चरित्र – Charitra। Breaking Stereotypes Thinking Story in Hindi

चरित्र – Charitra। Breaking Stereotypes Thinking Story in Hindi

चरित्र (Charitra) एक स्वतंत्र लड़की द्वारा सामना किए गए पूर्वाग्रहों और निर्णयों को उजागर करती हुई Hindi Kahani है जो अपनी शर्तों पर जीवन जीने का विकल्प चुनती है। वह शादी के बाद परिवार के कुछ सदस्यों द्वारा लगातार जांच और उसके चरित्र (Charitra) के बारे में सवालों का सामना करती है, लेकिन क्या वह उन सामाजिक मापदंडों से मुक्त हो पाएगी और एक खुशहाल जिंदगी व्यतीत कर पाएगी?

चरित्र – Charitra। रूढ़िवादिता को तोड़ने वाली सोच – Breaking Stereotypes Thinking Story in Hindi

मिष्ठी… जल्दी से ये सारे काम खत्म करके रसोई में चलते हैं, आज दीदी आ रही है। अगर आते ही उन्हें चाय नाश्ता नहीं मिला तो मम्मी जी फिर शुरू हो जाएंगी । और तुम तो जानती हो मम्मी जी जब बोलना शुरु करती है तो किसी की नहीं सुनती है ।

मिष्ठी और उसकी जेठानी सुनिधि घर के कामों में उलझी हुई आपस में बातें कर रही थी । मिष्ठी और सुनिधि, सुगंधा जी की बहुएं हैं । बहू कभी बेटी नहीं बन सकती, बहू तो दूसरे घर से आती है अपनी थोड़ी ही होती हैं इस सोच को मानने वाली महिला है ।

पहले सुनिधि को अकेले ही मां बेटी के ताने झेलने पड़ते थे लेकिन जब से मिष्ठी शादी करके आई है सुनिधि को भी एक दोस्त मिल गई । दोनों की आपस में खूब बनती है और हर बात एक दूसरे से शेयर करती है । दीदी 3:00 बज गए हैं चलिए पहले खाना खा लेते हैं, मुझे तो बहुत जोरों से भूख लग रही है नहीं तो अभी सबके नाश्ते का टाइम हो जाएगा और हम लोगों का लंच डिनर में बदल जाएगा ।

मिष्ठी ने हंसते हुए कहा तो दोनों खाना खाने के लिए रसोई में ही बैठ गई । दो-चार निवाला खाया ही था कि तभी बाहर से सुगंधा जी के चिल्लाने की आवाज आई सुनिधि… मिष्ठी… कहां हो तुम लोग, न जाने क्या करती रहती है दोनों । देखो सीमा और दामाद जी आए हैं… सुगंधा जी की आवाज सुनते ही मिष्ठी अपने खाने की प्लेट छोड़कर उठ गई ।

दीदी आप अपना खाना खत्म करिए मैं देखती हूं । और वह उन लोगों की सेवा सत्कार में लग गई । भाभी घर में शक्कर खत्म हो गई है क्या ये क्या फीकी सी चाय बना लाई हो । तुम्हें तो पता है ना मैं फीकी चाय नहीं पीती हूं । अरे मेरा नहीं तो कम से कम संजय के बारे में ही सोच लेती । इस घर के दामाद है वो, क्या सोचेंगे कि ससुराल में दो-दो भाभियों के होते हुए ढंग से एक कप चाय भी नहीं मिलती है ।

सीमा ने चाय का पहला घूँट लेते ही नुक्स निकालना शुरू कर दिया । अरे बिटिया… तेरे हाथों की तो बात ही कुछ और है, मैं तो खुद अच्छी चाय पीने के लिए तरस जाती हूं । एक तो थी, दूसरी भी वैसी ही आ गई है । मेरी तो किस्मत ही खराब है, पता नहीं इस घर का क्या हाल होगा । बेटी के बोलते ही सुगंधा जी को भी बोलने का मौका मिल गया और वो कहां पीछे रहने वाली थी व्यंग बाण छोड़ने में ।

मिष्ठी बिना कुछ बोले रसोई में आ गई उसे मेहमानों के सामने बोलना ठीक नहीं लगा । “जाने दो मिष्ठी छोड़ो, ये सब बात । इन लोगों की तो आदत है हम लोगों के काम में कमियां निकालने की । तुमने सुबह से कुछ खाया नहीं है, चलो तुम भी अब नाश्ता कर लो । मैंने हम दोनों के लिए चाय भी गर्म कर ली है, आओ बैठो इधर” । मिष्ठी का उतरा हुआ चेहरा देखकर सुनिधि ने नाश्ते की प्लेट मिष्ठी की तरफ बढ़ाते हुए बोली ।

पता नहीं दीदी जितना अच्छा करने की कोशिश करती हूं उतना ही सब खराब हो जाता है । मैंने चाय में शक्कर ज्यादा डाला था, फिर भी सीमा दीदी को चाय में शक्कर कम लग रहा था । कम से कम जीजा जी के सामने तो हमारी बेज्जती नहीं करनी चाहिए थी ना । मिष्ठी ने उदास होते हुए कहा तो सुनिधि बोली “छोटी चाय में शक्कर कम नहीं है, चाय तो बहुत अच्छी बनी है । इन लोगों के दिलों में हमारे लिए प्यार कम है, और जिससे प्यार नहीं होता उसकी हर बात खराब होती है । तुम उदास मत हो”।

सुनिधि बहू… तुम लोगों का ये मेहमानों की तरह चाय नाश्ता हो गया हो तो रात के खाने की तैयारी करो । सुगंधा जी रसोई में सब्जियों का थैला पकड़े खड़ी थी और जैसे ही उन्होंने देखा मिष्ठी और सुनिधि नाश्ता कर रही है उनका मुंह बन गया ।

मम्मी जी… मिष्ठी ने सुबह से कुछ नहीं खाया है, इसलिए मैंने हीं बोला पहले नाश्ता कर लो उसके बाद सब करेंगे । “अरे… एक समय नहीं खाया तो कुछ हो थोड़ी जाएगा । हमारे समय में तो कामों में लगे रहते थे और मेहमानों के आने पर खाने पीने की तो सुध ही नहीं रहती थी । बस उनकी सेवा में लगे रहते थे । अच्छे से अच्छा बनाना, खिलाना, उनके हर आराम का ध्यान रखना । लेकिन तुम लोगों से ये क्यों होने लगा, वैसे भी मेरी बेटी तुम लोगों को हमेशा से बोझ लगती है” ।

“नहीं मम्मी जी… बस हम जा ही रहे थे खाने की तैयारी करने” सुनिधि ने कहा । “ये लो सब्जियां और पनीर । आज रात खाने में पनीर कोफ्ता, मिक्स वेज, आलू दम, कश्मीरी पुलाव, मिस्सी रोटी और मीठे में मखाने की खीर बना लेना। और हाँ जल्दी-जल्दी हाथ चलाओ तुम दोनों, बैठी गप्पे मार रही हो… समय का तो कुछ ध्यान ही नहीं है…”। सब्जियों का थैला वही रसोई में रख कर सुगंधा जी चिल्लाते हुए बाहर चली गई ।

सुनिधि और मिष्ठी भी जल्दी से रात के खाने की तैयारी में लग गई । 9 बजते-बजते खाना टेबल पर लगाकर सुनिधि ने कहा, “मिष्ठी…मम्मी जी और दीदी को बुला लाओ खाने के लिए, वे लोग शायद ऊपर छत पर है” । और तब तक मैं बाकी लोगों के लिए खाना परोसती हूँ” । ठीक है दीदी… बोलते हुए मिष्ठी उन लोगों को खाने के लिए बुलाने ऊपर चली गई ।

“मां… तुम मिष्ठी भाभी पर नजर रखा करो, किससे बात करती है, क्या बात करती है, किसका फोन आया है । भाई की पसंद के आगे हम कुछ बोल नहीं पाए लेकिन मां तुम ही सोचो वो लड़की हॉस्टल में रह कर आई है । वहां कौन देखने गया था कि क्या करती थी, कितने लड़कों के साथ घूमती थी । मैंने तो तभी कहा था ऐसी लड़कियां क्या किसी की गृहस्थी बसाएंगी? ऐसी लड़कियों का तो कोई चरित्र (Charitra) थोड़े ही होता है?” मिष्ठी ने अनजाने में सीमा को सुगंधा जी से कहते हुए सुना।

“क्या हॉस्टल में रहने से किसी का चरित्र (Charitra) खराब हो जाता है या उसके पुरुष मित्र होने से? किसी के साथ घूमने-फिरने से, उठने बैठने से, बात करने से, हंसी मजाक करने से, कैसे किसी का चरित्र खराब हो सकता है? चरित्र मापने का ये कौन सा पैमाना है जिसमें सिर्फ लड़कियों का चरित्र मापा जाता है लड़कों का नहीं? लड़के तो किसी के साथ कुछ गलत भी कर दे तो भी उनका चरित्र साफ़ रहता है ।

दोष तो उन बेचारी लड़कियों का होता है जिसके साथ गलत भी होता है और उनको समझने की जगह लोग उन पर ही दोष लगाते हैं । लड़के भी बाहर रहकर पढ़ते हैं, नौकरी करते हैं तो उनका चरित्र भी खराब होना चाहिए ना सिर्फ लड़कियों का क्यों? हर बार लड़कियों को ही चरित्र प्रमाण पत्र देना पड़ता है, लड़कों को क्यों नहीं?

सच कहते हैं लोग, औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन होती है दूसरा कोई नहीं” । अचानक से मिष्ठी के वहां आ जाने पर और उसके जवाब को सुनकर मां बेटी हड़बड़ा सी गई । “मिष्ठी ये क्या तरीका है अपनी ननद से बात करने का? तुम्हारे मां-बाप ने ये भी संस्कार नहीं दिए की बड़ों से कैसे बात करते हैं?” सुगंधा जी ने मिष्ठी पर चिल्लाते हुए कहा ।

मेरे माता पिता ने तो बहुत अच्छे संस्कार दिए है मम्मी जी लेकिन शायद आप भूल गई हैं । आपके सामने दीदी मेरी बुराई कर रही है, मुझ पर चरित्रहीन होने का आरोप लगा रही है और आप कुछ नहीं कह रही हैं । और सही कहा दीदी आपने… हॉस्टल में रहने वाली लड़कियों का तो कोई चरित्र नहीं होता, चरित्रहीन होती है । चरित्र तो सिर्फ घर में रहने वाली लड़कियों का होता है । गलती मेरी है जो मैंने आप लोगों को अपना समझा । आज मिष्ठी ने पहली बार उन लोगों का विरोध किया था और ये तय कर लिया था अब से किसी की गलत बात नहीं सहन करेगी फिर वो चाहे कोई भी हो ।

सुगंधा जी और सीमा वही मिष्ठी की कमियां निकालते हुए बैठी रही और मिष्ठी उनको छोड़ अपने कमरे में आ गई ।

दोस्तों आज जहां लड़कियां हर चीज में बुलंदियों को छू रही है वहां इस तरह की सोच कहां तक सही है? आप ही बताएं हम कौन होते हैं किसी को चरित्र प्रमाण देने वाले…


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आँचल बृजेश मौर्य चाय के पल की संस्थापक के साथ-साथ इस वेबसाइट की प्रमुख लेखिका भी है। उन्होंने ललित कला (फाइन आर्ट्स – Fine Arts) में स्नातक, संगीत में डिप्लोमा किया है और एलएलबी की छात्रा (Student of LLB) है।ललित कला (फाइन आर्ट्स) प्रैक्टिस और अपनी पढ़ाई के साथ साथ, आंचल बृजेश मौर्य विभिन्न विषयों जैसे महिला सशक्तिकरण, भारतीय संविधान, कानूनों और विनियमों इत्यादि पर ब्लॉग लिखती हैं। इसके अलावा उनकी रुचि स्वरचित कहानियां, कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां इत्यादि लिखने में है।

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