वारिस। The Heir
आज की आधुनिक और चमक-दमक भरी दुनिया में रिश्तों की सच्चाई को दर्शाने वाली एक भावनात्मक कहानी ‘वारिस’ (The Heir), आंचल बृजेश मौर्य की कलम से चाय के पल वेबसाइट पर। जानिए कैसे नंदकिशोर, एक बुजुर्ग व्यक्ति, नील और रंजना के साथ एक ठंडी सर्द रात में एक दिल को छू लेने वाला बंधन बनाते हैं। यह कहानी प्रेम, करुणा, और परिवार के सच्चे अर्थ को उजागर करती है। इस दिल को छू लेने वाली कहानी को पढ़ना न भूलें।
वारिस। The Heir : A Heart Touching Swarachit Story by Anchal Brijesh Maurya
बाबा आप यहां क्यों बैठे हैं, कहां जाना है? बताइए मैं छोड़ देता हूं। लगभग 80 साल के एक वृद्ध को आइसक्रीम की दुकान के बाहर थोड़ी दूर पर बैठा देख नील और रंजना उनके पास जाकर बोले।
ठंड की कपा देने वाली रात, उस पर आज हवाएं तो ऐसी ठंडी चल रही थी, जैसी वह शरीर की एक-एक हड्डी तोड़ देगी। आज हमारी शादी की सालगिरह है, और रंजना को ठंड में आइसक्रीम खाना बहुत पसंद है। रात को सबके साथ खाना खाने के बाद रंजना ने कहां चलिए आज लॉन्ग ड्राइव पर चलते हैं, और हां मेरी आइसक्रीम नहीं भूलियेगा।
मैने भी मुस्कुराते हुए गाड़ी की चाबी उठा ली, और हम दोनों लॉन्ग ड्राइव के लिए निकल पड़े। मैं नील, एक मल्टीनेशनल कंपनी में एक मैनेजर की पोस्ट पर काम करता हूं। मेरी पत्नी रंजना एक हाउस मेकर है, या ऐसा कहूं कि वह मेरी भाग्यलक्ष्मी है, तो गलत नहीं है।
जिसके पास कभी कुछ ना रहा हो और उसके मेरे जीवन में आते ही उसकी मेहनत और तपस्या ने मेरे जीवन में रंग ही रंग भर दिए। सारी सुख -सुविधाओ से मेरा घर भर गया। मेरे दोनों बच्चे रोहन और रिद्धि सेटल्ड हो गए और उनकी शादी भी हो गई।
आपको कहीं आश्चर्य तो नहीं हो रहा है, कि इतने बुढे लोग और लॉन्ग ड्राइव? क्या करूं रंजना की चंचलता और हंसमुख स्वभाव ने दिल और दिमाग को कभी बूढ़ा होने ही नहीं दिया। इसलिए उसने आज जब लॉन्ग ड्राइव की इच्छा जताई तो मैं मना नहीं कर सका।
घर से थोड़ी दूर जाते ही रंजना ने गाड़ी रोकने को कहा, तो मैंने कहा यहां क्यों रोकना है? आइसक्रीम की शॉप दूर है, तुम्हें तो यहां की आइसक्रीम पसंद नहीं। उसने कहा आइसक्रीम तो मैं वही की खाऊंगी, लेकिन पहले कुछ जरूरी काम है। गाड़ी से नीचे उतारिए और डिग्गी खोलकर उसमें तीन-चार बैग पड़े हैं, पहले उसे निकालिए।
मैंने भी गाड़ी साइड में लगा दी और थैला निकाल कर उसके साथ हो लिया। वह सड़क किनारे रहने वाले गरीब लोगों में बांटने के लिए गर्म कपड़े और कुछ सामान लाई थी। कपड़े देने के बाद हम लोग वहां से निकल गए। मैंने पूछा तो तुमने मुझे बताया क्यों नहीं की तुम्हें कपड़े देने जाना है? तो रंजना ने मुस्कुराते हुए कहा की बता देती तो आप बोलते कि कल दिन में दे देना, इतनी ठंडी में क्यों बाहर जाना है?
मैं भी मुस्कुराते हुए गाड़ी चलाने लगा। हम रंजना की फेवरेट आइसक्रीम शॉप पर पहुंचे, जैसे ही हम अंदर जाने वाले थे रंजना ने मुझे इशारे से एक वृद्ध को दिखाया। देखने में एक अच्छे घर का वृद्ध लग रहा था, साथ में कुछ सामान भी था। उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे वह कहीं जाने के लिए सवारी गाडी का इंतज़ार कर रहे है। उन्हें देखकर पता नहीं क्यों हम खुद को रोक नहीं पाए और उनके पास चले गए।
मैंने उन्हें देखकर पूछा बाबा आप यहां क्यों बैठे है, कहीं जाना है क्या? रात में यहां सवारी गाड़ियां कम ही मिलती है, और आज ठंड की वजह से तो मिलना मुश्किल है। वृद्ध हमें देखने लगा। मैंने फिर पूछा बाबा बताइए तो रेलवे स्टेशन या बस स्टॉप कहां जाना है? मैं छोड़ दूंगा, इतनी ठंड में यहां बैठकर इंतजार करने से कोई फायदा नहीं है।
आप बताइए कहां जाना है? हमारे बार-बार पूछने पर या शायद रंजना की स्नेहिल आग्रह से उस वृद्ध ने भरे गले से कहा कहां जाना है, यह तो नहीं पता लेकिन कहां नहीं जाना है यह जरूर पता है।
उस वृद्ध की बात से हम स्तब्ध रह गए। रंजना ने वृद्ध से आग्रह पूर्वक कहा बाबा आज ठंड बहुत है, चलिए पहले वहां चलकर थोड़ा-थोड़ा चाय पी लेते हैं, फिर बात करेंगे। वही चाय की एक छोटी सी टपरी थी।रंजना बाबा के साथ चाय की दुकान की तरफ बढ़ने लगी, मैं भी उनका सामान उठाकर उनको सहारा देते हुए चलने लगा।
दुकान पर हमने चाय और बिस्किट लिया, सब अपना-अपना कुल्हड़ लिये चाय पीने लगे। एक अजीब सी शांति थी, बस बीच-बीच में चाय की चुस्कियो की आवाज आ रही थी। बाबा की आवाज ने इस शांति को भंग किया, और रंजना से बोले। बेटी तुम्हारा क्या नाम है?
मैं रंजना और इनका नाम नील है बाबा, यह मेरे पति है।
बेटा इस शहर में या आसपास कोई वृद्धाश्रम है क्या?
बाबा की बात सुनकर मैं और रंजना एक दूसरे को देखने लगे। समझ नहीं आया कि इस उम्र में वृद्धा आश्रम? बात करने के तरीके और पहनावे से बिल्कुल ऐसे नहीं लग रहा था कि, वह किसी गरीब घर के हैं, जिसे खाने पहनने की समस्या हो। फिर जीवन के इस पड़ाव पर वृद्धा आश्रम?
बात कुछ समझ नहीं आई, इसलिए मैंने पूछा बाबा आपको वृद्धा आश्रम क्यों जाना है? आपका घर कहां है? और इतनी रात को आप यहां कैसे? आपके परिवार में कोई नहीं है बाबा? कुछ तो बताइए तभी तो आपकी समस्या का हल निकाल पाएंगे।
हमारे प्यार और अपनेपन से बाबा की आंखें भर आई। उन्होंने कहा बेटा मेरा नाम नंदकिशोर है, मैं सीकर गांव का रहने वाला हूं।मेरी पत्नी के देहांत के बाद मेरा बेटा मुझे अपने साथ यहां शहर ले आया। साल 2 साल तो सब ठीक था। मैंने सोचा जब सब कुछ देखना इन्हें ही है तो मैं घर और ज़मीन रख कर क्या करुगा।
मैंने अपना घर, ज़मीन और सारी जमा पूजी अपने बेटे- बहू के नाम कर दी और उन्होंने यह कह कर बेच दी की वहां फालतू की जमीन पड़ी है, कोई कब्जा कर लेगा। हम लोगों को फुर्सत नहीं कि वहां जाकर इसकी देखभाल कर सके। इसलिए उसे बेच देना अच्छा हैं।
मैं भी उनको दिखावे के प्यार में आ गया और अपना सब कुछ गवा दिया। सब कुछ मिलने के बाद मैं उनके लिए बोझ, घर में पड़े रहने वाली रद्दी की तरह हो गया। घर में कोई मेहमान या उनके दोस्तो के आने पर वह मुझे एक कमरे में बंद कर देते ,और सब के चले जाने के बाद ही बाहर निकलते। कहते थे मैं अगर मेहमानों के सामने आ गया तो उनकी बेइज्जती होगी, और आज मुझे यहां लाकर छोड़ गए।
मेरा तो इस दुनिया में कोई रहा नहीं बेटा, मेरे अपने तो मुझे यहां फेंक गए, मैं तो उनके लिए मर चुका हूं। सोचा कुछ काम करके बाकी का जीवन काट लूंगा, लेकिन इस उम्र में कोई काम भी नहीं देता। गांव भी नहीं जा सकता, इसलिए वृद्धा आश्रम का पता मिल जाता तो?
मैंने कहा बाबा आप फिक्र मत कीजिए हमारे साथ चलिए हम छोड़ देते हैं आपको। हम लोग उन्हें अपने साथ घर ले आए। घर आकर बाबा परेशान हो गए, बोले नहीं बेटा मैं अब और किसी पर बोझ बनकर नहीं जी सकता। बस मुझे पता बता दो मैं स्वयं ही चला जाऊंगा। रंजना और मेरे लाख विनती करने पर भी वह मान नहीं रहे थे।
तभी रंजना ने कहा बाबा, पिता के न होने का दुख शायद मुझसे ज्यादा कोई और नहीं समझ सकता। मुझे तो अपने पिता का चेहरा भी याद नहीं, और मेरा भाग्य देखिए, शादी करके जब नील के साथ घर बसाया, तो उनके माता-पिता भी नहीं थे। मैंने मां का तो प्यार देखा, तो क्या बाबा ईश्वर ने यह जो पिता के प्यार का सौभाग्य दिया है, यह भी आप मुझसे छीन लेंगे? मत जाइए ना पिताजी हमें आपके प्यार की बहुत जरूरत है।
रंजना के प्यार ने बाबा को जाने से रोक लिया। बाबा के घर में आ जाने से अब घर में एक अलग ही रौनक रहती। हमारे बच्चों को भी दादा का प्यार मिल गया, और सर पर बड़े – बुजुर्ग का आशीर्वाद। धीरे-धीरे समय बितने लगा अब बाबा का घाव भी भरने लगा, क्योंकि अब उनके चेहरे पर मुस्कान दिखने लगी थी।
हमारा बेटा अरनव तो जैसे बचपन में ही चला गया। सब काम दादा जी के साथ करना है। खाना, सोना, घूमना दादा पोते की खूब बनने लगी। अरनव का क्या अब हम सब का बाबा के बिना कहीं मन नहीं लगता। बेटी भी अपने ससुराल से हर महीने चार-पांच दिन बाबा के साथ रहने के लिए आ जाती।
एक दिन अचानक से बाबा की तबीयत कुछ खराब हो गई। हम लोग उन्हें अस्पताल ले गए डॉक्टर के चेकअप और दवा के बाद हम उन्हें घर ले आए। लेकिन उनकी तबीयत में सुधार होने की जगह और बिगड़ने लगी। हम लोग उन्हें फिर से अस्पताल ले गए। डॉक्टर ने उन्हें अस्पताल में ही रुकने की सलाह दी। लेकिन वह न जाने क्यों घर जाने की जिद पकड़ कर बैठ गए।
हमें उन्हें घर लाना पड़ा।रात को भी उन्होंने कुछ नहीं खाया, बड़ी मुश्किल से मैंने उन्हें थोड़ा सा सूप पिलाया देर रात तक सब बाबा के पास बैठे थे, फिर उन्हें नींद आने पर हम सब सोने चले गए।अरनव आज भी बाबा के साथ सोया।
सुबह रंजना जब बाबा के कमरे में उन्हें देखने गई, तो वह हम सब से विदा लेकर जा चुके थे। बाबा के इस तरह अचानक से चले जाने से सब बहुत दुखी थे। धीरे-धीरे लोगों का आना जाना शुरू हो गया। बाबा का सारा क्रिया कर्म भी बीत गया।
कई दिनों से बाबा का कमरा साफ नहीं हुआ था। रंजना बाबा के कमरे में किसी को जाने नहीं देती थी। मैंने ही उसे समझा कर काम वाली बाई को सुबह बाबा का कमरा साफ करने के लिए कहा।थोड़ी देर बाद काम वाली बाई रंजना के पास आई और बोली, दीदी बाबा का कमरा साफ कर रही थी तो उनके तकिये के नीचे से यह लिफाफा मिला।
रंजना ने लिफाफा खोला तो उसमें 10-10 के कुछ पुराने नोट थे, एक लाल पुराने से कपड़े में छोटी सी बच्चों की सोने की चेन थी, और एक चिट्ठी रंजना के नाम। जिनके अक्षर देख कर लग रहा था कि बाबा के हाथ कांप रहे थे लिखते हुए।
चिट्ठी में लिखा था, बेटी रंजना तुमने मुझे जो दिया उससे तो मैं इस जन्म में मुक्त नहीं हो पाऊंगा। मुझे इस बात की हमेशा खुशी रहेगी कि ईश्वर ने मुझे पिता होने का सुख जरूर दिया, भले ही देर से दिया, और तुम्हारा पिता होने के नाते मैं अपनी संपत्ति का वारिस तुम्हें बनाता हूं बेटी। इस लिफाफे में जो है, वह मेरी और मेरी पत्नी की आखिरी संपत्ति है, जिससे मैं तुम्हें दे रहा हूं। तुम और नील बेटा हमेशा खुश रहना।मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है बेटा।
पत्र पढ़ते ही रंजना जोर-जोर से रोने लगी, मैंने बड़ी मुश्किल से रंजना को संभाला और उसे समझाया कि बाबा ने तुम्हें अपनी संतान मान लिया, एक पिता की तरह अपनाया, तभी तो वह तुम्हें अपना वारिस बन गए। तुम ही उनकी असली वारिस हो। बाबा के इस प्यार और आशीर्वाद को हमेशा अपने पास संभाल कर रखना।
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