रास्ता | Rasta: A Swarachit Kavita in Hindi
रास्ता (Rasta) एक स्वरचित कविता (swarachit kavita in hindi) है जो जीवन की राह और उसकी मंजिल पर सवाल उठाती है। अपने सुंदर छंदों के माध्यम से, कविता जीवन की यात्रा की अनिश्चितता और अप्रत्याशित चुनौतियों के बावजूद आगे बढ़ते रहने के लिए आवश्यक दृढ़ता को दर्शाती है। तो इस दिल को छू लेने वाली कविता का आनंद लें।
रास्ता | Rasta: A Swarachit Kavita
मैं पूछ बैठा ‘ऐ’ रास्ता ! बता तेरी मंजिल है कहां? सदियों से चलता आ रहा, ना प्रारंभ ना अंत का है पता। लड़खड़ाते हुए कदम, जाने किधर को जा रहे। जिस ओर मुड़ता रास्ता, उस ओर चलते जा रहे ॥
चलता चला मैं जा रहा, मन में यही गुमां लिए । शायद आज मुझको मिले, इस डगर की मंजिलें ॥
मन को यही समझाता हुआ, सागर तट पर मैं आ गया। पल भर को ऐसा लगा शायद, मंजिल को मैं पा गया॥
ना इसके आगे है रास्ता, और ना किसी पग के निशाँ। दिल में यही गुमान था, इस रास्ते का अंत था॥
क्षण भर में तोड़ कर घमंड, सागर के उर से निकलकर, नील अंचल में घटा का श्वेत सा, आंचल पसारे, मणि-मोतियों से सुसज्जित, रवि किरणों के सहारे, डूबती-इतराती हुई सी सामने वो आ गई॥
ना रुकने से था वास्ता, बस चलते रहना लक्ष था। राह पर चलते हुए मुझसे, यही कहती गयी, "जीवन एक सच्चाई है", तुम भी इसे जान लो। सांसो से शुरू होती डगर, प्राणों पर अंत है मान लो॥
फिर ना उत्तर की थी लालसा, ना मन में कोई प्रश्न था। बस कर्म से संयोग था, और चलते रहना लक्ष्य था॥ बस कर्म से संयोग था, और चलते रहना लक्ष्य था…
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