वरदान – Vardaan। Breaking the Taboo: A Hindi Story on Women’s Period

वरदान – Vardaan। Breaking the Taboo: A Hindi Story on Women’s Period

वरदान (Vardaan ) एक Hindi Kahani है जो मासिक धर्म (menstruation) से जुड़ी रूढ़िवादी सोच को चुनौती देती है, जिसमें एक महिला के संघर्ष को चित्रित किया गया है, जिसे मासिक धर्म के कारण घर में अपनी सास द्वारा भेदभाव का सामना करना पड़ता है। यह रूढ़िवादी मानसिकता को तोड़ने और मासिक धर्म के स्वास्थ्य (menstrual health) के बारे में बातचीत को सामान्य बनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

वरदान – Vardaan। Breaking the Taboo: A Story on Women’s Period:

“बहू… तुम यहां क्यों आई, जाओ अपने कमरे में । ‘शांति’ ओ ‘शांति’ इधर आ, ये रसोई जरा धुल दे और चूल्हा भी साफ कर देना।“ लेकिन मां जी, मैंने तो थोड़ी देर पहले ही ये सब साफ किया है और अभी तो गंदे भी नहीं हुए हैं।

“तू मुझसे ज्यादा बहस मत कर, जो कहा वो कर…” बोलते हुए प्रमिला जी रसोई से बाहर चली गई और उनकी मेड शांति उनके बताए अनुसार काम में लग गई । यह है हमारी प्रमिला जी, जो आज भी पुराने विचारों और प्रथाओं से बंधी है ।

“बहु… तुम्हारा खाना कमरे में ही ले आई हूं, खा लेना और शांति को आवाज लगा देना । वो प्लेट ले जाएगी, तुम्हें रसोई में आने की जरूरत नहीं।“ प्रमिला जी की आवाज सुनते ही निधि जो कि अपने कमरे में लेट कर फोन चला रही थी, उठ गई । “मम्मी जी… आप क्यों बिना वजह परेशान हो रही है, मैं खुद आ जाती । और आज आपने मुझे कुछ काम भी नहीं करने दिया, मैं ठीक हूं मम्मी जी,  मुझे कुछ नहीं हुआ है।“

“बहू… ये क्या बच्चों जैसी हरकतें कर रही हो, तुम्हें नहीं पता कि क्या हुआ है । इन दिनों तुम रसोई में पैर भी नहीं रखोगी । जो कुछ चाहिए मुझसे या शांति से बता देना । और हां… हो सके तो अपना बेड नीचे अलग फर्श पर लगा लेना क्योंकि महीने के ये 5 दिन तुम रोज की तरह नहीं रह सकती ।

मेरे घर में यही नियम है और तुम्हें भी इसे मानना होगा। और 5 दिन बाद अपने कमरे के परदे, चादर, तकिए, डोरमैट इत्यादि धो लेना।“ प्रमिला जी इतना कहकर बिना कुछ सुने ही निधि के कमरे के दरवाजे पर खाने की प्लेट रख कर चली जाती हैं । निधि को समझ नहीं आता है कि क्या कहे ।

आज के समय में भी पीरियड [ माहवारी ] को छुआछूत मानते हैं । एक तो ‘पीरियड’ में होने वाले दर्द से वैसे ही उसका मूड खराब था, प्रमिला जी की बातों से जैसे कई गुना और बढ़ गया । वह खाने की थाली वही छोड़कर अंदर आकर लेट गई ।

विशाल [ निधि का पति ] जब शाम को ऑफिस से आया तो उसने देखा खाने की थाली दरवाजे पर पड़ी है । उसे कुछ समझ नहीं आया, वो निधि को बुलाता हुआ अंदर गया तो देखा कि निधि लेटी हुई थी । क्या हुआ… ये खाने की थाली दरवाजे के बाहर क्यों रखी है? और आज तुम लेटी हो अभी तक, सब ठीक है ना?

तभी शांति के बुलाने की आवाज आई,  बहू जी ये चाय ले लो और भैया जी आपको मां जी ने नाश्ता करने के लिए बुलाया है । इतना कहकर शांति चली गई ।

“निधि ये सब क्या हो रहा है, मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है ? तुम्हारी मां के साथ कुछ बहस हुई है क्या ? रोज तो चाय, नाश्ता, खाना सब तुम ही बनाती हो । सब साथ में बैठकर खाते हैं, आज ये सब क्यों?” विशाल और निधि के विवाह के अभी दो महीने ही हुए है और निधि का ससुराल में पहला पीरियड आया था ।

इसलिए विशाल को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था । उसे लगा निधि और प्रमिला जी की बहस हो गई होगी तभी ये सब हो रहा है ।

“ये सब इसलिए हो रहा है कि मेरे पीरियड चल रहे हैं जिसके लिए ना तो मैं किचन में जा सकती हूं और ना ही घर के किसी और कमरों में । यहां तक कि मम्मी जी ने ये भी बोल दिया कि मैं अपने लिए फर्श पर बिस्तर लगा लूं और पीरियड खत्म होने पर ये चादर, तकिए, परदे, डोरमैट सब धुलकर साफ करना होगा ।

विशाल साफ-सफाई एक अलग चीज है और पीरियड में उसका ध्यान भी रखना जरूरी है । लेकिन इस तरह का व्यवहार जैसे मुझे कोई छुआ-छूत की बीमारी हो गई है“ निधि  ने रोते हुए कहा ।

“निधि तुम पहले शांत हो जाओ और मेरे साथ बाहर चलो । हम साथ में चाय पिएंगे रोज की तरह, मैं ये सब नहीं मानता । पीरियड ही तो आए हैं, और क्या हुआ है ! तुम जाकर मेरे लिए अच्छी सी चाय बनाओ, मैं अभी चेंज करके आता हूं ।“ विशाल के कहने पर निधि रसोई में चाय बनाने चली गई ।

बहू… तुम्हें एक बार में बात समझ में नहीं आती क्या? फिर से रसोई गंदी कर दी, शांति भी चली गई है, अब ये सब सफाई कौन करेगा? मैंने तुम्हें एक बार बोल दिया कि ऐसे समय में तुम बस अपने कमरे में रह सकती हो, जो चाहिए मुझे बता देना तो तुम यहां चाय बनाने क्यों आई ?

मम्मी जी… विशाल ऑफिस से आए हैं तो मैं उनके लिए चाय बना रही हूं । और मेरे आने से रसोई कैसे गंदी हो गई ये बताइए । सुबह से देख रही हूं कि यहां मत जाओ, ये मत छुओ, बेड पर मत सोओ, क्यों?

“तुम्हारे पीरियड चल रहे हैं ना इसलिए, पीरियड्स में रसोई घर और बड़ों के कमरों में नहीं जाते । ये मेरे घर का नियम और कायदा है । ये हमारे पुरखों ने बनाया है और मैं खुद इतने सालों से इसका पालन कर रही हूं ।“ प्रमिला जी ने गुस्से में कहा ।

“लेकिन मम्मी जी… ये कोई छुआ-छूत की बीमारी थोड़े ही है कि मेरे छूने से किसी और को हो जाएगी । पहले का समय कुछ और था, पहले इतनी सुविधाएं नहीं थीं। सैनिटरी पैड्स नहीं थे, लोग कपड़े का इस्तेमाल करते थे। उसे बार-बार बदलना और ऐसे में घर के कामकाज और भागदौड़ करना पॉसिबल नहीं था क्योंकि उस समय शारीरिक श्रम ज्यादा करना पड़ता था।

शरीर में होने वाले हार्मोनल चेंजेज (Hormonal Changes) की वजह से हमें शरीर को आराम देना होता है, इसलिए ये सारे नियम बनाए गए थे और समय के साथ-साथ लोगों ने इसे प्रथा बना दिया । लेकिन अब समय बदल गया है, अब हम पीरियड्स में भी अपने रोज की दिनचर्या कर सकते हैं ।

साफ-सफाई और पर्सनल हाइजीन (Personal Hygiene) का जरूर ध्यान रखना चाहिए ये तो मैं मानती हूं । लेकिन इस तरह की दकियानूसी बातें मैं नहीं मानती ।“

“तुम आजकल की लड़कियों को तो बड़ों की बातों का विरोध करने की आदत हो गई है । आधुनिकता के नाम पर बड़े-बूढ़ों के बनाए नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाते रहते हो…” प्रमिला जी गुस्से में चिल्लाते हुए बोली ।

मम्मी जी… मैं किसी का अपमान नहीं करना चाहती लेकिन मैं गलत का साथ भी नहीं दे सकती ।

“मां, निधि सही कर रही है । समय के साथ हम लोगों को बदलना चाहिए । साइंस (Science) के हिसाब से तो ये स्त्रियों में ब्लड प्यूरीफायी (Blood Purify – रक्त शुद्ध करना ) करता है तो इसमें छुआछूत कहां से आ गया मां । और ये तो भगवान का वरदान (Vardaan) है स्त्रियों के लिए । बल्कि हमें तो भगवान से शिकायत होनी चाहिए कि ये औरतों के लिए ही क्यों, मर्दों के लिए क्यों नहीं !” विशाल ने प्रमिला जी को समझाने की कोशिश की ।

“बहू… तुम इस तरह की बातें भी विशाल से करती हो, हमारे समय में तो मर्दों के सामने इसका नाम तक नहीं लेते थे।”

“पीरियड्स के बारे में किसी से बात करना या चर्चा करना गलत नहीं है मां” विशाल ने कहा ।

“तुम लोग कितने भी तर्क-वितर्क कर लो, मैं इन सब बातों को नहीं मानती” और गुस्से में प्रमिला जी बाहर चली गई।

लेकिन आज निधि को इस बात का सुकून मिल गया कि विशाल सही और गलत का फर्क समझते है ।

दोस्तों आप अपना विचार बताएं कि क्या पीरियड्स को एक बीमारी के रूप में देखना सही है या जीवन का एक हिस्सा है ये मानना सही है।


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आँचल बृजेश मौर्य चाय के पल की संस्थापक के साथ-साथ इस वेबसाइट की प्रमुख लेखिका भी है। उन्होंने ललित कला (फाइन आर्ट्स – Fine Arts) में स्नातक, संगीत में डिप्लोमा किया है और एलएलबी की छात्रा (Student of LLB) है।ललित कला (फाइन आर्ट्स) प्रैक्टिस और अपनी पढ़ाई के साथ साथ, आंचल बृजेश मौर्य विभिन्न विषयों जैसे महिला सशक्तिकरण, भारतीय संविधान, कानूनों और विनियमों इत्यादि पर ब्लॉग लिखती हैं। इसके अलावा उनकी रुचि स्वरचित कहानियां, कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां इत्यादि लिखने में है।

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