठीक से देखा नहीं पाई और आगे बढ़ गई। तभी पीछे से आवाज आई कि, मुझे माफ कर दो कात्यायनी।

यह शब्द सुनते ही कात्यायनी जैसे वही पत्थर की मूरत बन गई। बहुत मुश्किल से उसने पीछे मुड़कर देखा तो रुद्र खड़ा था। वहीं जहां वह एकांत में बैठा करती थी। रुद्र तुम…. कात्यायनी जैसे खुद को रोक नहीं सकी और आज रुद्र को अचानक अपने सामने देखकर रो पड़ी।

इन आंसुओं ने आज उसके अंदर के तूफान को शांत कर दिया। दोनों एक दूसरे का हाथ थामें घंटे तक रोते रहे… दोनों ने किसी से कुछ नहीं कहा। 

रूद्र ने कात्यानी को संभाला और कहा कात्यानी मैं तुम्हारी माफी के लायक तो नहीं हूं, लेकिन फिर भी तुमसे माफी मांगना चाहता हूं। तुम्हारा साथ छोड़ने के लिए, तुम्हें वह घटिया शब्द कहने के लिए। आज भी मैं तुम्हारे आंसुओं की अग्नि में चल रहा हूं, जो उस दिन मेरी वजह से तुम्हारी आंखों में आए। मुझे माफ कर दो कात्यायनी। वर्षों बाद तुम्हें देखकर मैं अपने आप को रोक नहीं पाया।

हमेशा सोचता रहा कि, तुमसे माफी मांगू लेकिन कभी हिम्मत ही नहीं हुई। लगता था कि किस मुंह से तुमसे माफी मांगू, मैं तो तुमसे बात करने लायक भी नहीं हूं। यह वही जगह है कात्यायनी जहां मैंने तुम्हारा दिल तोड़ा, तुम्हें रोता हुआ छोड़कर चला गया। यह भी नहीं सोचा कि तुम पर क्या बीतेगी, कैसे संभालोगी अपने आप को। तुम मेरे किये कि जो भी सजा देना चाहो दे सकती हो आखिर मैं तुम्हारा गुनहगार हूं।

कात्यायनी: रूद्र मैं बस इतना जानना चाहती हूं कि तुमने ऐसा क्यों किया? क्या तुम्हारी लाइफ में कोई और आ गई थी या तुमने पैसों की वजह से मुझे छोड़ा? और अगर तुम्हें मुझसे प्यार नहीं था तो इतने दिनों तक यह नाटक क्यों करते रहे? प्यार करने का दिखावा क्यों किया? 

रुद्र: प्लीज ऐसा मत बोलो कात्यायनी, मेरी लाइफ में तुम्हारे सिवा कोई नहीं था, नहीं है, और ना कभी होगा। और मैंने तुम्हारा दिल अपने परिवार की वजह से तोड़ा। मेरे परिवार वाले नहीं चाहते थे कि हम साथ रहे। मैंने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन, कोई मेरी सुनने को तैयार नहीं था।

घर का इकलौता लड़का, चार बहनों का अकेला भाई, और मां ने तो कसम खा ली कि जब तक मैं तुमसे अपना रिश्ता खत्म नहीं करूंगा तब तक वह ना कुछ खाएंगी ना कुछ पियेंगी। जिसकी वजह से उनकी तबीयत बहुत बिगड़ गई और उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा। मैं मजबूर हो गया था हालात के कारण, मुझे मजबूरन वही करना पड़ा जो मैं कभी नहीं करना चाहता था।

कात्यानी: तो रुद्र तुमने यह क्यों कहा था कि तुम अपनी मां की पसंद की लड़की से शादी करना चाहते हो?

रुद्र: तो क्या कहता तुमसे? कैसे समझता बताओ? मैं कभी तुम्हारे लायक था ही नहीं?

मां को यही लगता था कि यह सब उम्र का आकर्षण है, समय के साथ सब ठीक हो जाएगा। लेकिन तुमसे दूर होकर मेरा प्यार और भी बढ़ता गया तुम्हारे लिए।

कात्यायनी: तुम्हारे परिवार वाले कैसे हैं? सब लोग ठीक है ना?

 रुद्र: अब कोई नहीं मेरा, बस हॉस्पिटल के मरीज और मैं। बहनों की शादी हो गई, मां और पिताजी का स्वर्गवास हो गया है। तो बस हॉस्पिटल के लोगों का दुख दूर करके ही खुश हो लेता हूं। उनकी ही दुआ लगी होगी जो आज मुझे तुमसे माफी मांगने का मौका मिला।

कात्यायनी: ऐसा मत कहो रूद्र, लेकिन मुझे खुशी इस बात की है कि हम दोनों ने जो सपना देखा था तुम्हारे लिए, वह तुमने पूरा किया। तुम डॉक्टर बन गए यह सुनकर बहुत अच्छा लगा।

रुद्र: कात्यायनी तुमसे एक बात पूछूं?

कात्यायनी: हां पूछो क्या बात है?

रुद्र: तुम्हारी शादी हो गई है, और कहां रहती हो तुम? मैं तो तुम्हारे घर कितनी बार गया, लेकिन वहां किसी को कुछ नहीं पता कि तुम अपने परिवार के साथ कहां चली गई। तुम्हें ढूंढने की बहुत कोशिश की लेकिन शायद मेरी किस्मत ही खराब थी।

कात्यायनी: हां मेरी शादी तो हो गई है?

रुद्र: तुम्हारे पति कहां है कब मिलोगे?

कात्यायनी मुस्कुराते हुए… मैने तो तुम्हारी यादो से ही शादी कर ली है, और उससे मिलने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं। रुद्र… “ प्रतीक्षा, प्रेम की सबसे मजबूत कड़ी है, मैंने तुमसे वादा किया था इस जन्म से उसे जन्म तक, और आने वाले हर जन्म में तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी।

प्यार का पूर्ण होना यह नहीं होता कि तुम मुझे मिल जाओ, बल्कि यह पूरा तब होगा जब तुम्हारी प्रतीक्षा में एक खुशी मेरी आंखों में झलकती रहे, मन बेचैन रहे, और तुम्हें पाने की तुमसे मिलने की चाहत दिन प्रतिदिन बढ़ती रहे। प्रेम की वेदना सहे बिना प्रेम पूर्ण नहीं होता,और रुद्र प्रेम मन में रखने के लिए ही नहीं, जताने के लिए भी होता है।”

अब और प्रतीक्षा नहीं करवाओ।

रूद्र ने भी मुस्कुराते हुए अपनी बाहे फैला दी और कात्यानी उसमें बच्चों की तरह सिमट गई। दोनों का वर्षों का इंतजार आज खत्म  हुआ और उनका प्रेम भी पूर्ण।

मां गंगा की पवित्र धारा और आसमान में झिलमिलाते तारे आज इस सच्चे प्रेम का गवाह बने। कात्यायनी और रुद्र के प्रेम को देखकर आज यह महसूस हुआ की प्रेम कभी व्यापार (love can not be a trade) नहीं हो सकता। क्योंकि जो लोग छल में रहते हैं, वह प्रेम नहीं समझते, और जो प्रेम में रहते हैं, वह छल नहीं समझ पाते।


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आँचल बृजेश मौर्य चाय के पल की संस्थापक के साथ-साथ इस वेबसाइट की प्रमुख लेखिका भी है। उन्होंने ललित कला (फाइन आर्ट्स – Fine Arts) में स्नातक, संगीत में डिप्लोमा किया है और एलएलबी की छात्रा (Student of LLB) है।ललित कला (फाइन आर्ट्स) प्रैक्टिस और अपनी पढ़ाई के साथ साथ, आंचल बृजेश मौर्य विभिन्न विषयों जैसे महिला सशक्तिकरण, भारतीय संविधान, कानूनों और विनियमों इत्यादि पर ब्लॉग लिखती हैं। इसके अलावा उनकी रुचि स्वरचित कहानियां, कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां इत्यादि लिखने में है।

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