आवाज़ दो। Aavaaz Do: Swarachit Deshbhakti Poem in Hindi
“आवाज़ दो – Aavaaz Do” एक स्वरचित देशभक्ति कविता है जो देशभक्ति के उत्साह को प्रतिध्वनित करती है। भावनाओं को जगाने वाले और हमारे राष्ट्र के लिए प्रेम को प्रेरित करने वाले मनोरम छंदों में डूब जाएं। इस हार्दिक कविता के शब्दों को अपने भीतर गूंजने दें, क्योंकि यह आपको अपनी आवाज उठाने और भारत के गौरव के लिए एकजुट होने के लिए प्रोत्साहित करती है।
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और जानवर से सस्ता, इंसान यहाँ हो गया। उठो अब… आवाज़ दो देश को जगाने में तुम साथ दो आवाज़ दो…
इक आवाज के बदले आज तुमसे
डरी ये सरकार है,
क्योंकि संवाद के बदले तुमपे
कर रही वार है।
कब तक सोओगे, अब वक्त बुरा आया है। हाँथों में तिरंगा उठाने का, यही समय आया है।
इंसान हो तो इंसानियत की पहचान दो।
गर चूड़ियाँ नहीं हाथो में तो,
उठो और… आवाज़ दो।
साथ उठ चलो और,
जहाँ को पुकारते चलो।
किस सोच में पड़े हो,
आवाज दो... आवाज दो।
आवाज़ दो,
किस सोच में पड़े हो तुम।
आज फिर से सोच लो,
किस्सा ये, तुम्हारे शख्सियत का देख लो।
आवाज़ दो,
कहाँ छुपे हो, आवाज़ दो।
ना दोगे आवाज़ तो,
इंसान कहाँ कहलाओगे,
ना पूँछोगे सवाल तो,
जवाब कहाँ पाओगे।
गांधी, पटेल, आजाद पे- जो गुमराह करते रहे। उनसे भी गर डरोगे तो, नामर्द ही कहलाओगे। आवाज़ दो...किस सोच में…
सरकार से सवाल पूछना,
देशद्रोह हो गया।
धारा 124(A), इंसानियत
से बड़ा हो गया।
जानने को अपना हक़
Anti-National हो गया...
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