जिंदगी हमारी तो फैसला किसी और का क्योँ ? Jindagi Hamari to Faisala Kisi Aur ka Kyo?

जिंदगी हमारी तो फैसला किसी और का क्योँ ? Jindagi Hamari to Faisala Kisi Aur ka Kyo?

जिंदगी हमारी तो फैसला किसी और का क्योँ (Jindagi Hamari to Faisala Kisi Aur ka Kyo) रीमा जी की कहानी है जो कि हमेशा दूसरों की खुशियों के लिए जीती रही। दूसरों के फैसलों को अपनी नियति मानती रही लेकिन एक फैसले ने उनके जीवन में प्यार, अपनापन और सुकून लौटा दिया। क्या था वो फैसला? आइये जानते है, इस Hindi Kahani में…

जिंदगी हमारी तो फैसला किसी और का क्योँ ? Jindagi Hamari to Faisala Kisi Aur ka Kyo? A Heart-touching Short Story in Hindi

“हेलो बड़ी मां कैसी हैं आप, आप ने जो गुड़िया और ड्रेस भेजी थी वह बहुत ही सुंदर है। मेरे सारे दोस्तों को बहुत अच्छी लगी। आपकी बहुत याद आती है बड़ी मां, आप कब आएंगी। अच्छा अब मैं जाती हूं, सब लोग बुला रहे हैं केक काटने के लिए ,बाय बड़ी मां।”

यह एक प्यारा सा मैसेज आया था रीमा जी के फोन पर शिया का। शिया, रीमा जी की नातिन है जो उन्हें बड़ी मां कहकर बुलाती है और आज शिया का जन्मदिन है।

रीमा जी एक छोटे से गांव की सरकारी स्कूल में अध्यापिका थी, जो कि अब रिटायर हो चुकी है और किसी कारण से उसी गांव में आकर रहती हैं। आइए जानते हैं उन्होंने इस छोटे से गांव में अकेले रहने का फैसला क्यों किया।

आज से तीस साल पहले, रीमा जी और नीलेश जी का विवाह हुआ था और उनका वैवाहिक जीवन बहुत अच्छा चल रहा था। नीलेश जी का कपड़ों का छोटा सा कारोबार था और रीमा जी एक स्कूल टीचर थी। उनके तीन बच्चे नीरज, रोहित, और सबसे छोटी शालू। शालू सबसे छोटी और सबकी लाडली थी। लेकिन अचानक एक दिन नीलेश जी की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई।

अब घर और बच्चों की सारी जिम्मेदारी अकेले रीमा जी पर आ गई जो कि रीमा जी ने बखूबी निभाया। दोनों बेटे पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़े हो गए और अपनी पसंद की लड़कियों से शादी कर ली। रीमा जी को भी कोई आपत्ति नहीं हुई क्योंकि बच्चों की खुशी में ही अपनी खुशी है ऐसा मानती थी वो।

शालू जिसकी शादी शैलेश से हुई थी उसी घर में घर जमाई था। जिसकी आमदनी बहुत कम होने के कारण अलग घर बनाने के लिए सोच भी नहीं सकता था। आए दिन शालू और शैलेश को लेकर रीमा जी के घर में महाभारत होती रहती थी और एक दिन ऐसा कुछ हुआ जिससे सब कुछ बदल गया।

“शालू… शालू… तुमने किस से पूछ कर अपनी बेटी को ये चॉकलेट दिया? और देखो उसने क्या किया? पूरा चॉकलेट राज के कपड़ों पर लगा दिया। ये चॉकलेट मैंने अपनी सहेली के बेटे के बर्थडे पार्टी के लिए मंगवाए थे, तुम्हारी बेटी के लिए नहीं।” बड़ी बहू रोशनी गुस्से में चिल्लाए जा रही थी।

“लेकिन मामी मैं तो राज को चॉकलेट खिला रही थी, वह तो गलती से गिर गया” शिया ने कहा। 

” तू चुप कर, तुम मां बेटी को जबान चलाने के सिवा तो कुछ काम है ही नहीं।” रोशनी ने गुस्से कहा।

“भाभी क्यों बिना वजह बच्ची को डांट रही हो। उसने बताया तो कि राज को खिला रही थी, गलती से गिर गया और मुझे नहीं पता था कि आपने यह चॉकलेट कहीं ले जाने के लिए मंगवाए थे। यही डाइनिंग टेबल पर चॉकलेट का बॉक्स रखा था तो शिया ने देख लिया और उसके लिए जिद करने लगी तो मैंने उसे दे दिया।”

“ये मेरा घर है मैं जहां चाहूं वहां अपनी चीजें रख सकती हूं, और तुम मियां बीवी कम थे क्या जो इसे भी पैदा कर लिया हमारे सर पर नाचने के लिए।

“सही कह रही हो दीदी, काम के ना काज के नौ मन अनाज के” छोटी बहू सपना ने आग में घी डालने का काम किया। “ये सारा दिन बाहर मांजी के साथ बैठकर पड़ोसियों से गप्पे मारती रहती हैं और शैलेश जी सारा दिन बस इधर-उधर घूमते रहते हैं। खाने के समय आ जाते हैं, जानते हैं आराम से बैठे-बिठाए खाने को मिल रहा है तो काम करने की क्या जरूरत है।”

“और क्या छोटी, जिसे आवारागर्दी करने से फुर्सत नहीं वह काम क्या करेगा

“बस भाभी बहुत हो गया! आपने मुझे और शिया को कहा मैंने सुन लिया, लेकिन शैलेश जी के लिए मैं एक शब्द नहीं सुनूंगी। और आप लोग किस घर की बात कर रही हैं, क्या यह घर मेरा नहीं है? क्या मैं इस घर की बेटी नहीं हूं?”

“ये घर तब तक तुम्हारा था जब तक तुम्हारी शादी नहीं हुई थी। और शादी के बाद लड़की का घर उसका ससुराल होता है मायका नहीं। तुमने किसी अनाथ लड़के से शादी की तो उसकी सजा जीवन भर हम क्यों भुगते। शैलेश से शादी का फैसला तुमने लिया, हमने तो तुम्हें मना किया था।”

“बस बहु…. बहुत हो गया, अगर किसी का समय ठीक नहीं हो तो उसे इतना भी नीचे नहीं गिरा देना चाहिए कि वो उठने की कोशिश ही ना करें। कब से सुन रही हैं तुम लोगों की ये महाभारत और किसने कहा शैलेश जी कुछ काम नहीं करते। बस समय उनका साथ नहीं दे रहा है तो इसका मतलब यह नहीं कि तुम लोग उनके बारे में कुछ भी कहोगे।”

“ये सब तुम्हारी वजह से तो हो रहा है मां” नीरज ने कहा। नीरज और रोहित भी तब तक वापस आ गए जो बाजार गए थे घर का सामान लेने।”हम भी थक चुके हैं मां रोज-रोज की इस किच-किच से और उनकी जिम्मेदारी उठाते- उठाते। और अब तो शिया की पढ़ाई का भी खर्च हमें ही देखना पड़ता है। अब हमसे और नहीं होगा मां।”

“लेकिन नीरज-रोहित, शालू कहां जाएगी, तुम ही लोग सोचो। बहुओं का तो मैं समझ सकती हूं, लेकिन तुम तो उसके भाई हो।”

“वो जो भी हो मां, हमारे अपने ही खर्चे इतने हैं, वो ही पूरे नहीं हो पा रहे हैं तो इन लोगों की जिम्मेदारी कब तक उठाते रहेंगे।”

“भैया सही कह रहे हैं मां” रोहित ने भी नीरज का साथ देते हुए उसकी हां में हां मिलाया। “आपने और पिताजी ने तो एक घर भी नहीं बनाया मां, हम आज तक एक किराए के घर में ही रह रहे हैं ।”

रीमा जी इससे परेशान होकर बोली कि अब तुम लोग ही फैसला करो कि क्या करना है। इसका समाधान तो निकालना ही होगा। यह रोज-रोज के झगड़ों से मैं परेशान हो गई हूं।

दोनों बेटों और बहुओं ने मिलकर यह फैसला लिया कि शालू को घर से जाना होगा। जब रीमा जी ने इसका विरोध किया तो बड़ी बहू रोशनी ने कहा, “मां जी आप भी क्यों नहीं शालू के साथ ही चली जाती हैं हमारी भी बला टले।”

रीमा जी ने फैसला मंजूर कर लिया और बेटी-दामाद के साथ दूसरे शहर में नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत की। अपनी जमा पूंजी लगाकर दामाद को एक छोटी सी किराने की दुकान खुलवा दी और उनकी पेंशन से घर का खर्च और शालू की बेटी शिया की पढ़ाई का खर्च चल रहा था।

धीरे-धीरे समय का पहिया घूमा और शैलेश एक किराना स्टोर चलाने वाले से होलसेल व्यापारी बन गए। लेकिन कहते हैं ना कि पैसे के साथ घमंड भी आता है और वही हुआ।

अब रीमा जी की उसी घर में नौकर बराबर भी इज्जत नहीं रही। दामाद तो दामाद, जब बेटी भी भला बुरा बोलने में पीछे नहीं रहे तो कैसा लगेगा। जिसके लिए अपना सब कुछ छोड़ा, आज उसके लिए ही बोझ बन गई। जिसके पैसों से राजा बने, आज उसे ही भिखारी समझने लगे।

रीमा जी एक स्वाभिमानी स्त्री थी। उन्होंने बेटी का घर छोड़ना ही ठीक समझा। बेटों के पास भी वापस जा नहीं सकती थी, इसीलिए फिर से उसी गांव में वापस जाने का फैसला किया जिस गांव में वह पहले पढ़ाती थी।

उस गांव के लोग आज भी उनसे उतना ही प्यार करते थे जितना पहले। उसी गांव में एक छोटा सा मकान किराए पर लेकर उसमें रहने लगी और वहां के बच्चों को आज भी मुफ्त में पढ़ाया करती हैं। उनके जीवन यापन के लिए उनकी पेंशन पर्याप्त थी बल्कि वह उससे दूसरों की मदद भी करती थी। गांव वाले भी हमेशा उनकी मदद को तैयार रहते थे, और उन्हें गुरु मां कहकर बुलाते थे।

दोस्तों यह थी हमारी रीमा जी, जो कि हमेशा दूसरों की खुशियों के लिए जीती रही। दूसरों के फैसलों को अपनी नियति मानती रही। लेकिन उनके एक छोटे से फैसले ने उनके जीवन में प्यार, अपनापन और सुकून, सब लौटा दिया। दोस्तों जब जिंदगी हमारी तो फैसला किसी और का क्यों (Jindagi Hamari to Faisala Kisi Aur ka Kyo)?

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जिंदगी हमारी तो फैसला किसी और का क्योँ ? Jindagi Hamari to Faisala Kisi Aur ka Kyo? A Heart-touching Short Story in Hindi

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आँचल बृजेश मौर्य चाय के पल की संस्थापक के साथ-साथ इस वेबसाइट की प्रमुख लेखिका भी है। उन्होंने ललित कला (फाइन आर्ट्स – Fine Arts) में स्नातक, संगीत में डिप्लोमा किया है और एलएलबी की छात्रा (Student of LLB) है।ललित कला (फाइन आर्ट्स) प्रैक्टिस और अपनी पढ़ाई के साथ साथ, आंचल बृजेश मौर्य विभिन्न विषयों जैसे महिला सशक्तिकरण, भारतीय संविधान, कानूनों और विनियमों इत्यादि पर ब्लॉग लिखती हैं। इसके अलावा उनकी रुचि स्वरचित कहानियां, कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां इत्यादि लिखने में है।

8 Comments on “जिंदगी हमारी तो फैसला किसी और का क्योँ ? Jindagi Hamari to Faisala Kisi Aur ka Kyo?

    • धन्यावद सर। बहुत ही जल्द आपको दूसरी कहानी पढ़ने को मिलेगी। आपके प्रोत्साहन के लिए आभार!

  1. आंचल बृजेश मौर्या जी आपकी हर कहानी कुछ ना कुछ सबक ही देती है ऊपर वाले से गुजारिश है कि आपकी सोच और कलम मे सच लिखने की ताकत दे

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