उड़ान – Udaan। Let Her Fly: Overcoming Overprotective Parenting
उड़ान (Udaan) एक युवा लड़की की आकांक्षाओं और उसकी अति-संरक्षित (Overprotective parents) मां की चिंताओं के बीच संघर्ष को चित्रित करती है। बेटी विदेश में पढ़ाई करने और दुनिया की खोज करने का सपना देखती है, लेकिन उसकी मां उसकी सुरक्षा और भलाई के लिए डरती है। तो आइए इस Hindi Kahani के माध्यम से जानते हैं कैसे इस समस्या का समाधान निकला।
उड़ान – Udaan। Let Her Fly: Overcoming Overprotective Parenting – A Short Story in Hindi
अरे रुचि तुम यहां बैठी हो और मैं तुम्हें अंदर ढूंढ रहा हूं । क्या हुआ… क्या बात है, पिछले कुछ दिनों से देख रहा हूं बहुत परेशान हो? जी आपसे कुछ बात करना चाहती हूं… हां कहो ना, क्या बात है? अक्षित जी भी वहीं पास में पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए बोले ।
अक्षित जी क्वालिटी कंट्रोल (Quality Control) विभाग में अच्छे पद पर कार्यरत हैं और रुचि जी एक हाउसवाइफ हैं।
“जी आप बात करके देखिए ना सुमी [समृद्धि] से, आपकी तो हर बात मानती है, ये भी मान जाएगी। और आप तो जानते हैं कोई विदेश गया तो वही का होकर रह जाता है और माता-पिता यहां बस इंतजार करते रह जाते हैं।
मुझे तो बहुत डर लग रहा है, सुमी वहां कैसे अनजान लोगों और अनजान शहर में रहेगी? कौन उसकी देखभाल करेगा? कहीं कोई परेशानी हुई तो हम भी तो वहां नहीं पहुंच सकेंगे। और सबसे बड़ी बात है कि लड़की है, कहीं कुछ गलत हो गया तो? मेरा तो सोच-सोच कर सर फटा जा रहा है। आप एक बार सुमी से बात करिए ना।” रुचि ने कहा।
“अच्छा तुम यहां बैठो मैं अभी आया” अक्षित जी बोलते हुए बालकनी से उठकर अंदर चले गए। रुचि को लगा उसकी बातें सुनकर अक्षित जी सुमी से बात करने गए हैं।
रुचि अपने मन में बड़बड़ाये जा रही थी कि आज-कल तो विदेश जाने की सनक सवार है बच्चों पर। क्या अपने देश का कोई महत्व नहीं है? यहां क्या लोग अनपढ़ हैं? हमारे देश में एक से एक स्कूल-कॉलेज है। यहां किसी भी शहर में चले जाओ, अपनापन, अपने लोग तो हैं। और वहां तो कोई परेशानी होने पर भी कोई नहीं पहुंच सकता।
मुझे तो समझ नहीं आ रहा है कैसे समझाऊं उसे। मेरी तो सुनती नहीं, हो सकता है अपने पापा की बात मान ले। उनकी लाडली है और बचपन से ही उनकी हर बात मानती है।
सुमी यानी समृद्धि जो रुचि और अक्षित जी की बेटी है और पढ़ाई के लिए बोस्टन जाना चाहती है। वहां उसका दाखिला भी हो गया है लेकिन रुचि जी अपने डर और सुमी को लेकर चिंता से ही बाहर नहीं आ पा रही है। इसलिए वह उसे विदेश नहीं जाने देना चाहती।
जन्म से लेकर आज तक सुमी हमेशा उनके पास ही रही इसीलिए अचानक से इतनी दूर जाने के सुमी के निर्णय से परेशान हो गई है। सुमी उनकी इकलौती संतान है इसलिए इस बात की चिंता भी है कि उसके जाने के बाद वो अकेली हो जाएंगी। अक्षित जी तो अपने ऑफिस के कामों में व्यस्त रहते हैं।
“ये लो गरमा-गरम जलेबी, समोसे और चाय” अक्षित जी ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा जो रुचि को इतना परेशान होते हुए देखकर चाय बना लाए थे।
“आप ये चाय बनाने गए थे, मुझे तो लगा आप सुमी से बात करने गए हैं” रुचि उन्हें हैरानी से देखने लगी। “अरे मैं वॉक से लौट रहा था तो रास्ते में गरमा-गरम जलेबी और समोसे दिख गए तो लेता आया, सोचा साथ में बैठ कर आराम से गरमा-गरम चाय के साथ आनंद लिया जाए” अक्षित जी मुस्कुराते हुए बोले।
“आपको ये जलेबी, समोसे और चाय की पड़ी है, यहां बेटी की चिंता में जान निकली जा रही है” रुचि जी गुस्से से बोली।
तुम तो बेवजह परेशान हो रही हो, सुमी अब कोई छोटी बच्ची नहीं है जिसके पीछे-पीछे हम घूमते रहेंगे और कितनों को ऐसा मौका मिलता है जैसा सुमिको मिल रहा है । तुम्हें तो अपनी बेटी पर गर्व होना चाहिए, उसे आगे बढ़ने के लिए और हिम्मत देनी चाहिए और तुम हो कि ये रोना-धोना लेकर बैठी हो।
“आप तो कुछ समझते ही नहीं”, रुचि ने रोते हुए कहा।
“ऐसी कोई बात नहीं है रुचि, मैं तुम्हारी हालत समझ सकता हूं और मुझे भी सुमी की उतनी ही चिंता है जितनी तुम्हें। लेकिन मैं उसे बांधकर नहीं रखना चाहता कि कल हमारी सुमी यह कहे कि मां-पापा आप लोगों की वजह से मेरे जीवन का सबसे बड़ा मौका मेरे हाथों से चला गया।
और जीवन भर हमें भी इस बात का अफसोस रहेगा कि शायद हमने अपनी बेटी के सुनहरे अवसर को छीन लिया”। अक्षित जी रुचि को समझाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन रुचि कुछ सुनने और समझने को तैयार नहीं थी।
वो तो बस एक ही बात पर अड़ी थी कि वो सुमी को वहां नहीं जाने देगी। अक्षित को समझ में नहीं आ रहा था कि रुचि को कैसे समझाएं।
“तुमने कभी चिड़िया को देखा है रुचि? वो अपना घोंसला कैसे तिनको से दिन रात मेहनत करके बनाती है और एक दिन उस घोसले में उसके सपनों के रुप में छोटे-छोटे बच्चे होते हैं। वो खुद भूखी रहती है, लेकिन सारे दिन अपनी छोटी सी चोंच में दाने भर कर लाती है और बच्चों को खिलाती है। उनके पंखों को ताकत देती है, उन्हें उड़ना सिखाती है ताकि वे खुले आसमान में उड़ान (Udaan) भर सकें।
एक दिन वे नन्हे-नन्हे बच्चे उड़ना सीख जाते हैं और आसमान में ऊंची उड़ान (Udaan) भरते हैं। और लौटकर फिर घोसले में नहीं आते, तो क्या चिड़िया उनको उड़ना नहीं सिखाती? उससे क्या उसकी बच्चों के प्रति प्यार कम हो जाता है? नहीं! तो तुम क्यों इतना परेशान हो? क्यों इस तरह की उल्टी-सीधी बातें सोचती हो?
उसी तरह अपनी सुमी को भी खुले आसमान में उड़ान भरने दो, यह सुंदर दुनिया देखने दो, अपना सही गलत खुद सोचने दो, अपनी नई दुनिया बनाने दो।
हम अपने मोह में इतने अंधे हो जाए कि बच्चों से उनका अधिकार ही छीन ले। अपने लिए फैसला लेने का अधिकार तो सबको है रुचि तो सुमी को क्यों नहीं? वो कहीं वही कि ना होकर रह जाए इस डर से उसे आगे बढ़ने का मौका ही ना दें, यह तो गलत है रुचि, हमें ऐसा नहीं करना चाहिए।
उस नन्ही चिड़िया से कुछ तो सीख हमें लेनी चाहिए, है ना रुचि”। अक्षित जी ने रुचि को समझाते हुए कहा।
“शायद आप सही कह रहे हैं जी, मैं ही अपनी ममता में बेटी का अच्छा बुरा सोचना भूल गई। मैं उस नन्हीं चिड़िया की सीख को हमेशा याद रखूंगी। मैं मां बनकर ये भूल गई कि मैं भी कभी चिड़िया को देखकर सोचती थी कि काश मैं भी उड़ सकती तो पूरी दुनिया को अपने पंखों में समेट लेती। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, आपकी इस सीख ने आज हमारी सुमी के सपनों को बचा लिया।
ये लो, हमारी बातों में चाय और नाश्ता ठंडा हो गया। मैं अभी इसे गर्म कर ले आती हूं”। रुचि मुस्कुराते हुए चाय नाश्ता गर्म करने अंदर चली गई।
दोस्तों आप ही बताएं बच्चों के लिए चिंता करना, उनका अच्छा बुरा सोचना तो ठीक है लेकिन कहीं हम उनका अच्छा बुरा सोचने में अतिसंरक्षी माता-पिता (ओवरप्रोटेक्टिव पेरेंट्स – Overprotective Parenting) तो नहीं बन रहे हैं। ओवरप्रोटेक्टिव (Overprotective) होना शायद बच्चों से दूरियों का कारण बन सकती है।
आपकी क्या राय है, कमेंट में जरूर बताएं ।
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