आलोचना। Criticism: A Hindi Story of Two Women’s Views on Marriage Arrangements

आलोचना। Criticism: A Hindi Story of Two Women’s Views on Marriage Arrangements

आलोचना (Criticism) शायद हमारे जीवन का एक हिस्सा है और यह हमने कभी ना कभी जरूर अनुभव किया होगा। अच्छी आलोचना (Good or Constructive Criticism) हमें सुधारने और बढ़ने में मदद कर सकती है जबकि नकारात्मक आलोचना (Negative Criticism) हमारे आत्मविश्वास को कम कर सकती है।

इस कहानी (Short Story in Hindi) के माध्यम से हम अपने समाज में वैवाहिक आलोचना (Criticism) पर एक नज़र डालेंगे ।

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जीजी तुम कल गए रही के शादी में, मैं तो ना जा पाई। जीजी कल ये बड़ी रात गए आये। और पड़ोस में भी शादी है रही तो हम वहीं चले गए। वह लोग भी कई बार कह गए रहे आने को सो जाना पड़ा।

जी यह सुबह की सैर पर, आज का हॉट टॉपिक था। मुझे सुबह की सैर बहुत पसंद है। वह भी गुलाबी ठंड के मौसम में तो मेरा घर लौटने को जी नहीं चाहता। सब तरफ सुंदर फूल।

चारों तरफ खिले फूलों को देख कर ऐसा लगता है, जैसे धरती पर किसी ने रंग बिरंगी सुंदर सी चादर फैला दी हो। फूलों की सुगंध से तो वातावरण ही नहीं, मेरी तो आत्मा तक सुगंधित हो जाती है।

सुबह की ठंडी हवा ऐसी जगा देती है, जैसे वर्षों तक आपको सोने की इच्छा ही ना हो । चिड़ियों की चहचहाहट किसी सुंदर संगीत सी लगती है। नहीं तो इस भागती जिंदगी में कान फाड़ गाड़ियों की ध्वनि के अलावा कुछ नहीं सुनाई देता ।

कभी-कभी तो इन कान फाड़ गाड़ियों के ध्वनि से तो ऐसा जी घबराने लगता है, कि मन तो करता है, फिर से वर्षो पुराने समय में लौट जाएं । नन्ही-नन्ही ओस की बूंदें ऐसी लगती है, जैसे घास पर किसी ने मोतियां बिखेर दिए हो ।

हरसिंगार के नारंगी, सफेद फूलों की जमीन पर बिछी चादर पर मन मोहित हो उठता है। लगता है जैसे स्वयं वनदेवी आई थी और उनके स्वागत में यह सारे पुष्प बिछ गए हो।

हरसिंगार सदैव से मुझे मोहित करता रहा है। उसकी खुशबू में ऐसा मन डूब जाता है, कि लगता है उसकी चादर बनाकर लपेट लू । जैसे तपती गर्मी में बारिश की बूंदे धरती को ठंडक पहुंचाती हैं वैसे ही हरसिंगार के पुष्पों की महक से मुझे प्रतीत होता है।

आज सुबह पार्क में सैर करते- करते रुक कर प्रकृति की ये अद्भुत छटा देखने की इच्छा हुई । वही हरसिंगार के पेड़ों के पास लगी एक बेंच पर बैठकर, आंखों को बंद कर एक सुकून का अनुभव कर रही थी की दो महिलाओं की बातें कानों ने अनायास ही सुन ली ।

वो भी पास में पड़े बेंच पर आ बैठी थी, और आपस में बातें कर रही थी। किसी के विवाह की चर्चा हो रही थी। दोनों की उम्र लगभग 40 से 45 की रही होगी । दोनों की भाषा थोड़ी अलग थी, लेकिन समझने योग्य थी। भाषा में कुछ पूर्वी पुट भी झलक रहा था । और आवाज तो इतनी स्पष्ट थी, कि जैसे वह मेरी ही बेंच पर बैठी हो, इसलिए ना चाहते हुए भी कान उनकी तरफ चले गए।

एक ने पूछा दीदी तुम कल शादी में गई थी क्या ? हम लोग तो नहीं जा पाए। कल तो वह देर से घर आए थे। और हमारे पड़ोस में भी एक शादी थी तो वहां भी जाना था, इसलिए नहीं जा पाए हम लोग । कैसी रही शादी, सब ठीक था ?

क्या ठीक था सुमन, अच्छा ही हुआ जो तुम लोग नहीं गए वहां।

क्या हुआ जीजी, बताओ तो………….

अरे सुमन हम तो कह रहे हैं कि जब स्वागत सत्कार करना ही ना हो तो क्या जरूरत है बुलाने की । वहां किसी को फर्क ही नहीं पड़ रहा था, कौन आ रहा है, कौन जा रहा है।

अरे जीजी… शर्मा भाई साहब है भी अकेले, दो बेटियां ही तो है।  कौन देखें, हो गया शादी बस और क्या । उनकी बेटी का तो रिश्ता ही कहां हो रहा था, कैसे-कैसे करके तो हुआ है ।

हां सुना तो मैंने भी था। लेकिन जब रिश्ता इतना मुश्किल से हुआ है, तो व्यवस्था भी तो अच्छी होनी चाहिए। ताकि कोई उंगली ना उठा सके, कल को लड़की के ससुराल वाले ही ताने देने लगे तो क्या होगा।

हां जीजी यह तो है, लेकिन क्या सच में कुछ व्यवस्था नहीं थी?

नाश्ते में वही पानीपुरी, चाउमीन, टिक्की यह सब वही पुराने जमाने का नाश्ता। ना खाने की वैरायटी, ना ड्रिंक में, वही सब घिसा पिटा मेंन्यू था और क्या।

भाई, शादी का मेंन्यू तो मेरी बड़ी बहन की बेटी में मैंने देखा था। नाश्ते का इतना काउंटर कि, नाश्ता करते-करते ही पेट भर जाए । और खाने का तो पूछो ही मत, मैंने तो इतनी डिश के नाम भी नहीं सुने थे। जितने मेहमान नहीं उससे ज्यादा तो वेटर रखे थे उन्होंने, सबका ध्यान रखने के लिए। प्लेट में जरा सी जगह होती नहीं कि वेटर खुद ही कुछ ना कुछ रख जाता । शादी में इतना खर्च किया कि लोगों की आंखें फटी रह गई।

सच जीजी …………… 

और नहीं तो क्या, अरे भाई लड़का भी तो अफसर खोजा है।  तो खर्चा तो करना ही पड़ेगा।

हा जीजी यह बात सही है…………

अच्छा रिश्ता मिल गया सो करके गंगा नहा ली मेरी बहन भी । लड़की का ग्रेजुएशन होने वाला था । उम्र भी तो हो गई थी शादी की, देर हो जाती तो रिश्ता मिलने में दिक्कत होती है।

लेकिन जीजी मैंने तो सुना शर्मा जी ने भी अच्छा खर्चा किया शादी में । शादी का वेन्यू भी तो अच्छा था।

अरे कुछ अच्छा नहीं था, स्टेज तो ऐसा था कि चार लोग ठीक से खड़े नहीं हो सकते। खाक अच्छा था ।

तभी एक 14-15 साल की लड़की उधर से टहलते हुए निकली। दोनों महिलाओं को देखकर उसने तुरंत उन्हें प्रणाम किया । उसके प्रणाम करते ही एक ने कहा खुश रहो प्रिया, तो दूसरे ने कहा जल्दी से अच्छा घर-वर, मिले सुखी रहो। आज स्कूल नहीं गई क्या?

नहीं आंटी… परीक्षा की तैयारी के लिए छुट्टियां हुई है, तो स्कूल नहीं जाना है। इसलिए सोचा आज बाहर टहल लूं, फिर कोचिंग भी जाना है।

अच्छा कोचिंग चल रही है क्या अभी?

हां आंटी ………….. ठीक है मैं चलती हूं, नहीं तो लेट हो जाऊंगी, प्रणाम आंटी।

ठीक है बेटा जाओ…………….

लड़की के जाते ही दोनों महिलाएं शादी के मैन्यू से हटकर उस लड़की पर आ गई । अब उनकी बातों का टॉपिक वह बेचारी 14 साल की छोटी बच्ची थी ।

जीजी कितनी बड़ी हो गई है प्रिया और रंग रूप भी ठीक है। अच्छी लड़की है कभी इधर उधर घूमते नहीं देखा।

तू भी ना सुमन पता नहीं कहां रहती है, देखा नहीं क्या… कैसे कैसे कपड़े पहनती है।

इतनी बड़ी लड़की को कौन घर में बिठा कर रखता है । जवान हो गई है, शादी ब्याह करके अपने घर भेजो। पता नहीं क्या शौक पाल लेती है आजकल की लड़कियां, कहीं कोई ऊंच-नीच हो गई तो मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे ।

इससे ज्यादा उनकी बातें सुनी नहीं गई। ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई मेरा गला घोट रहा है। अब फूलों की महक भी अजीब सी तीखी लग रही थी । उनकी बातों से मन में क्रोध उत्पन्न होने लगा।

तभी वह दोनों महिलाएं गेट की तरफ बढ़ गई, क्योंकि गेट पर सब्जी और फल के ठेले वाले आने लगे थे और लोगों की गहमागहमी उधर बढ़ गई थी। शायद इन्हें भी कुछ लेना होगा, इसलिए वह भी उधर चल दी।

लेकिन उनकी बातों से अंदर का विरोधी स्वभाव जागृत हो गया। जिसे शांत करना मेरे लिए आसान नहीं होता। बार-बार मन में सवालों की झड़ी लग रही थी, इन सब बातों का क्या महत्व था?

एक पिता अपने जीवन की सारी जमा पूंजी खर्च कर रहा है, अपने बेटी के विवाह के लिए। इन जैसे लोग जिन्हें विवाह के इंतजाम में, तो कभी साथ सजावट में, कभी खाने- नाश्ते में कमी लगती है, विवाह में जाते ही क्यों  हैं। 

नव युगल को आशीर्वाद देने या कमियां निकालने या खाना टेस्ट करने । खाना क्या हम अपने घर में नहीं खाते? या वहां फोटो खिंचवाने जाते हैं। सहयोग की दृष्टि से तो आजकल लोग विवाह में जाते ही नहीं, ना उनके मन से आशीर्वाद ही निकलते होंगे।

लेकिन एक बात जानने की इच्छा जरूर है मन में कि हम अपनी जमा पूंजी अपनी बेटी की विवाह के लिए खर्च करते हैं।  विवाह में अच्छे से अच्छा सब हो इसके लिए अपने और अपने परिवार की कितनी इच्छाएं, कितने सपने नहीं पूरे करते ।

बेटी के पैदा होते ही उसकी विवाह की चिंता करने लगते हैं।  क्या वही जमा पूंजी हम अपनी बेटी के शिक्षा, उसके स्वास्थ्य, और उस को आत्मनिर्भर बनाने में खर्च करें, तो उसे अच्छा जीवनसाथी स्वयं मिल जाएगा ।

लोग जब आशीर्वाद देते हैं तो लड़कियों को कहते हैं सुखी रहो, अच्छा घर-वर मिले । और अगर वह शादीशुदा है तो कहेंगे घर-संसार बना रहे।  वही कोई लड़का हो तो उसे कहेंगे यशस्वी भव, खूब तरक्की करो, नाम कमाओ, आगे बढ़ो।

यही आशीर्वाद लड़कियों को क्यों नहीं देते यशस्वी भव, तरक्की करो?

समाज ने हमें नहीं, हमने समाज को बनाया है तो समाज का दृष्टिकोण भी तो हमें ही बदलना होगा। विवाह पर होने वाला खर्च अगर बच्चों पर हो तो एक बेहतर कल जरूर होगा।

सैर से लौटते समय रोज जितनी ताजगी और प्रसन्नता का अनुभव होता था। इस समय उतना ही दुख और क्रोध का अनुभव हो रहा था। दुख इस बात का कि हमारी मानवता कितनी छोटी, विचार कितने खोखले ,और दूषित होते जा रहे हैं। जो किसी का सहयोग करने की जगह उसकी आलोचना (Criticism) करने लगे हैं। ऐसे विचार हमें कहां ले जाएंगे।

और क्रोध इसलिए कि अगर समय रहते इस तरह की समस्या का समाधान नहीं निकला, तो यह समस्या इतनी प्रचंड हो जाएगी कि यह एक कुप्रथा में बदल सकती है। इसलिए अपने अंदर की मानवता न मरने दें।

 इस प्रसंग के बाद मन इतना थका रहा कि कई दिनों तक सुबह की सैर पर जाने की इच्छा नहीं हुई। लेकिन सुबह की ठंडी हवा, फूलों की भीनी महक, ओस की चमकती बूंदे फिर से अपनी ओर आकर्षित करने लगी है।


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आँचल बृजेश मौर्य चाय के पल की संस्थापक के साथ-साथ इस वेबसाइट की प्रमुख लेखिका भी है। उन्होंने ललित कला (फाइन आर्ट्स – Fine Arts) में स्नातक, संगीत में डिप्लोमा किया है और एलएलबी की छात्रा (Student of LLB) है।ललित कला (फाइन आर्ट्स) प्रैक्टिस और अपनी पढ़ाई के साथ साथ, आंचल बृजेश मौर्य विभिन्न विषयों जैसे महिला सशक्तिकरण, भारतीय संविधान, कानूनों और विनियमों इत्यादि पर ब्लॉग लिखती हैं। इसके अलावा उनकी रुचि स्वरचित कहानियां, कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां इत्यादि लिखने में है।

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