मजदूर दिवस पर कविता। Poem on labours day in hindi: A Swarachit Kavita
आइए मिलकर मजदूर दिवस पर इस दिल को छू लेने वाली कविता (Heart-Warming Poem on labours day in hindi) के द्वारा श्रमिकों की मेहनत और समर्पण का सम्मान करते हैं। यह आँचल बृजेश मौर्य की एक स्वरचित कविता (swarachit kavita) है जो अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस (International Workers’s Day or May Day or Labor Day) के सार को खूबसूरती से अभिव्यक्त करता है और श्रम शक्ति को नमन करता है।
मजदूर दिवस का संक्षिप्त विवरण और दिल को छू लेने वाली कविता। A Brief Description of Labor Day and Heart-Warming Poem on Labour Day in Hindi:
मजदूर दिवस (Labor Day) एक विशेष दिन है जो हम सभी के लिए एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए श्रमिकों के योगदान और उनके प्रयासों का जश्न मनाता है। इस दिन हम उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण का सम्मान करते हैं और हमारे समाज को आकार देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हैं।
इस अवसर को चिह्नित करने के लिए, हम आपके लिए एक दिल को छू लेने वाली स्वरचित कविता (Heart-touching swarachit kavita on labours day in Hindi) लेकर आए हैं जो मजदूर दिवस की भावना को समाहित करती है और श्रम बल को नमन करता है।
1. मजबूर हूँ – Majaboor Hoon। Motivational Poem on labours day in Hindi
कविताएं (Hindi Poems) हमें हँसाती और रुलाती हैं, प्रेरणा और प्रोत्साहन भी प्रदान करती है। कुछ कविताएँ हमारे समाज में हाशिये पे खड़ी श्रमिक वर्ग की परिस्थितियों को दर्शाता है और हमें सोचने के लिए बाध्य करता हैं।
मजबूर हूँ – Majaboor Hoon ऐसी ही एक प्रेरक कविता Motivational Poem on labours day in Hindi) आंचल मौर्य की कलम से जो आज के श्रमिक वर्ग की स्थिति को दर्शाता है।
1.1 मजबूर हूँ – Majaboor Hoon। Short Motivational Poem on labour day in hindi
मजदूर हूं साहब, इसलिए मजबूर हूं साहब । न मेरा कहीं जिकर है, ना किसी को फिकर है । गरीब हूं साहब, इसलिए समाज का नासूर हूं साहब । मजदूर हूं साहब, इसलिए मजबूर हूं साहब ॥ देश के सुवर्ण प्रतिबिंब में, एक अहम रंग हूं साहब । फिर क्यों रोज, मेरी भूख से होती जंग है साहब । मजदूर हूं साहब, इसलिए मजबूर हूं साहब ॥ ना मांगता, वादों की दुकान हूं साहब । मांगता सिर्फ रोटी, कपड़ा, मकान हूं साहब । मजदूर हूं साहब, इसलिए मजबूर हूं साहब । मजदूर हूं साहब, इसलिए मजबूर हूं साहब…
2. मौत का तांडव – Orgy of Death। A Heart-torching and provocating poem on labour day in hindi:
मौत का तांडव – Orgy of Death एक ऐसी दिल को छू लेने वाली और उत्तेजक कविता (Heart-torching and provocating poem on labour day in hindi) आदित्य (चिराग) की कलम से जो आज के श्रमिक वर्ग की स्थिति को दर्शाते हुए गरीबी और मृत्यु की सच्चाई को भी बयां करता है।
2.1 मौत का तांडव – Orgy of Death। Heart-torching and provocating poem on labour day:
उगल रहा रवि आग आज, धधक रहीं हैं चहो दिशायें । खौल रहा जल का कण-कण, मचल रहीं हैं अनल हवायें ॥ फैला है तांडव मौत का, सूना पड़ा है हर जन-पथ। मौन पड़े हर द्वार जगत के, सूने हैं तरु के कोटर तक॥ जहाँ एक ओर वैभव भी, जाकर महलों में सोता। वहीं दूसरे पथरीले पथ पर, वह अपना जीवन मूल्य चुकाता॥ नैया से ये इगमग पग, सूखे तरू सा जर्जर शरीर। मरू सी सूखी ये आंखे, बिन नीर ये अधर-अधीर॥ वह पथरीला स्थान जहाँ, स्वयं काल मंडराता है। सर पर ईंटो का सेहरा बांध, वह अपना कर्तव्य निभाता है॥ सांझ मिलेंगे दो पैसे, बस मन में लिए वह धीर अधीर। बढ़ता जाता है पथ पर, जैसे वन में अविरल समीर॥ पड़ने लगे ये शिथिल वो कर, जर्जर तन भी कुछ थक आया। चक्कर सा आने लगा उसे, जब- 'आदित्य' शिखर तक चढ़ आया॥ सोचा मन में क्यों न चलकर, गंगा जल से प्यास बुझायें। थके हुए जर्जर शरीर को, कुछ पल दे विश्राम फिर आयें॥ निज धारण करके गंगा जल, उसने अपना पेट भरा। फिर हरित तरू के शरण में जाकर, कुछ पल को विश्राम किया॥ पाते ही विश्रम तरू का, दिवा स्वप्न में खोया मन। मगर पता उसे कहाँ था, होगा वह उसका अंतिम पल॥ दिवा स्वप्न में खोया मन, जब देख रहा था मधुर स्वप्न। कठिनाई प्रतीत हुई सांसो में, उड़ चले प्राण इस तपते वन में॥ विकराल रूप धारण कर लू का, "वह" था तांडव स्वयं मृत्यु का । कफ़न बनाये माटी का और , शैया गंगा मैया का ॥ यह देख हृदय मेरा फटता है, मानवता महलों में है सोयी । दया, धर्म और प्रेम कहाँ, यहाँ नर नरभक्षी बन बैठा है ॥ कर जोड़ कर रहे विनती यह, हे ईश्वर ! बस इतना करना। पैदा करना मानव को पर, आंचल गरीब का मत देना॥ पैदा करना मानव को पर आंचल गरीब का मत देना आंचल गरीब का मत देना आंचल गरीब का मत देना...
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