आत्मसम्मान । Aatmasammaan: Short Story in Hindi of a Wife’s Fight for Her Dignity

आत्मसम्मान । Aatmasammaan: Short Story in Hindi of a Wife’s Fight for Her Dignity

यह Hindi Kahani शैली की है जो अपने आत्मसम्मान (Aatmasammaan or Self-respect) की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम और फैसला लेती है जो उसकी जिंदगी को उलट-पुलट कर रख देती है। तो आइए जानते हैं ऐसा क्या हुआ था शैली के साथ जिसने उसे अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए मजबूर किया उस फैसले को लेने के लिए।

आत्मसम्मान । Aatmasammaan: A Self-respect Hindi Kahani। An Emotional Short Story in Hindi of a Wife’s Fight for Her Dignity:

शैली ये ठीक नहीं है, रंजन तुम्हारा पति है । उसके साथ इस तरह का व्यवहार, ये ठीक नहीं है, लोग क्या कहेंगे कि तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हें यही संस्कार दिया है ।

शैली एक हंसमुख और चंचल लड़की है, जिससे मिलती उसका दिल जीत लेती । उसकी हंसी जैसे पतझड़ में बसंत लगती थी । सुंदरता तो ऐसी जैसे भगवान को कितनी फुर्सत थी इसे बनाते वक्त । हर एक चीज को इतनी बारीकी से नापतोल कर बनाया । रंग जैसे चांदनी की किरण सी उजली, आंखें तो ऐसी की कोई देखे तो बस देखता ही रहे ।

रंजन की मां सावित्री देवी ने उसे एक समारोह में देखा था । उसे देखते ही मोह गई और अपने घर की बहू बना कर ले आई । सबको शैली की किस्मत पर नाज हुआ कि घर बैठे इतने बड़े घर का रिश्ता आया और बिना कोई दान दहेज के शादी भी हुई ।

ये अलग बात है कि शैली के पिता ने अपने हैसियत से बढ़कर किया सब । पर इस बात से खुश थे की बेटी वहां राज करेगी । हर पिता की तरह उनका भी सपना सच हो गया था कि बेटी अच्छे घर में जाए ।

शैली को भी अपनी किस्मत पर यकीन नहीं होता था कि इतने अच्छे घर में उसकी शादी हुई । इतना बड़ा घर, नौकर-चाकर, सुख सुविधा की सारी चीजें जिसके बारे में वह कभी सोच भी नहीं सकती थी ।

शादी के कुछ महीनों तक तो सब अच्छा चलता रहा पर धीरे धीरे रंजन का गुस्सा सामने आने लगा ।

रंजन का बहुत बड़ा बिजनेस था वह काम के सिलसिले में अक्सर देर से घर आता लेकिन शैली उसका खाने पर इंतजार करती थी । वो उसके आने पर ही खाना खाती थी । रंजन जब घर आता तो हमेशा उसका मूड खराब रहता। छोटी-छोटी बातों पर देर रात हंगामा कर देता ।

कभी खाना अच्छा नहीं लगा तो, कभी एसी का टेंपरेचर कम ज्यादा है तो, कभी उसकी चीजें समय पर उसके हाथ में नहीं मिली तो या उसके सामने शैली का फोन बजा तो उसका गुस्सा आना तय था । और वो गुस्सा फिर शैली के गालों पर निशान छोड़ जाता । शैली हमेशा कोशिश करती कि रंजन को गुस्सा ना आए लेकिन कोई ना कोई कमी निकाल कर रंजन अपने काम का सारा गुस्सा शैली पर निकाल लेता ।

शैली भी कब तक सहती । आज उसने रंजन को जवाब दे दिया उसी की भाषा में । तो उसकी सास सावित्री देवी आग बबूला हो गई की पत्नी का क्या यही धर्म है? तुम्हें तो भगवान नरक में भी जगह नहीं देगा । इतने बड़े घर में शादी होने के लिए लड़कियां व्रत उपवास क्या-क्या नहीं करती और तुम्हें तो बैठे-बिठाए मिल गया तो कोई कदर नहीं ।

पुरुष है… काम के टेंशन में गुस्सा आ जाता है और तुम कौन सा कम हो, क्यों उसकी जरूरतों का ठीक से ध्यान नहीं रखती हो? पत्नी का फर्ज नहीं निभाओगी तो क्या वह तुम्हारी आरती उतारेगा?

मां जी आज आपको बहुत बुरा लगा । जब इतने दिनों से मेरे साथ हो रहा था तो आपके मुंह से एक शब्द नहीं निकला कि रंजन क्यों बहू को मारता है ।

उसे ऐसा नहीं करना चाहिए! मैंने जब आपसे कहा कि मां जी आप रंजन से बात करिए तो आपने कहा ये पति-पत्नी के बीच की बात है मैं इसमें नहीं बोल सकती । तो अब क्या हो गया, ये भी तो पति-पत्नी के बीच की बात है ।

और रही बात नरक में भी जगह नहीं मिलने की, तो आपको क्या लगता है अभी मैं स्वर्ग में हूं… बोलकर शैली अपने कमरे में चली गई ।

तेरी इतनी हिम्मत कि तू अपनी गलती मानने की जगह मुझसे जबान लड़ाएं । अभी तेरे मां-बाप को बुलाती हूं, यही संस्कार दिए हैं अपनी बेटी को… गुस्से में सावित्री देवी शैली के माता-पिता के पास फोन लगाने अपने कमरे में चली गई ।

सावित्री जी का फोन आते ही शैली के माता-पिता तुरंत शैली के ससुराल पहुंचे । सावित्री जी ने सारी बातें मिर्च-मसाला लगाकर बतायी जैसे रंजन की कोई गलती ही न हो । सावित्री जी की बातों को सुनकर शैली के माता-पिता ने भी शैली को ही दोषी मान लिया और शैली पर ही बरस पड़े ।

शैली की मां ने कहा बेटी क्या हमने तुम्हें यही संस्कार दिए हैं कि तुम अपने पति पर हाथ उठाओ? क्या हमने तुम्हें इसीलिए इतना पढ़ाया लिखाया तुम अपने पति का सम्मान ना करो? क्या कमी है रंजन में बस यही ना कि उसे गुस्सा ज्यादा आता है?

किस मर्द को गुस्सा नहीं आता? क्या तुम्हारे पिता को गुस्सा नहीं आता तो क्या मैंने कभी उन पर हाथ उठाया? और अगर रंजन ने तुम पर कभी गुस्से में हाथ उठा भी दिया तो ये पति का अधिकार है । क्या तुम इस बात को इग्नोर नहीं कर सकती हो? अगर इस तरह से तुम भी करती रही तो तुम्हारी गृहस्थी कैसे चलेगी?

मां-पिताजी ये एक दिन की बात नहीं है । हमारी शादी के एक साल हो गए हैं और इस एक साल में मैंने शायद ही कोई दिन बिना थप्पड़ खाए बिताया हो । और जब भी आप लोगों को बताया तो आप लोगों ने मुझे ही एडजेस्ट करने की सलाह दी, कभी रंजन से बात करने की कोशिश नहीं की ।

क्या पति का अधिकार सिर्फ उस पर हाथ उठाना, उस पर अपना गुस्सा निकालना है? क्या पत्नी की कोई भावना नहीं, क्या उसका कोई आत्मसम्मान (Aatmasammaan) नहीं? क्या वो इंसान नहीं, उसे दर्द नहीं होता या उसे जानवर समझ लिया जाता है जिसे जब चाहा पीट लिया । जानवर भी अपनी सुरक्षा के लिए पलट कर जवाब देता है तो मैं तो जीती जागती इंसान हूं ।

कब तक सहन करूं और आप लोग ही तो शादी के पहले कहते थे कि गलत करने से ज्यादा गलत सहना है ।

अब जब मैंने अपने आत्मसम्मान के लिए कदम उठाया तो आप सब मुझे शेरनी से चुहिया क्यों बनाना चाहते हैं? मां-पिताजी अब और नहीं रह सकती ऐसे इंसान के साथ… शैली ने अपने माता-पिता से कहा ।

बेटा… लेकिन… तुम्हारे छोटी बहन की शादी होने वाली है ऐसे में तुम अपना घर छोड़कर मायके आ जाओगी तो वो लोग भी क्या सोचेंगे छोटी के बारे में । कहीं इस वजह को जानकर उन लोगों ने रिश्ता तोड़ दिया तो । क्योंकि ऐसी बातें छुपती थोड़ी ही हैं । हम समाज में क्या जवाब देंगे… शैली के पिता ने शैली को समझाने की कोशिश की ।

अगर तुम में इतना ही घमंड है तो निकल जाओ इस घर से । इस घर में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है । जब बाहर जाकर धक्के खाओगी तो अकल ठिकाने आ जाएगी कि कितने ऐसो आराम से रहती थी । अपने घमंड में तुम खुद अपनी जिंदगी खराब कर रही हो… सावित्री देवी ने गुस्से में शैली से कहा ।

आप क्या मुझे इस घर से निकालेंगी, मैं खुद इस घर को छोड़कर जा रही हूं । इस नरक में रहने से अच्छा बाहर जाकर धक्के खा लूंगी

और हां मां-पिताजी… आप लोग भी परेशान मत होइए, मैं आप लोगों पर भी बोझ नहीं बनूंगी । मैं अपने आपको खुद संभाल सकती हूं । शैली ने अपने सास सावित्री देवी और अपने माता-पिता को अपना फैसला सुनाया और अपना सामान लेकर वहां से जाने लगी ।

तभी शैली के पिता ने उसे रोकने की कोशिश की और कहा शैली बेटा रुक जाओ… इस तरह से कोई घर छोड़कर जाता है क्या? पहने रंजन को आ तो जाने दो, मैं बात करूंगा उससे । कोई ना कोई समाधान निकल ही जाएगा । बेकार में बात को क्यों बढ़ाना ।

नहीं पिताजी… अब बात करने के लिए आप लोगों ने बहुत देर कर दी । इससे पहले मैं अपना आत्मसम्मान (self-respect) भूल जाऊं, मुझे इस घर से चले जाना चाहिए । इतना कहकर शैली उस घर को छोड़ कर चली गई…


दोस्तों आप ही बताइए क्या हमें अपने आत्मसम्मान (Aatmasammaan) की रक्षा नहीं करनी चाहिए? क्या समाज के डर से अपने आप को जीते जी मार देना चाहिए? क्या शैली ने अपने आत्मसम्मान (Self-respect) के लिए जो किया वो गलत किया…


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आँचल बृजेश मौर्य चाय के पल की संस्थापक के साथ-साथ इस वेबसाइट की प्रमुख लेखिका भी है। उन्होंने ललित कला (फाइन आर्ट्स – Fine Arts) में स्नातक, संगीत में डिप्लोमा किया है और एलएलबी की छात्रा (Student of LLB) है।ललित कला (फाइन आर्ट्स) प्रैक्टिस और अपनी पढ़ाई के साथ साथ, आंचल बृजेश मौर्य विभिन्न विषयों जैसे महिला सशक्तिकरण, भारतीय संविधान, कानूनों और विनियमों इत्यादि पर ब्लॉग लिखती हैं। इसके अलावा उनकी रुचि स्वरचित कहानियां, कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां इत्यादि लिखने में है।

2 Comments on “आत्मसम्मान । Aatmasammaan: Short Story in Hindi of a Wife’s Fight for Her Dignity

  1. बहुत ही अच्छी कहानी है. बहुत ही ठोस और रोचक बुनावट है. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में काफी प्रासंगिक है. बेजोड़ लेखन.

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