लगाव। Lagaav or Bonding: A Hindi Kahani on Importance of Building Bonds with Child
Lagaav or Bonding एक ऐसी कहानी है जो याद दिलाती है की हम सोसाइटी और आधुनिकता के चक्कर में चीजें अपना तो लेते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि उसका क्या प्रभाव हमारे जीवन पर हो रहा है। ऐसा क्या हुआ सुबोध और मालिनी के बच्चे के साथ, आइए जानते हैं इस Hindi Kahani में।
लगाव। Lagaav or Bonding: Hindi Kahani or Short Story in Hindi
“आज देवांश की तबीयत ठीक नहीं, पता नहीं क्यों रोए जा रहा है? चलिए डॉक्टर को दिखा देते हैं” मालिनी ने परेशान होते हुए कहा । “बुखार तो नहीं लग रहा है” सुबोध [मालिनी के पति] ने बच्चे को स्पर्श करते हुए कहा ।
“बुखार तो नहीं है लेकिन कुछ खा पी नहीं रहा है । मेरी तो समझ में नहीं आ रहा है कि क्या परेशानी है । शायद पेट में दर्द हो रहा होगा यही सोच कर मैंने पेट दर्द की दवा भी दे दी लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा”। मालिनी ने देवांश को शांत कराने की कोशिश करते हुए कहा ।
सुबोध भी बच्चे को लगातार रोता देख परेशान हो गए और बोले “मां कहां हैं? थोड़ी देर मां को दे दो, शायद शांत हो जाए मां से”।
“मां… ताई जी के घर गई है, मैंने फोन किया है आती ही होंगी” मालिनी ने कहा ।
“क्या हुआ बहु… क्यों रो रहा है देवांश, जरा मुझे देना इधर” सुबोध की मां ने घर में प्रवेश करते ही कहा ।
“पता नहीं मां क्यों रो रहा है, समझ नहीं आ रहा है”
“बेटा तो डॉक्टर को दिखाओ, हो सकता है कुछ परेशानी हो, इतना छोटा बच्चा कैसे बताएगा। सुबोध जाकर गाड़ी निकालो, हॉस्पिटल चलना है”।
जी मां, आप सही कह रही हैं, इतना तो कभी नहीं रोता था । सभी घबराए हुए बच्चे को लेकर हॉस्पिटल पहुंचे डॉक्टर को दिखाने ।
डॉक्टर ने बच्चे को चेक किया, फिर थोड़ी देर अपनी गोद में उठाकर टहलाया और उसे समझने की कोशिश करने लगी । बच्चा बार-बार दरवाजे की तरफ देख रहा था और हाथ बढ़ा कर रो रहा था, जैसे किसी को बुला रहा हो । डॉक्टर ने उसे बहलाने की और भी चीजें, रंग बिरंगे खिलौने, गुब्बारे इत्यादि दिखाएं लेकिन वह बाहर की तरफ ही हाथ बढ़ाता और रोने लगता ।
तभी डॉक्टर ने पूछा कि बच्चा सबसे ज्यादा किसके पास रहता है ।
मालिनी और सुबोध को कुछ समझ नहीं आया । वह बोले डॉक्टर हम समझे नहीं, आप क्या पूछना चाहती हैं ।
डॉक्टर ने कहा “मैं जानना चाहती हूं बच्चे को घर पर कौन संभालता है?”
“बच्चे के लिए नैनी रखी है, वहीं देखभाल करती है । दिन भर उसी के साथ रहता है” मालिनी ने कहा ।
“अच्छा तो आप दोनों वर्किंग हो” डॉक्टर ने पूछा ।
“डॉक्टर, मैं वर्किंग हूं मालिनी नहीं” सुबोध ने जवाब दिया ।
तो क्या मालिनी जी, आपको कोई हेल्थ इश्यू है ।
नहीं डॉक्टर, मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है ।
“तो बच्चे के लिए नैनी क्यों रखी है? और अगर रखी भी है तो बच्चे के वर्क के लिए रखिए । नैनी नहीं आई है क्या आज?” डॉक्टर ने पूछा ।
“नहीं डॉक्टर, वह अपने गांव चली गई है, अब नहीं आएगी । हम दूसरी नैनी ढूंढ रहे हैं इसके लिए” सुबोध ने जवाब दिया ।
“आपको पता है बच्चा क्यों रो रहा है?” डॉक्टर ने मालिनी और सुबोध से पूछा ।
“नहीं डॉक्टर! हमें समझ नहीं आ रहा है, इसीलिए तो आपके पास आए हैं । हमें लगा उसकी तबीयत खराब है” मालिनी ने कहा ।
“नहीं, बच्चे का हेल्थ ठीक है, उसमें कोई प्रॉब्लम नहीं है। आपका बच्चा अपनी नैनी को मिस कर रहा है, उसे नैनी के पास जाना है। अगर वह बोल पाता तो आपसे कह सकता था लेकिन छोटे बच्चों की भाषा उसकी बॉडी लैंग्वेज होती है। क्या आपने नोटिस किया उसे, वह बार-बार दरवाजे की तरफ देखकर हाथ बढ़ाता है और रोता है । जिसके साथ दिन के 12 से 14 घंटे रहता है अचानक से वो उससे दूर हो जाए तो उसकी याद आना स्वाभाविक है ।
हमारे लिए वह बच्चे की सर्वेंट है, लेकिन बच्चे के लिए उसकी पूरी दुनिया होती है । क्योंकि बच्चे जिसके साथ ज्यादा समय रहते हैं उसके साथ उनका लगाव (lagaav or bonding) होना स्वाभाविक है ।
मेरी तो यही सलाह है कि अगर आप वर्किंग नहीं है तो बच्चे को पूरा समय दें । उसके अतिरिक्त काम के लिए आप नैनी रखें, लेकिन बच्चे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत करें । बच्चे का माता-पिता से लगाव (lagaav or bonding) होना बहुत जरूरी है” डॉक्टर ने मालिनी और सुबोध को समझाने की कोशिश की ।
हम सोसाइटी और आधुनिकता के चक्कर में चीजें अपना तो लेते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि उसका क्या प्रभाव हमारे जीवन पर हो रहा है ।
शायद आप सही कह रही हैं डॉक्टर, हमें अपनी गलती का एहसास हो गया है। अब हम बच्चे को पूरा समय देंगे ताकि बच्चे का हमसे लगाव (lagaav or bonding) हो सके और आगे कोई ऐसी प्रॉब्लम ना हो । थैंक्यू डॉक्टर…
दोस्तों आपकी क्या राय है इस विषय पर, कमेंट करके जरूर बताइएगा…
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