15+ श्री दुष्यंत कुमार जी की प्रसिद्ध कविताएँ । 15+ Famous Shri Dushyant Kumar Poems in Hindi

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श्री दुष्यंत कुमार जी की प्रसिद्ध कविताएँ

Shri Dushyant Kumar Poems in Hindi

दुष्यंत कुमार जी आधुनिक हिंदी साहित्य (Modern Hindi Litrature) के एक प्रसिद्ध हिंदी लेखक, कवि एवं गजलकार थे । चाय के पल के इस वेबपेज पर आज हम श्री दुष्यंत कुमार जी की प्रसिद्ध कविताएँ Dushyant Kumar Poems, Dushyant Kumar Poem, Dushyant Kumar Poems in Hindi को पढ़ेंगे ।

श्री दुष्यंत कुमार जी का परिचय:

श्री दुष्यंत कुमार जी का जन्म 1 सितम्बर 1933 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद की तहसील नजीबाबाद के ग्राम राजपुर नवादा में हुआ था । इनका पूरा नाम दुष्यंत कुमार त्यागी था ।

श्री दुष्यंत कुमार जी की पहचान 20वीं शताब्दी के अग्रणी हिंदी कवियों में से एक के रूप में होती है और वो हिंदी कविता (Hindi Poem) एवं  ग़ज़ल लिखने के लिए प्रसिद्ध हैं ।

बिंदु (Points)जानकारी (Information)
नाम (Name)दुष्यंत कुमार त्यागी
जन्म (Date of Birth)1 सितम्बर 1933
मृत्यु (Death)30 दिसम्बर 1975
जन्म स्थान (Birth Place)ग्राम राजपुर नवादा, उत्तरप्रदेश
पेशा (Occupation ) लेखक, कवि,  सरकारी नौकरी
शिक्षा (Education)एम. ए. हिंदी (इलाहाबाद, जिसे अब प्रयागराज के नाम से जाना जाता है)
प्रसिद्धिगज़ल, कविता

हिंदी साहित्य में उनका योगदान और उनकी रचनाओं का महत्व:

दुष्यंत कुमार जी का हिंदी साहित्य में एक अतुलनीय (Incomparable) योगदान है और उनकी छाप अविस्मरणीय (unforgettable) है।

उनके लेखन समय के दौरान भारत एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा था और उसके साथ भारतीय साहित्य भी। ऐसे समय में वो हिंदी साहित्य का एक प्रमुख चेहरा बने जो अपनी व्यावहारिक और उत्तेजक विचारो वाली कविताओं (motivational poem in hindi) एवं ग़ज़लों के लिए जाने जाते थे।

श्री दुष्यंत कुमार जी की लोकप्रिय कविताओं (Dushyant Kumar Poems) का एक संक्षिप्त विवरण और सूची:

दुष्यंत कुमार जी की कुछ बेहतरीन कविताओं (Famous poems of Dushyant Kumar) और सुंदर रचनाओं की सूची में सूर्य का स्वागत, मापदण्ड बदलो, कैद परिन्दे का बयान, शब्दों की पुकार, धर्म, मोम का घोड़ा, माया, नयी पीढ़ी का गीत इत्यादि है।

सरल भाषा का प्रयोग, उत्तेजक विचार, और मानवीय स्थिति की गहरी समझ उनकी कविताओं और सुंदर रचनाओं की विशेषता थी। उनकी कविताएँ और ग़ज़लें प्रेम, हानि और जीवन में अर्थ की खोज के विषयों पर आधारित है।

  1. सूर्य का स्वागत (Welcome to the Sun) – Dushyant Kumar Poem
  2. मापदण्ड बदलो (Change Parameters) – Dushyant Kumar Poem
  3. क़ैद परिन्दे का बयान (Confession of a Caged Bird) – Dushyant Kumar Poems in Hindi
  4. धर्म (Religion) – Dushyant Kumar Poems in Hindi
  5. ओ मेरी जिन्दगी ( Oh My Life) – Dushyant Kumar Poems in Hindi
  6. मैं और मेरा दुःख (Me and My Sorrow) – motivational poem in hindi
  7. शब्दों की पुकार (Evocation of Words) – motivational poem in hindi
  8. मुक्तक (Muktak) – Dushyant Kumar Poem
  9. दिन निकलने से पहले ( Before Sunrise) – Dushyant Kumar Poem
  10. मोम का घोड़ा (Wax Horse) – Dushyant Kumar Poems in Hindi
  11. यह क्यों (Why This) – Dushyant Kumar Poems in Hindi
  12. सत्य (Truth) – Dushyant Kumar Poems
  13. पर जाने क्यों (But Why) – Dushyant Kumar Poems
  14. माया (Illusion) – Dushyant Kumar Poems
  15. सत्य बतलाना (Tell the Truth) – Dushyant Kumar Poems
  16. सत्यान्वेषी (Truth Seeker) – Dushyant Kumar Poems
  17. नयी पीढ़ी का गीत (New Generation Song) – motivational poem in hindi

सूर्य का स्वागत (Welcome to the Sun)

आँगन में काई है,
दीवारें चिकनी हैं, काली हैं,
धूप से चढ़ा नहीं जाता है,
ओ भाई सूरज ! मैं क्या करूँ ?
मेरा नसीबा ही ऐसा है !

खुली हुई खिड़की देखकर
तुम तो चले आए,
पर मैं अँधेरे का आदी,
अकर्मण्य... निराश....
तुम्हारे आने का खो चुका था विश्वास ।

पर तुम आए हो - स्वागत है !
स्वागत !... घर की इन काली दीवारों पर !
और कहाँ ?
हाँ, मेरे बच्चे ने
खेल खेल में ही यहाँ काई खुरच दी थी
आओ-यहाँ बैठो,
और मुझे मेरे अभद्र सत्कार के लिए क्षमा करो
देखो ! मेरा बच्चा
तुम्हारा स्वागत करना सीख रहा है।


मापदण्ड बदलो (Change Parameters)

मेरी प्रगति या अगति का
यह मापदण्ड बदलो तुम,
जुए के पत्ते सा
मैं अभी अनिश्चित हूँ ।
मुझ पर हर ओर से चोटें पड़ रही हैं,
कोपलें उग रही हैं,
पत्तियाँ झड़ रही हैं,
मैं नया बनने के लिए खराद पर चढ़ रहा हूँ,
लड़ता हुआ नयी राह गढ़ता हुआ आगे बढ़ रहा हूँ ।

अगर इस लड़ाई में मेरी साँसें उखड़ गईं,
मेरे बाजू टूट गए,
मेरे चरणों में आँधियों के समूह ठहर गए,
मेरे अधरों पर तरंगाकुल संगीत जम गया,
या मेरे माथे पर शर्म की लकीरें खिंच गईं,
तो मुझे पराजित मत मानना,
समझना-
तब और भी बड़े पैमाने पर,
मेरे हृदय में असन्तोष उबल रहा होगा,
मेरी उम्मीदों के सैनिकों की पराजित पंक्तियाँ
एक बार और
शक्ति आज़माने को
धूल में खो जाने या कुछ हो जाने को
मचल रही होंगी। एक और अवसर की प्रतीक्षा में
मन की कुन्दीलें जल रही होंगी।

ये जो चाँद से फफोले तलुओं में दीख रहे हैं
ये मुझको उकसाते हैं।
पिण्डलियों की उभरी हुई नसें
मुझ पर व्यंग्य करती हैं।
मुँह पर पड़ी हुई यौवन की झुर्रियाँ
क़सम देती हैं।
कुछ हो अब, तय है-
मुझको आशंकाओं पर काबू पाना है,
पत्थरों के सीने में
प्रतिध्वनि जगाते हुए
परिचित उन राहों में एक बार विजय-गीत गाते हुए जाना है-
जिनमें मैं हार चुका हूँ।

मेरी प्रगति या अगति का
यह मापदण्ड बदलो तुम मैं अभी अनिश्चित हूँ।

क़ैद परिन्दे का बयान (Confession of a Caged Bird)

तुमको अचरज है-मैं जीवित हूँ !
उनको अचरज है-मैं जीवित हूँ !
मुझको अचरज है-मैं जीवित!

लेकिन मैं इसीलिए जीवित नहीं हूँ-
मुझे मृत्यु से दुराव था,
यह जीवन जीने का चाव था,
या कुछ मधु-स्मृतियाँ जीवन-मरण के हिंडोले पर
सन्तुलन साधे रहीं,
मिथ्या की कच्ची-सूती डोरियाँ
साँसों को जीवन से बाँधे रहीं;
नहीं-
नहीं !
ऐसा नहीं !!

बल्कि मैं ज़िन्दा हूँ
क्योंकि मैं पिंजड़े में कैद वह परिन्दा हूँ-
जो कभी स्वतन्त्र रहा है
जिसको सत्य के अतिरिक्त, और कुछ दिखा नहीं,
तोते की तरह जिसने
तनिक खिड़की खुलते ही
आँखें बचा कर, भाग जाना सीखा नहीं;
अब मैं जियूँगा
और यों ही जियूँगा,
मुझमें प्रेरणा नयी या बल आए न आए,
शूलों की शय्या पर पड़ा पड़ा कसकूँ
एक पल को भी कल आए न आए,
नयी सूचना का मौर बाँधे हुए
चेतना ये, होकर सफल आए न आए,
पर मैं जियूँगा नयी फसल के लिए
कभी ये नयी फसल आए न आए :

हाँ ! जिस दिन पिंजड़े की
सलाखें मोड़ लूँगा मैं,
उस दिन सहर्ष
जीर्ण देह छोड़ दूँगा मैं !


धर्म (Religion)

तेज़ी से एक दर्द
मन में जागा
मैंने पी लिया,
छोटी सी एक खुशी
अधरों में आई
मैंने उसको फैला दिया,
मुझको सन्तोष हुआ
और लगा-
हर छोटे को
बड़ा करना धर्म है।


ओ मेरी जिन्दगी ( Oh My Life)

मैं जो अनवरत
तुम्हारा हाथ पकड़े
स्त्री-परायण पति सा
इस वन की पगडण्डियों पर
भूलता-भटकता आगे बढ़ता जा रहा हूँ,
सो इसलिए नहीं
कि मुझे दैवी चमत्कारों पर विश्वास है,
या तुम्हारे बिना मैं अपूर्ण हूँ,
बल्कि इसलिए कि मैं पुरुष हूँ
और तुम चाहे परम्परा से बँधी मेरी पत्नी न हो,
पर एक ऐसी शर्त ज़रूर है,
जो मुझे संस्कारों से प्राप्त हुई,
कि मैं तुम्हें छोड़ नहीं सकता।

पहले
जब पहला सपना टूटा था,
तब मेरे हाथ की पकड़
तुम्हें ढीली महसूस हुई होगी।
सच,
वही तुम्हारे बिलगाव का मुकाम हो सकता था।
पर उसके बाद तो
कुछ टूटने की इतनी आवाज़ें हुई
कि आज तक उन्हें ही सुनता रहता हूँ।

आवाज़ें और कुछ नहीं सुनने देतीं !
तुम जो हर घड़ी की साथिन हो,
तुमसे झूठ क्या बोलूँ ?
खुद तुम्हारा स्पन्दन अनुभव किए भी
मुझे अरसा गुज़र गया !
लेकिन तुम्हारे हाथों को हाथों में लिये
मैं उस समय तक चलूँगा
जब तक उँगलियाँ गलकर न गिर जाएँ।
तुम फिर भी अपनी हो,
वह फिर भी ग़ैर थी जो छूट गई;
और उसके सामने कभी मैं
यह प्रगट न होने दूँगा
कि मेरी उँगलियाँ दगाबाज हैं,
या मेरी पकड़ कमज़ोर है,
मैं चाहे कलम पकड़ू या कलाई।

मगर ओ मेरी ज़िन्दगी !
मुझे यह तो बता
तू मुझे क्यों निभा रही है?
मेरे साथ चलते हुए
क्या तुझे कभी ये अहसास होता है।
कि तू अकेली नहीं?

मैं और मेरा दुःख (Me and My Sorrow)

दुःख : किसी चिड़िया के अभी जन्मे बच्चे सा;
किन्तु सुख : तमंचे की गोली जैसा
मुझको लगा है।

आप ही बताएँ
कभी आपने चलती हुई गोली को चलते,
या अभी जन्मे बच्चे को उड़ते हुए देखा है?

शब्दों की पुकार (Evocation of Words)

एक बार फिर
हारी हुई शब्द-सेना ने
मेरी कविता को आवाज़ लगाई-
“ओ माँ ! हमें सँवारो ।

थके हुए हम
बिखरे-बिखरे क्षीण हो गए,
कई परत आ गईं धूल की,
धुँधला सा अस्तित्व पड़ गया,
संज्ञाएँ खो चुके...!

लेकिन फिर भी
अंश तुम्हारे ही हैं
तुमसे पृथक कहाँ हैं?
अलग-अलग अधरों में घुटते
अलग-अलग हम क्या हैं?
(कंकर, पत्थर, राजमार्ग पर !)
ठोकर खाते हुए जनों की
उम्र गुज़र जाएगी,
हसरत मर जाएगी यह-
'काश हम किसी नींव में काम आ सके होते,
हम पर भी उठ पाती बड़ी इमारत ।
'ओ कविता माँ !
लो हमको अब
किसी गीत में गूँथो
नश्वरता के तट से पार उतारो
और उबारो-

एकरूप श्रृंखलाबद्ध कर
अकर्मण्यता के दलदल से ।
आत्मसात् होने को तुममें
आतुर हैं हम
क्योंकि तुम्हीं वह नींव
इमारत की बुनियाद पड़ेगी जिस पर ।


मुक्तक (Muktak)

सँभल सँभल के' बहुत पाँव धर रहा हूँ मैं
पहाड़ी ढाल से जैसे उतर रहा हूँ मैं
कदम कदम पे मुझे टोकता है दिल ऐसे
गुनाह कोई बड़ा जैसे कर रहा हूँ मैं ।

तरस रहा है मन फूलों की नयी गन्ध पाने को
खिली धूप में, खुली हवा में, गाने मुसकाने को
तुम अपने जिस तिमिरपाश में मुझको कैद किये हो
वह बन्धन ही उकसाता है बाहर आ जाने को ।

गीत गाकर चेतना को वर दिया मैंने
आँसुओं से दर्द को आदर दिया मैंने
प्रीत मेरी आत्मा की भूख थी, सहकर
ज़िन्दगी का चित्र पूरा कर दिया मैंने ।

जो कुछ भी दिया अनश्वर दिया मुझे
नीचे से ऊपर तक भर दिया मुझे
ये स्वर सकुचाते हैं लेकिन तुमने
अपने तक ही सीमित कर दिया मुझे।

दिन निकलने से पहले ( Before Sunrise)

"मनुष्यों जैसी
पक्षियों की चीखें और कराहें गूंज रही हैं,
टीन के कनस्तरों की बस्ती में
हृदय की शक्ल जैसी अँगीठियों से
धुआँ निकलने लगा है,
आटा पीसने की चक्कियाँ
जनता के सम्मिलित नारों की सी आवाज़ में
गड़गड़ाने लगी हैं,
सुनो प्यारे ! मेरा दिल बैठ रहा है।”

" अपने को सँभालो मित्र !
अभी ये कराहें और तीखी,
ये धुआँ और कडुआ,
ये गड़गड़ाहट और तेज़ होगी,
मगर इनसे भयभीत होने की ज़रूरत नहीं,
दिन निकलने से पहले ऐसा ही हुआ करता है।"

मोम का घोड़ा (Wax Horse)

मैंने यह मोम का घोड़ा,
बड़े जतन से जोड़ा,
रक्त की बूँदों से पालकर
सपनों में ढालकर
बड़ा किया,
फिर इसमें प्यास और स्पन्दन
गायन और क्रन्दन
सब कुछ भर दिया,
औ' जब विश्वास हो गया पूरा
अपने सृजन पर,
तब इसे लाकर
आँगन में खड़ा किया !

माँ ने देखा-बिगड़ीं;
बाबूजी गरम हुए;
किन्तु समय गुज़रा....
फिर नरम हुए।
सोचा होगा-लड़का है,
ऐसे ही स्वाँग रचा करता है।

मुझे भरोसा था मेरा है;
मेरे काम आएगा।
बिगड़ी बनाएगा ।
किन्तु यह घोड़ा !
कायर था थोड़ा
लोगों को देखकर बिदका, चौंका,
मैंने बड़ी मुश्किल से रोका।

और फिर हुआ यह
समय गुज़रा, वर्ष बीते,
सोच कर मन में - हारे या जीते,
मैंने यह मोम का घोड़ा,
तुम्हें बुलाने को
अग्नि की दिशाओं में छोड़ा।

किन्तु जैसे ये बढ़ा
इसकी पीठ पर पड़ा
आकर
लपलपाती लपटों का कोड़ा,
तब पिघल गया घोड़ा
और मोम मेरे सब सपनों पर फैल गया !

यह क्यों (Why This)

हर उभरी नस मलने का अभ्यास
रुक रुककर चलने का अभ्यास
छाया में थमने की आदत
यह क्यों ?

जब देखो दिल में एक जलन
उल्टे उल्टे से चाल-चलन
सिर से पाँवों तक क्षत-विक्षत
यह क्यों ?

जीवन के दर्शन पर दिन-रात
पण्डित विद्वानों जैसी बात
लेकिन मूर्खों जैसी हरकत
यह क्यों ?

सत्य (Truth)

दूर तक फैली हुई है ज़िन्दगी की राह
ये नहीं तो और कोई वृक्ष देगा छाँह
गुलमुहर, इस साल खिल पाए नहीं तो क्या !
सत्य, यदि तुम मुझे मिल पाए नहीं तो क्या !

पर जाने क्यों (But Why)

माना इस बस्ती में धुआँ है,
खाई है,
खन्दक है,
कुआँ है :
पर जाने क्यों ?
कभी कभी धुआँ पीने को भी मन करता है;
खाई-खन्दकों में जीने को भी मन करता है,
यह भी मन करता है-
यहीं कहीं झर जाएँ,
यहीं किसी भूखे को देह-दान कर जाएँ
यहीं किसी नंगे को खाल खींच कर दे दें
प्यासे को रक्त आँख मींच मींच कर दे दें
सब उलीच कर दे दें
यहीं कहीं - !
माना यहाँ धुआँ है
खाई है, खन्दक है, कुआँ है :
पर जाने क्यों ?

माया (Illusion)

दूध के कटोरे सा चाँद उग आया
बालकों सरीखा यह मन ललचाया ।
(आह री माया !
इतना कहाँ है मेरे पास सरमाया ?
जीवन गँवाया !)


सत्य बतलाना (Tell the Truth)

सत्य बतलाना
तुमने उन्हें क्यों नहीं रोका ?
क्यों नहीं बताई राह ?

क्या उनका किसी देशद्रोही से वादा था ?
क्या उनकी आँखों में घृणा का इरादा था ?
क्या उनके माथे पर द्वेष भाव ज़्यादा था ?
क्या उनमें कोई ऐसा था जो कायर हो ?

या उनके फटे वस्त्र तुमको भरमा गए ?
पाँवों की बिवाई से तुम धोखा खा गए ?
जो उनको ऐसा गलत रास्ता सुझा गए !
जो वे खता खा गए।
सत्य बतलाना तुमने, उन्हें क्यों नहीं रोका ?
क्यों नहीं बताई राह ?
वे जो हमसे पहले इन राहों पर आए थे,
वे जो पसीने से दूध से नहाए थे,
वे जो सचाई का झण्डा उठाए थे,
वे जो लौटे तो पराजित कहाए थे,
क्या वे पराए थे ?
सत्य बतलाना तुमने उन्हें क्यों नहीं रोका ?
क्यों नहीं बताई राह ?

सत्यान्वेषी (Truth Seeker)

फेनिल आवर्तों के मध्य
अजगरों से घिरा हुआ
विष-बुझी फुंकारें
सुनता-सहता,
अगम, नीलवर्णी,
इस जल के कालियादह में
दहता,
सुनो, कृष्ण हूँ मैं,
भूल से साथियों ने
इधर फेंक दी थी जो गेंद,
उसे लेने आया हूँ
(आया था
आऊँगा)
लेकर ही जाऊँगा !

नयी पीढ़ी का गीत (New Generation Song)

जो मरुस्थल आज अश्रु भिगो रहे हैं,
भावना के बीज जिस पर बो रहे हैं,
सिर्फ मृग-छलना नहीं वह चमचमाती रेत !

क्या हुआ जो युग हमारे आगमन पर मौन ?
सूर्य की पहली किरण पहचानता है कौन ?
अर्थ कल लेंगे हमारे आज के संकेत ।

तुम न मानो शब्द कोई है न नामुमकिन
कल उगेंगे चाँद-तारे, कल उगेगा दिन,
कल फ़सल देंगे समय को, यही 'बंजर खेत' ।

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बृजेश कुमार स्वास्थ्य, सुरक्षा, पर्यावरण और समुदाय (Occupational Health, Safety, Environment and Community) से जुड़े विषयों पर लेख लिखते हैं और चाय के पल के संस्थापक भी हैं।वह स्वास्थ्य, सुरक्षा, पर्यावरण और सामुदायिक मामलों (Health, Safety, Environment and Community matters) के विशेषज्ञ हैं और उन्होंने पोर्ट्समाउथ विश्वविद्यालय, यूनाइटेड किंगडम (Portsmouth University, United Kingdom) से व्यावसायिक स्वास्थ्य, सुरक्षा और पर्यावरण प्रबंधन में मास्टर डिग्री (Master's degree in Occupational Health, Safety & Environmental Management ) हासिल की है। चाय के पल के माध्यम से इनका लक्ष्य स्वास्थ्य, सुरक्षा, पर्यावरण और समुदाय से संबंधित ब्लॉग बनाना है जो लोगों को सरल और आनंददायक तरीके से स्वास्थ्य, सुरक्षा और पर्यावरण के बारे में जानकारी देता हो।

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