गणगौर की कहानी | Gangor or Gangaur ki Kahani: A Journey of Rajasthan’s Rich Culture
इस लेख में हम गणगौर की कहानी (Gangaur ki Kahani), गणगौर पूजा (Gangaur pooja), गणगौर गीत (Gangaur geet ) और इसके महत्व के बारे में जानेंगे। भारत देश संस्कृतियों का संगम है और यहाँ अनेको प्रकारों के उत्सव माने जाते हैं।
इसलिए भारत को उत्सवों का देश कहा जाता है। भारत का राज्य राजस्थान तो अपनी संस्कृति, परम्परा और शूरवीर महाराणा प्रताप जैसे वीरो के लिए जाना जाता है।
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1. गणगौर की कहानी और इसका महत्व | Gangor or Gangaur ki Kahani and its Importance
Table of Contents
गणगौर पूजा (Gangaur Puja or Gangaur Pooja) राजस्थान में एक प्रमुख पर्व है जिसे राजस्थान के नागौर, जोधपुर, जयपुर, बीकानेर, जैसलमेर और उदयपुर जैसे शहरों में धूमधाम से मनाया जाता है।
इस पर्व के दौरान स्त्रियां गणगौर और ईश्वर को अर्घ्य देती हैं, और गणगौर की पूजा (Gangaur Puja or Gangaur Pooja) के लिए विभिन्न प्रकार की खाद्य सामग्री तैयार करती हैं। इस पर्व की बहुत मान्यता है। मारवाड़ियों का यह बहुत बड़ा पर्व है, केवल राजस्थान में नहीं बल्कि जहाँ भी मारवाड़ी लोग रहते है, सभी जगह बड़े ही हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है।
2. गणगौर पूजा (Gangaur Puja or Gangaur Pooja) क्यों और कब की जाती है – Gangor kab hai:
गणगौर का पूजन (Gangaur Puja or Gangaur Pooja) होली महापर्व (Holi Festival) के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से लेकर चैत्र शुक्ल तीज तक मनाया जाता है। इस दिन के बारे में कहा जाता है, कि माता पार्वती होलिका के दूसरे दिन अपने पीहर जाती है। पीहर जाने के 18 दिन बाद भगवान शिव उन्हें लेने जाते हैं। तथा चैत्र शुक्ल तीज को माता गोरी को शिव जी के साथ विदा किया जाता है।
इस साल गणगौर पर्व 26 मार्च 2024 से शुरू होकर 11 अप्रैल 2024 को समाप्त होगा।
गणगौर का पूजन (Gangaur Puja or Gangaur Pooja) नवविवाहिता महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अपने ससुराल वह पीहर की खुशी की कामना के लिए रखती है और, अविवाहित लड़कियां अच्छे वर की कामना लिए रखती है।
3. गणगौर का मतलब – Meaning of Gangaur or Gangor or Gangore:
माना जाता है, कि गणगौर का मतलब गण शिव और गौर माता पार्वती से है। इस पर्व को 18 दिन तक लगातार मनाया जाता है, और गणगौर का निर्माण करके पूजा की जाती है।
4. गणगौर पूजन विधि – Gangaur Pooja Vidhi or Gangor Pujan Vidhi
गणगौर पूजन (Gangure Puja) के लिए कुंवारी कन्याएं और सुहागिन स्त्रियां सुबह सुंदर वस्त्र, आभूषण पहन कर सिर पर लोटा लेकर बावड़ी और तालाब जाती हैं। वहीं से जल लोटों में भरकर हरी दूब और फूल से सजाकर सिर पर रखकर “दूब ल्याने” का गीत गाती हुई आती है।
इसके उपरांत मिट्टी और होली की राख से बनी शिव स्वरूप ईश्वर और पार्वती स्वरूप गौरी को विवाहित महिलाओं द्वारा 16 गेंदों और अविवाहित कन्याओ द्वारा 8 गेंदों को दूब बिछाकर टोकरी में रख दीया जाता है।
गणगौर मे 18 दिनों तक मूर्तियों को विशेष रूप से लकड़ी की चौकी पर स्थापित की जाती है। सबसे पहले एक कलश को जल भर कर चौकी पर रखा जाता है, और उसके ऊपर 5 पान और एक नारियल रखा जाता है और पूजा विधि के अनुसार पूजा की जाती है।
हल्दी, कुमकुम, मेहंदी, काजल की पूजा की जाती है। देवी गौरी को सिंदूर, मेहंदी, चूड़ियां, काजल, बिंदी, शीशा, कंघी और अन्य श्रृंगार की वस्तुओं के साथ चढ़ाया जाता है। देवताओं को फल, हलवा-पूरी या खीर और अन्य भोजन का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
गणगौर उत्सव (Gangaur Festival) के पहले दिन होलिका दहन और मिट्टी की राख के मिश्रण में गेहूँ और जौ के बीजों को अंकुरित करने के लिए लगाया जाता है। गणगौर गीत गाया और गणगौर पूजा मंत्रों का जाप किया जाता है।
गौर तृतीया को व्रत रखकर कथा सुनकर पूजा पूर्ण होती है।
उत्सव का अंतिम तीन दिन बहुत ही भव्य होता है। जब विवाहित और अविवाहित दोनों महिलाएं ईश्वर और गौरी की मूर्तियों को नए कपड़े और गहनों से सजाती हैं। और देवी गौरी और भगवान शिव की मूर्तियों के साथ अपने घरों से बाहर निकलती हैं।
महिलाएं गणगौर गीत (Gangaur Geet or Gangaur ke Geet) गाती हुई ढोल और पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ और जुलूस में भाग लेती है। मूर्तियों को औपचारिक रूप से तालाबों, झीलों या टैंकों में रखा जाता है, जो भव्य गणगौर उत्सव और गणगौर पूजा विधि को समाप्त करता है। इसी के साथ अगले साल की गणगौर का इंतजार शुरू हो जाता है।
5. दूब लाने का गीत – Gangaur Geet or Gangaur ke Geet:
बाड़ी वाला बाड़ी खोल, बाड़ी की कीवाड़ी खोल, छोरिया आई दूब न, कूणी जी री बेटी हो, कूणी जी री पोती हो, काई तुम्हारा नाम है। मैं ब्रह्मादास जी री बेटी हाँ, ईसरदास जी री बहना हाँ, रोवां म्हारो नाम है। बाड़ी वाला बाड़ी खोल, बाड़ी की कीवाड़ी खोल।
6. गुनों का है विशेष महत्व:
गणगौर पूजन में गुनों का विशेष महत्व है। यह मैदा, बेसन या आटे में हल्दी या पीला रंग मिलाकर बनाया जाता है। यह मीठे और नमकीन होते हैं। मान्यता है कि जितने गहने यानी गुने पार्वती जी को चढ़ाए जाते हैं, उतना ही धन-वैभव बढ़ता है। पूजा करने के बाद ये गुने स्त्रियां अपनी सास, और ननद को देती हैं।
7. गणगौर की कहानी -Gangor or Gangaur ki Kahani or Gangor Mata ki Kahani or Gangaur ki Kahani in Hindi
एक बार राजा ने जौ और चने बोये,और माली ने अपने घर मे दूब बोयी । राजा के जौ चने बढ़ते गए और माली की दूब घटती गई । एक दिन माली ने सोचा कि क्या बात है ? राजा के जौ चने तो बढ़ते जा रहे हैं और मेरी दूब क्यों घटती जा रही है ।
एक दिन माली छुपकर बैठ गया और देखने लगा कि क्या कारण है ? तब माली ने देखा कि कुंवारी लड़कियां आई और दूब तोड़कर ले गई तब माली उनके कपड़े छीनने लगा । और पूछने लगा कि तुम दूब क्यों ले जा रही हो ?
लड़कियां बोली हम सोलह दिन गणगौर पूजते (Gangaur Puja or Gangaur Pooja) हैं इसलिए पूजा के लिए दूब ले जा रहे हैं। सो हमारे कपड़े दे दो । सौलह दिन बाद गणगौर विदा होगी जिस दिन हम तुम्हें हलवा , घेवर , मिठाई आदि लाकर देंगे । फिर उसने सबके कपड़े वापस दे दिए ।
जब सौलह दिन पूरे हुए तब लड़कियों ने हलवा आदि सामग्री मालन को लाकर दी। बाहर से मालन का बेटा आया और बोला माँ मुझे बहुत भूख लगी है । मालन बोली कि बेटा आज तो लड़कियां बहुत सारा खाना देकर गयी है, रसोई में रखा है ।
बेटे से रसोई खुली नहीं , तब माँ ने आकर चिन्टी अंगूली से छींटा दिया तो रसोई खुल गई। अंदर देखा तो ईश्वर गणगौर बैठे थे। ईश्वर जी ने बहुत सुंदर वस्त्र पहने हुए थे और गौरा माता मांग सवार रही थी।
रसोई में अन्न धन के भंडार भरे पड़े थे। माली, मालन और उनके बेटे को ईश्वर गणगौर जी के सुंदर दर्शन हुए। गणगौर माता जिस प्रकार माली के परिवार को दर्शन दिया उसी प्रकार सबको दर्शन देना। ईश्वरजी जैसा भाग्य और गोरा जैसा सुहाग सबको देना।
8. गणगौर पूजने का गीत – Gangaur Geet or Gangaur ke Geet:
गौर ए गणगौर माता खोली री किवाड़ बाहर ऊबी धारी पूजण वाली पूजो ए पुजवो बाईया, काई काई माँगे मंगा ए महे अन्न- धन लाछर लक्ष्मी जलहर जामी बाबुल मांगा राता देई मायण कान कवर सा बीरो माँगा राई सी भोजायी बहनोई माँगा चुनर वाली बहना गौर ए गणगौर माता खोली री किवाड़
9. गणगौर पूजने का गीत – Gangaur Geet or Gangaur ke Geet:
गौर – गौर गोमनी , ईसर पूजे पार्वती , पार्वती का आला – गीला , गौर का सोना का टीका , टीका दे टमका दे रानी , व्रत करियो गौरा दे रानी । करता – करता आस आयो , वास आयो । खेरे – खाण्डे लाड़ू ल्यायो , लाड़ू ले वीरा न दियो , वीरो ले मने चूँन्दड़ दीनी , चून्दड़ ले मने सुहाग दियो । वीरो ले मने पाल दी , पाल को मैं बरत करयो । सन – मन सोला , सात कचौला , ईसर गौरा दोन्यू जोड़ा । जोड़ जवाराँ गेहूँ ग्यारह , रानी पूजे राज में । मैं म्हाके स्वाग में , रानी को राज घटतो जाय , म्हाको स्वाग बढ़तो जाय । कीड़ी कीड़ी कीड़ी ले , कीड़ी थारी जात ले । जात ले गुजरात ले , गुजरात्यां रो पाणी , देदे तम्बा ताणी , ताणी में सिंघाड़ा , बाड़ी में बिजोरा । म्हारो बाई एमल्यो , पेमल्यो म्हारो बाई एमल्यो सेमल्यो , सिघाड़ाल्यो , झर झरती जलेबी ल्यो , नी भावे तो और ल्यो , सोई ल्यो । अंत में एक ल्यो , दो ल्यो , तीन ल्यो , चार ल्यो , पाँच ल्यो , छः ल्यो , सात ल्यो और आठ ल्यो ।
आप सब को गणगौर की बधाई!
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