रंग। Colour: Love Has No Ego

रंग। Colour: Love Has No Ego

रंग (Colour) शालिनी की एक भावनात्मक हिंद कहानी (Emotional Story in Hindi) है जिसकी कल्पना और लेखन (swarachit kahani) आंचल बृजेश मौर्य ने किया है। यह कहानी शालिनी के जीवन की घटनाओं पर आधारित है, जो यह कठिन सबक सीखती है कि प्यार में अहंकार नहीं होता है।

अपने जीवन के उतार-चढ़ाव से शालिनी को एहसास हुआ कि उसे अपने दिल की बात सुननी चाहिए थी। यह कहानी हमें याद दिलाती है कि अपनी गलतियों को सुधारने में कभी देर नहीं होती और हमें हमेशा अपना जीवन पूरी तरह से जीने का प्रयास करना चाहिए।

तो आइए इस भावनात्मक हिंदी कहानी (Emotional Hindi Story) के माध्यम से जानें कि शालिनी के साथ क्या हुआ था?

रंग। Colour: Emotional Short Story in Hindi of Shalini / Emotional Hindi Story

आसमान में बादलों की आवाजाही लगी थी। सफेद रूई से बादल कभी सूरज की किरणों को ढक लेते तो कभी सूरज की किरणें उन्हें पीछे धकेल देती। दोनों की अठखेलियां चल रही थी।

ठंडी हवा जब चेहरे को छुए तो ऐसा लग रहा था जैसे मां का आंचल चेहरे को छू गया हो। चारों ओर जहां तक नजर जाए लाल, पीले, गुलाबी रंग के फूलों की चादर बिछी है। हवा के साथ इन फूलों की खुशबू तो ऐसे सांसों में समा गई जैसे जीवन में कभी इत्र की आवश्यकता ही नहीं हो।

सच बसंत के मौसम में सचमुच लगता है, कामदेव और रति पृथ्वी पर घूमते हैं। पहाड़ों पर चमकते धूप उसे स्वर्ण पर्वत का रूप दे रहे थे, और उन पहाड़ों पर कहीं-कहीं अमलतास के पेड़ों में खिले फूल ऐसा लग रहा था जैसे स्वर्ण आभूषण में लाल रंग का नग लगा हो, और प्रकृति की देवी ने हरे रंग के वस्त्र और उस पर से यह खूबसूरत स्वर्ण आभूषण पहना है।

पहाड़ों से आ रही झरने की आवाज सुनकर ऐसा प्रतीत होता है, जैसे कोई छोटी सी बच्ची अपने नन्हे-नन्हे पैरों में पायल पहनकर छम-छम करती दौड़ रही है। प्रकृति का यह सुनहरा रूप अद्भुत है, जो आत्मा में अंदर तक बस जाता है और अंदर चल रहे तूफान को शांत कर देता है।

आसपास इतने सारे रंग (Colour) बिखरे हैं, लेकिन मेरे जीवन का तो रंग ही उड़ गया है। जैसे दिनभर धूप में पड़े रहने के बाद किसी कपड़े को शाम को देखो तो जिस तरफ धूप लगी हो उस तरफ के कपड़े का रंग उड़ जाता है। लोग कहते हैं, इस कपड़े का रंग कच्चा था, इसलिए उड़ गया।

 तो क्या मेरे जीवन का रंग (Colour) भी इतना ही कच्चा था? 

काश समय रहते मैंने अपनी गलती को सुधार लिया होता। अपनी आंखों से अहंकार (Arrogance) का पर्दा हटाकर देखा होता तो यह प्रकृति के रंग आज मेरे जीवन में भी होते। मैं शालिनी जिसके जीवन में भी कभी इतने रंग थे कि लोगों को देखकर जलन होती थी।

प्यार करने वाला पति, अपने बच्चों की तरह दुलार करने वाले सास-ससुर, सहेलियों से ननद और नटखट शरारतों से मन प्रसन्न कर देने वाला देवर।

शादी के पहले जब मैं सहेलियों की बातें सुनती की ससुराल में सास, ननद, जेठानी की बातें सुनाई पड़ती है। सारा दिन बस कामों में लगे रहना पड़ता है, अपनी मर्जी से कुछ कर नहीं सकते। तो लगता था कि क्यों हमारे माता-पिता हमें शादी करके ऐसे जेल में भेज देते हैं, जहां बिना गलती की सजा मिलती है। मैं तो शादी के नाम से ही डरती थी।

वैसे तो अगर घर में लड़की पैदा हो जाए तो लोग उदास हो जाते हैं। मां बताती है कि मेरे जन्म पर घर में लोग इतने खुश थे कि घर में कई दिनों तक उत्सव का माहौल था। पिताजी की भी कोई बहन नहीं थी और दादाजी की भी कोई बहन नहीं थी। मैं भी तीन भाइयों के बाद बड़ी मन्नत से पैदा हुई, इसलिए लोगों का प्यार दुलार मेरे प्रति कुछ ज्यादा ही था।

सब की लाडली, सबकी दुलारी जिसे किसी चीज के बारे में पूछते ही उसकी लाइन लग जाए। सच परियों की राजकुमारी सा जीवन था। पिताजी जमींदार थे, पैसों की कोई कमी थी नहीं। किसी चीज के लिए सोचना नहीं पड़ता कभी।

पढ़ाई-लिखाई में कभी मन लगा नहीं, बस पिताजी के रुतबे और पैसे के दम पर स्कूल-कॉलेज में पास होती गई और डिग्री मिल गई। घर में मां और दादी हमेशा कहती कि हमारी बेटी तो इतनी सुंदर है कि इसे तो कोई राजकुमार ही ले जाएगा ।

मुझे आज भी याद है जब पिताजी दादी के पास मुस्कुराते हुए आए और बोले मां देखो मेरी बेटी का भाग्य कल जहां हम लोग शादी में गए थे ना, वहां एक बड़े व्यापारी भी आए थे, उन्हें हमारी शालिनी अपने बड़े बेटे के लिए पसंद आ गई है। वह लोग शालिनी का रिश्ता मांगने के लिए आना चाहते हैं।यह देखो उनके बेटे विप्लव की तस्वीर उन लोगों ने भेजी है। अगर आप लोगों को पसंद हो तो मैं उन लोगों को बुला लेता हूं?

विप्लव सच में तस्वीर में बहुत ही स्मार्ट लग रहे थे। सबको एक बार में ही पसंद आ गए और जल्दी ही मेरी शादी विप्लव से हो गई। मैं भारी-भरकम गहनों और साड़ी से लदी विप्लव की दुल्हन बनकर उसके घर पहुंची। जहां लोगों ने मुझे बहुत प्यार दिया। शुरू-शुरू में तो थोड़ा डर लगता था, कि ससुराल है। लेकिन धीरे-धीरे विप्लव  और उनके परिवार के प्यार और अपनेपन से वह भी जाता रहा।

वैसे तो वहां घर में काम करने के लिए नौकरों की कमी नहीं थी, लेकिन रसोई सासू मां खुद संभालती थी, और मेरी ननद भी उनकी मदद करती थी। मेरे आने पर सासू मां ने रसोई नहीं छोड़ी बाकी के घरों की तरह। वह पहले की तरह रसोई का काम  संभालती थी मैं बस उनकी मदद कर देती थी।

इसी तरह हंसी खेल और प्यार में दिन कब बीत जाता पता ही नहीं चलता। जब मन करता घूमने फिरने, शॉपिंग करने, दोस्तों से मिलने चली जाती। कोई रोक-टोक नहीं थी। मुझे तो मायके की भी याद नहीं आती थी। सब कुछ अच्छा चल रहा था, कि एक दिन मैंने विप्लव को मम्मी जी से कुछ बात करते देखा, लेकिन जब मैं वहां गई तो वह दोनों लोग शांत हो गए और विप्लव ऑफिस निकल गया।

जहां घर में नौकरों की फौज थी वहां बस एक ड्राइवर, एक घर का काम करने के लिए और एक माली काका रह गए। मुझे कुछ अजीब लगा। मैं जब पूछा तो विप्लव बात को टाल गए। लेकिन कई दिनों से वह बहुत टेंशन में रहते थे। पापा जी और विप्लव अब देर रात तक ऑफिस में रहने लगे। घर में भी जैसे एक तनाव का माहौल रहने लगा।

मैं भी यही सोचती बैठी थी कि क्या बात है? घर में सब इतना चुप चुप क्यों है? तभी मेरे फोन पर घंटी बजी, मैंने देखा मेरी बहुत ही खास दोस्त भी का फोन था। फोन पर बात हुई तो उसने बताया कि उसकी सगाई है, परसों और उसने मुझे आने के लिए बहुत रिक्वेस्ट भी किया।

मुझे तो वैसे भी फंक्शन और पार्टिया बहुत अच्छी लगती हैं, तो मैं जाने की तैयारी में लग गई। कब क्या पहनना है, सारी चीजों की मैचिंग है कि नहीं, और खास सगाई के समय पहनने के लिए तो नई ड्रेस खरीदनी है। सब की एक बड़ी सी लिस्ट दिमाग में तैयार करके मैं जल्दी से तैयार हुई और सासू मां के पास जाकर बोली मम्मी जी मैं मार्केट जा रही हूं, शॉपिंग करने। मुझे आने में देर हो जाएगी। मेरी सहेली है की सगाई है, तो उसमें पहनने के लिए नई ड्रेस और नई ज्वेलरी लेनी है। वह भी आ रही है शॉपिंग के लिए, तो थोड़ी देर हो जाएगी।

मेरी बातों को सुनकर सासू मां जो की कोई किताब पढ़ रही थी, उसे बंद करते हुए मुझे अपने पास बैठा कर बोली। बेटा अभी पिछले हफ्ते तुम शॉपिंग पर गई थी ना, और कई सारे ड्रेस भी खरीदे थे, उसमें से कुछ पहन लो, सब तो बहुत सुंदर थे। क्या हुआ उन्हें?

नहीं वह सब मैं अपनी सहेलियों को दिखा चुकी हूं और मुझे कुछ नया और डिजाइनर लेना है, ताकि पार्टी में मैं सबसे अलग दिख सकूं।

 लेकिन बेटा मेरी बात समझने की कोशिश करो, मैं कुछ सोच-समझकर ही बोल रही हूं ना। ठीक है तो तुम मेरी अलमारी से जो पसंद आए ले लो वह भी तो तुम्हारा ही है। उसे तो तुम्हारी सहेलियों ने नहीं देखा ना?

सासू मां की बातें सुनते ही मेरा मूड खराब हो गया और मैं यह बोलते हुए बाहर निकल गई कि मैं किसी की पहनी हुई चीज नहीं पहनती।

आज के पहले मुझे कभी किसी ने रोका-टोका नहीं था किसी भी चीज के लिए। आज पहली बार सासू मां के रोकने पर मुझे बहुत गुस्सा आया, और मैं गुस्से में उटपटांग बोलते हुए वहां से चली गई।

शॉपिंग पर जाकर मेरा मूड कुछ ठीक हुआ। सहेली के साथ मिलकर खूब शॉपिंग की, फंक्शन के सारे प्लान बन गए और खुशी-खुशी गुनगुनाते हुए घर पहुंच गई। घर पहुंचते ही देखा तो विप्लव ऑफिस से आ गए थे, और पता नहीं किस पर नाराज थे।

मां उन्हें शांत करने की कोशिश कर रही थी। मेरे हाथों में इतना सारा शॉपिंग बैग देखकर उनका गुस्सा और बढ़ गया। अचानक से मुझ पर चिल्ला कर बोले तुम्हारा रोज-रोज शॉपिंग होता है। किसे पूछ कर गई थी तुम शॉपिंग करने? मां तुमने मना नहीं किया? तुम्हें तो पता है ना?

हां बेटा मैंने मना किया था, लेकिन बहू नहीं मानी। तुम शांत हो जाओ पहले, इतना गुस्सा ठीक नहीं, हम बात करेंगे।

विप्लव के  इस तरह चिल्लाने से मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया। एक तो सुबह मम्मी जी ने शॉपिंग पर जाने से मना किया इसलिए मूड खराब हो गया था। किसी तरह शॉपिंग पर जाकर ठीक हुआ, तो घर आते ही विप्लव शुरू हो गए।

विप्लव की बातें सुनकर मेरा मूड और खराब हो गया। मां बेटे मुझ पर इस तरह बात कर रहे थे, जैसे कि मैं कोई नौकरानी हूं, जो उनसे पूछ कर काम करूंगी?

मैं भी गुस्से में चिल्लाते हुए विप्लव से न जाने क्या-क्या बोलती रही। मेरी सासू माँ ने जब मुझे शांत करने की कोशिश की तो मैं उन पर भी बरस पड़ी, कि आप तो डायन है, पहले तो बेटे-बहू में लड़ाई करवाती हैं, बहू के खिलाफ बेटे  के कान भरती हैं, उस पर से अच्छी बनने का दिखावा करती है? ऐसी घटिया औरत तो मैंने देखी नहीं। मुझे भिखारी समझ रखा है क्या… जो तुम्हारे उतरन पहनूंगी? और न जाने क्या-क्या अपशब्द बोलती रही।

मेरा इस तरह से सासू मां से बात करना उनका अपमान करना विप्लव सहन नहीं कर पाए, और गुस्से में मुझ पर हाथ उठा दिया। वह थप्पड़ पड़ते ही चारों तरफ सन्नाटा छा गया।

पहली बार दर्द का एहसास हुआ। कोमल गोरे गालों पर तुरंत उंगलियों के निशान उभर आए। जिसे कभी किसी ने फूलों से नहीं छुआ हो। जिससे किसी ने तेज आवाज में बात ना कि हो उस पर थप्पड़ से क्या हाल होगा, यह तो सोचा भी नहीं जा सकता। उसके बाद में गुस्से में मायके आ गई।

मेरे पिताजी और भाइयों ने भी पैसे और रुतबे के घमंड में विप्लव को सबक सिखाने के लिए पुलिस कंप्लेंट कर दी, जिससे विप्लव और उसके परिवार वालों को जेल भी जाना पड़ा। व्यापार में विप्लव को भारी नुकसान झेलना पड़ा था, और उस पर यह पुलिस कंप्लेंट की वजह से उनका नाम और भी खराब हो गया। उन्हें सामाजिक रूप से भी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी। जो कि उनके व्यापार के लिए काफी नुकसानदायक रहा।

पिताजी ने सभी रिश्तेदारों के कहने और उनकी बातों में आकर मेरा और विप्लव का तलाक करवाने का फैसला कर लिया। दादी ने पापा को बहुत समझाने की कोशिश की, की बेटी का घर मत बिगाड़ो। लेकिन पापा ने कहा उसने मेरी बेटी पर हाथ उठाकर मेरी बेइज्जती की है, उन्हें उनकी हैसियत बतानी पड़ेगी। अरे व्यापार में घाटा हुआ तो हमसे मांग लेते, हम दे देते। उसके लिए क्या बेटी पर हाथ उठाएंगे?

ऐसे लोगों के साथ मैं अपनी बेटी का रिश्ता नहीं जोड़ रख सकता। भिखारी कहीं के। उन्हें तो सच का भिखारी बनाकर छोडूंगा।रिश्तेदारों ने भी आग में घी का काम किया, और पिताजी का गुस्सा कम होने की बजाय बढ़ता गए।

जिसका परिणाम यह हुआ कि मेरा और विप्लव का तलाक हो गया। मेरे तलाक होने के कुछ ही समय बाद दादी का, फिर पिताजी का स्वर्गवास हो गया। घर में भाई- भाभी का राज हो गया। अब मैं अपना घर जलाकर दिन-रात भाभी के ताने सुनती हूं।

ऐसा नहीं की विप्लव मुझे लेने नहीं आए। वह मुझे कई बार लेने आए। अपनी गलती के लिए सबके सामने मुझसे माफी मांगी और घर लौट चलने के लिए भी कहा। लेकिन मैंने ही अपने घमंड और अहंकार में विप्लव के प्यार को नहीं समझा। मुझे तो उस समय विप्लव को अपने आगे झुकाकर बहुत खुशी मिल रही थी।

विप्लव ने मुझे बहुत समझाया कि, अपने हाथों अपना घर मत जलाओ। लेकिन आंखों पर अहंकार के परदे ने उसके प्यार को देखने ही नहीं दिया। तलाक मिलने के बाद मैं बड़े शान से पिताजी के साथ अपनी बड़ी सी गाड़ी में जा बैठी और विप्लव वही कोर्ट की बाहर एक बेंच पर बैठा था। उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उसमें जान ही नहीं है। यह तो वह विप्लव है ही नहीं जिसकी फोटो देखते ही मैं मोहित हो गई थी।

बढ़ी हुई दाढ़ी, नॉर्मल सा टीशर्ट डालें, बाल भी इधर-उधर बिखरे हुए।आस पास लोगों की भीड़ होते हुए भी ऐसा लग रहा था जैसे की वह कहीं दूर है। उसके चेहरे पर मन मोह लेने वाली मुस्कान की जगह चिंता की लकीरें उभर आई थी।

सावला सलोना मनमोहक रंग अब काला दिख रहा था। उस दिन विप्लव को देखकर मन तड़प उठा। मन किया जाकर उसे गले लगा लूं, और उसके साथ चली जाऊं। लेकिन तभी मेरे अहंकार ने अचानक अपना सर उठा लिया और मैं पिताजी के साथ घर आ गई।

पिताजी जब तक थे बात कुछ और थी, लेकिन अब भाई-भाभी के लिए तो मैं एक बोझ हूं। सच कहा जाता है जीवन के रंग को संभालने, सँवारने और उसे पक्का करने के लिए धैर्य, सहनशीलता, विश्वास और प्यार की जरूरत होती है, क्योंकि झुकता वही है जो प्यार करता है।

 प्यार में अहंकार नहीं होता। यह बात मुझे इतनी देर से समझ आई कि अब मैं अपनी गलतियों को सुधार नहीं सकती। गलतियां भी वक्त रहते सुधार लिया जाए तो ही सही होता है। आज विप्लव की एक बात बहुत याद आ रही थी।

विप्लव हमेशा कहते थे कि यह उनके फेवरेट कवि की कविता है।

की जिंदगानी हमारी अब इस मोड़ से, 
लेकर जाती है किस मोड पर देखिए,
और जब कहीं कोई रास्ता दिखाई ना दे,
तो दिल जिधर कह रहा हो उधर देखिए।

काश मैने भी उस दिन अपने दिल की सुनी होती तो प्रकृति के यह रंग, राग- अनुराग आज मेरे जीवन में भी होते। मेरा जीवन पतझड़ नहीं बसंत होता। मेरे जीवन में भी रंग होता, मेरे जीवन में भी रंग होता…


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आँचल बृजेश मौर्य चाय के पल की संस्थापक के साथ-साथ इस वेबसाइट की प्रमुख लेखिका भी है। उन्होंने ललित कला (फाइन आर्ट्स – Fine Arts) में स्नातक, संगीत में डिप्लोमा किया है और एलएलबी की छात्रा (Student of LLB) है।ललित कला (फाइन आर्ट्स) प्रैक्टिस और अपनी पढ़ाई के साथ साथ, आंचल बृजेश मौर्य विभिन्न विषयों जैसे महिला सशक्तिकरण, भारतीय संविधान, कानूनों और विनियमों इत्यादि पर ब्लॉग लिखती हैं। इसके अलावा उनकी रुचि स्वरचित कहानियां, कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां इत्यादि लिखने में है।

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