बहू बेटा – Bahoo Beta। Inspirational Family Story in Hindi

बहू बेटा – Bahoo Beta। Inspirational Family Story in Hindi

Bahoo Beta एक ऐसी Hindi Kahani है जो हमारे समाज में औरतों की स्थिति को दर्शाती है। हमारे समाज में बचपन से ही लड़कियों को लोग सिखाने लगते हैं कि तुम को तो किसी और के घर जाना है, यह घर तुम्हारा अपना नहीं। शादी के पहले पिता का और भाई का घर होता है, शादी के बाद पति का, और बुढ़ापे में बेटे का। इन्हीं सब पहलुओं से जूझती आकांक्षा की यह कहानी है। यह जानते हैं क्या है आकांक्षा की कहानी।

बहू बेटा – Bahoo Beta। Hindi Kahani of a Women who is Struggling to Odd Thinking:

आकांक्षा… मेरी टाई कहां है, कब से ढूंढ रहा हूं? और अभी तक मेरी ग्रीन टी नहीं लायी ।

लाई जी…….. आपकी टाई वही ऊपर अलमारी में रखी है और आपकी ग्रीन टी बना रही हूं ।

अभी तक बना रही हो, क्या कर रही थी सुबह से? जल्दी ऊपर आकर मेरी टाई निकालो, पता नहीं कहां रखी है?

बहू बेटा मेरी चाय कहां है, आज बिना चाय के अखबार पढ़नी पड़ेगी क्या? अभी लाई पिताजी………

यह है हमारी आकांक्षा, जिसका घर रोज सुबह-सुबह किसी लड़ाई के मैदान से कम नहीं होता। मानसी जी [आकांक्षा की सास] की तबीयत जब से ज्यादा खराब रहने लगी, तब से घर की सारी जिम्मेदारियां आकांक्षा के ऊपर आ गई । बच्चा भी अभी छोटा सिर्फ 1 साल का है तो उसकी देखभाल, घर के सारे काम, मानसी जी की देखभाल, समय पर दवाइयां, समय पर खाना और यहां तक की बाजार से सामान लाने की जिम्मेदारी भी आकांक्षा की ही है ।

बहू… दूध का बर्तन देना जरा तो, दूध वाला आया है, मैं ले लेती हूं । अरे मां… आप क्यों उठकर आई, मैं जा ही रही थी लेने । आप चलिए कमरे में आराम करिए, मैं ले लूंगी । मानसी जी को रसोई में आया देख आकांक्षा ने कहा ।

मानसी जी हार्ट पेशेंट है, और अभी कुछ दिनों पहले ही उन्हें हार्ट अटैक आया था तो डॉक्टर ने ज्यादा से ज्यादा आराम करने के लिए कहा है । इसलिए मानसी जी पहले की तरह आकांक्षा की मदद भी नहीं कर पाती है ।

आकांक्षा जब देव से शादी करके आई तो मानसी जी से हमेशा डरी डरी रहती थी । लेकिन मानसी जी के हंसमुख और सौम्य स्वभाव के कारण आकांक्षा का सास के प्रति डर खत्म हो गया और उसकी जगह प्रेम और मित्रता ने ले ली। आकांक्षा और मानसी जी सास-बहू कम और सहेलियां ज्यादा लगती थी ।

मां… आप बस राज को थोड़ी देर संभाल लीजिए, मैं सब देख लूंगी । आकांक्षा ने बच्चा मानसी जी को देते हुए कहा और फिर भाग-भाग कर सारे काम खत्म किए । देव [आकांक्षा का पति] ऑफिस, पिताजी टहलने और अपने मित्रों से मिलने चले गए । आकांक्षा अपनी चाय का कप लेकर मानसी जी के कमरे में आ गई । मां… राज सो गया क्या? हां बेटा सो गया, बैठो तुम मेरे पास इधर और यह सिर्फ चाय क्यों, तुम्हारा नाश्ता कहां है?

मां… अभी कुछ खाने का मन नहीं है । सुन बेटा… शरीर को मशीन मत बना, थोड़ा खुद को भी दो पल का समय दे । क्यों सबके पीछे इतना दौड़ती है, सब छोटे बच्चे थोड़े ही हैं । अपना काम खुद कर सकते हैं । मां आप क्यों परेशान हो रही है, छोड़िए यह सब बातें, बताइए आज लंच में आपके लिए क्या बनाऊं ? दलिया बना लो बेटा जल्दी बन जाएगा और तुम्हें भी थोड़ा समय मिल जाएगा अपने लिए ।

तभी दरवाजे से अंदर आते ही रमाकांत जी [आकांक्षा के ससुर] बोले आज दलिया नहीं मटर की कचोरी और हरे धनिए की चटनी बनाना बहू । सर्दियों के मौसम में मीठी मुलायम हरी मटर की बात ही कुछ और है हर समय थोड़े ही मिलती है । मैं तो यह बेस्वाद दलिया नहीं खाऊंगा ।

कोई बात नहीं पिताजी, आज आपको बेस्वाद दलिया नहीं मटर की कचोरी और तीखी-मीठी दोनों चटनी के साथ मिलेगी। कहकर आकांक्षा रसोई में चली जाती है ।

आपको भी हर वक्त छप्पन भोग ही चाहिए, अगर दलिया खा लेंगे तो क्या हो जाएगा । कभी सोचा है बहू बिचारी कैसे सब संभाल रही है । आप और आपका बेटा तो खुद से अपना काम भी नहीं करते, वह भी आकांक्षा को ही करने पड़ते हैं ।

उस बच्ची को तो अपने लिए समय ही कब मिलता है । मेरी तबीयत खराब होने से मेरी भी जिम्मेदारी उस पर आ गई है, कब समझेंगे आप लोग । मानसी जी रमाकांत जी से बात कर रही थी कि उन्हें अचानक किसी के गुस्से में चीखने की आवाज आई । रमाकांत जी बोले यह तो देव की आवाज है लेकिन देव इस वक्त घर पर और यह इस तरह से किससे बात कर रहा है?

देव बहूत बुरी तरह से आकांक्षा पर चिल्ला रहा था । आकांक्षा बस रोए जा रही थी और बोल रही थी मुझे नहीं पता, मैंने आपकी फाइल को नहीं हाथ लगाया । लेकिन देव कुछ सुनने को तैयार नहीं था और गुस्से में ना जाने क्या क्या बोले जा रहा था । आकांक्षा उसे समझाने की कोशिश कर रही थी कि वह अपने काम की चीजें इधर-उधर क्यों रखता है, ठीक से क्यों नहीं रखता है?

इस बात से देव का गुस्सा और भी ज्यादा हो गया और चिल्लाते हुए बोला यह मेरा घर है, तुम्हारे पिता का नहीं । मैं जो चाहे, जहां चाहे रखूंगा, तुमसे कितनी बार कहा है  कि मेरी चीजों को हाथ मत लगाया करो ।

सही कहा बेटा… औरतों का तो कोई घर ही नहीं होता है । शादी के पहले पिता का और भाई का घर होता है, शादी के बाद पति का, और बुढ़ापे में बेटे का। लड़कियों को जन्म लेते ही लोग सिखाने लगते हैं कि तुम को तो किसी और के घर जाना है, यह घर तुम्हारा अपना नहीं।

तुम तो किसी और की अमानत हो, शादी के बाद किसी अनजान को अपना मान लेना और उसकी पसंद के हिसाब से रहना । उसके पसंद के कपड़े, उसकी पसंद का खाना, सब अपना लेती है, सोती-जागती भी किसी और के हिसाब से ही है ।

उसके हिस्से में तो कुछ पल का आराम भी नहीं है । सिर्फ दुख और दर्द उसके अपने हैं, और उसका अपना कुछ भी नहीं । यहां तक कि जिस घर के लिए वह दिन-रात नहीं देखती, अपने आपको भूल जाती है, उसे एक दिन यह सुनने को मिले की यह तुम्हारा घर नहीं तो मेरे समझ से तो हम औरतों को कुछ भी नहीं करना चाहिए। हम क्यों दूसरों के लिए परेशान हो?

मां… आप यह क्या बोल रही हैं, मेरे कहने का यह मतलब नहीं था । मेरी एक फाइल नहीं मिल रही है, ऑफिस में भी नहीं थी तो मुझे लगा आकांक्षा ने कहीं रख दी है और उस फाइल के बिना मेरी मीटिंग भी कैंसिल हो गई, देव ने कहा।

तो उसमें बहू का क्या दोष है?

तुम्हारी मां सही कह रही है, बोलने से पहले सोच लिया करो किससे क्या बोलना है । बहू सुबह से ही घर के कामों में लग जाती है, रात को भी हम खा पीकर आराम कर रहे होते हैं लेकिन तब भी वह कामों में ही लगी रहती है । यहां तक कि अगर हमें पानी भी चाहिए तो हम खुद नहीं लेते बल्कि बहू को आवाज लगा देते हैं। जैसे वह इंसान नहीं कोई मशीन हो ।

हम यह भी भूल जाते हैं कि जैसे हमें किसी के गलत व्यवहार से दुख होता है वैसे ही उसे भी होता होगा ।

तुम तो सुबह तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल जाते हो, कभी यह भी सोचा है कि तुम्हारे पीछे तुम्हारे माता-पिता, बच्चे  और घर का ध्यान कौन रखता है? ऑफिस से आने पर भी गरमा-गरम चाय, नाश्ता, खाना सब मिलता है; उस सब की व्यवस्था कौन करता है? सिर्फ बाहर जाकर पैसे कमाने से यह समझ लेना कि यह घर सिर्फ तुम्हारा है, कहां तक सही है?

इसलिए मैं बहू को हमेशा बहू बेटा (Bahoo Beta) बुलाता हूं क्योंकि वो बहू की तरह घर की देखभाल करती है और एक बेटे की तरह हम बूढ़े मां बाप की जिम्मेदारियां भी उठाती है । तुम्हें तो अपने माता-पिता का हाल तक पूछने की फुर्सत नहीं है। तुम्हें तो बहू से सीखना चाहिए कि एक बेटे की जिम्मेदारी कैसे निभाते हैं और उल्टा तुम हो कि उसे  सुनाएं जा रहे हो । तुम्हें तो शर्म आनी चाहिए कि जो तुम्हारी जिम्मेदारी को अपनी जिम्मेदारी समझकर निभा रही है उसके साथ ऐसा व्यवहार ?

बस करिए पिताजी… मैं अपनी गलती समझ चुका हूं, मुझे माफ कर दो आकांक्षा । मुझसे बहूत बड़ी गलती हो गई है, आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा जिससे तुम्हें तकलीफ हो। अबसे मैं भी जितनी हो सके तुम्हारी मदद करूंगा, और इसकी शुरुआत आज से ही होगी, बल्कि अभी से ही होगी। आप सब लोग के लिए मैं अभी गरमा गरम अदरक वाली चाय बना कर लाता हूं ।

दोस्तों Bahoo Beta एक स्वरचित मौलिक रचना है लेकिन विचार करें और कमेंट करके अपनी राय बताएं इस Hindi Kahani के बारे में ।


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आँचल बृजेश मौर्य चाय के पल की संस्थापक के साथ-साथ इस वेबसाइट की प्रमुख लेखिका भी है। उन्होंने ललित कला (फाइन आर्ट्स – Fine Arts) में स्नातक, संगीत में डिप्लोमा किया है और एलएलबी की छात्रा (Student of LLB) है।ललित कला (फाइन आर्ट्स) प्रैक्टिस और अपनी पढ़ाई के साथ साथ, आंचल बृजेश मौर्य विभिन्न विषयों जैसे महिला सशक्तिकरण, भारतीय संविधान, कानूनों और विनियमों इत्यादि पर ब्लॉग लिखती हैं। इसके अलावा उनकी रुचि स्वरचित कहानियां, कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां इत्यादि लिखने में है।

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