हार मत मानो। Never Give Up: A Short Story in Hindi of Hard Work and Determination

हार मत मानो। Never Give Up: A Short Story in Hindi of Hard Work and Determination
Never Give Up_ A Short Story in Hindi of Hard Work and Determination

कभी हार मत मानो (Never Give Up) वाक्यांश के बारे में हम आपने सुना तो बहुत होगा लेकिन जब हम मुश्किल दौर से गुजर रहे हो तब जिंदगी हमारी दृढ़ संकल्प और शक्ति की असली परीक्षा लेती है। आज हम इस Hindi Kahani के माध्यम से एक ऐसे परिवार के बारे में जानेगे जो एक जिंदा मिशाल है हार न मानने (Never Give Up) वाक्यांश के लिये।

सभी बाधाओं के खिलाफ अस्तित्व और भरण पोषण (survival and sustenance) के लिए एक परिवार की लड़ाई की प्रेरक कहानी (motivational story in hindi) पढ़ें। कई चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, उन्होंने कभी हार नहीं मानी (Never Give Up) और दूसरों से आसान मदद स्वीकार करने के बजाय अपने जीवन यापन के लिए कड़ी मेहनत करना चुना। दृढ़ता और आशा (perseverance and hope) की इस दिल को छू लेने वाली कहानी (Heart Touching Story in Hindi) में दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत का मूल्य जानें।

हार मत मानो। Never Give Up: Hindi Story, Hindi Kahaniya

आज किसी की बातें सुन मेरी रूह कांप गई । उसकी बातों को सुनकर मेरी तो आंखें भर आई । आज पहली बार महसूस किया सम्मान क्या है… प्रेम क्या है… कभी हार मत मानो – Never Give Up का जज्बा क्या है । चलिए अपने उस वाकिये से आपको रुबरू करवाती हूं ।

कुछ दिन पहले ही मैं अपने बेटे का हाथ पकड़े (जो कि अभी 5 वर्ष का है) उसकी ज़िद को पूरा करने के लिए बाजार की तरफ जा रही थी । उसे खिलौनों से बहुत प्यार है जैसे कि आमतौर पर सभी बच्चों को होता है । उसे कुछ नए खिलौने चाहिए थे जिसके लिए उसने परेशान कर दिया था ।

उसी परेशानी को दूर करने मैं अपने बेटे के साथ पास के मार्केट में गई जहां खिलौने की एक बहुत बड़ी और सुंदर दुकान है । उसे उसकी पसंद के खिलौने दिलाए और वापस आने लगी ।

थोड़ा आगे बढ़ी थी कि किसी की आवाज आई । दीदी… यह फूल देखो, कितने सुंदर हैं… इन्हें ले लो ।

मैंने देखा फूल वाकई सुंदर थे । रंग बिरंगे ट्यूलिप, बड़े ही सुंदर और आकर्षक लग रहे थे । और टयूलिप तो मुझे फूलों में सबसे ज्यादा प्रिय है इसलिए शायद कुछ ज्यादा ही मन को भा गए ।

मैंने कहा… हां सुंदर तो बहुत है लेकिन मुझे यह नकली फूल पसंद नहीं । उसने कहा दीदी मेरे पास और भी है एक बार देख लीजिए ना मैंने खुद बनाए हैं । कई तरह के फूल है, प्लीज दीदी… एक बार देख लीजिए, मेरे पास छोटे-छोटे खिलौने भी हैं

उसके बार-बार कहने पर मैं उसकी दुकान पर चली गई जो कि उसने सड़क किनारे बोरिया बिछाकर लगाई थी । जैसे ही मैं उसकी दुकान पर पहुंची, एक बूढ़ी औरत उस दुकान पर बैठी थी । मुझे देखते ही एक छोटा सा प्लास्टिक का स्टूल मुझे दिया और बोली आइए बहू जी बैठिए । क्या दिखाऊं आपको?

मैंने कहा… मैं तो यह सुंदर फूल ही देखने आई हूं । मैं लेना तो नहीं चाहती थी लेकिन बार-बार इनके कहने पर देखने चली आई। जो महिला पास में खड़ी थी और मुझे दुकान पर ली गई थी उसकी तरफ मैंने इशारा करते हुए कहा ।

बूढ़ी औरत ने कहा, क्या करें बहू जी बिना बार-बार कहे कोई आता ही नहीं, लोगों के लिए तो यह एक सस्ती बेकार सी चीज है।

मैंने कहा नहीं आप ऐसा क्यों बोल रही हैं, यह फूल वाकई बहुत सुंदर है लेकिन मुझे बनावटी फूल पसंद नहीं इसलिए मैंने इनकी तरफ ध्यान नहीं दिया ।

पर आप लोगों की यह कपड़ों से फूल बनाने की कला बड़ी सुंदर है । आप इनको ऐसे बेचने की बजाय अगर दुकानों पर बात करके और उनके द्वारा दिए आर्डर से चीजें बनाएं तो आप लोगों के लिए अच्छा रहेगा ।

जो महिला मुझे दुकान पर ले गई थी उसने कहा दीदी बात की थी लेकिन हम लोगों की चीजें दुकान वाले रखने को तैयार नहीं है । बोलते हैं कोई ब्रांड नहीं है, मैं ज्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं हूं और कोई काम भी नहीं आता ।

मैंने पूछा तो आप लोगों का इस से गुजारा हो जाता है, परिवार में और लोग हैं क्या? जी दीदी यह मेरी सासू मां है, मेरे तीन बच्चे हैं । सबसे बड़ी बेटी कुछ सिलाई का काम जानती है । पुराने कपड़ों की मरम्मत का काम मिल जाता है वह कर लेती है । वही घर पर दोनों छोटे बच्चों को संभालती है ।

वह भी अभी बहुत बड़ी नहीं है, 13-14 साल की है । लेकिन हालात को समझते हुए वह हमारी पूरी मदद करती है , महिला ने जवाब दिया ।

तो आप लोग बच्चों को स्कूल क्यों नहीं भेजते? सरकारी स्कूलों में पैसे भी नहीं लगते और बेसिक शिक्षा तो हर बच्चे का अधिकार है मैंने कहा ।

हां दीदी भेजना चाहते हैं लेकिन क्या करें । दो वक्त की रोटी की व्यवस्था नहीं हो पाती है सबके लिए, महिला ने जवाब दिया ।

मैंने कहा, अब स्कूलों में भोजन की भी व्यवस्था है । कम से कम मध्यान भोजन बच्चों को स्कूल में इसलिए दिया जाता है कि बच्चों की बेसिक शिक्षा को पूरा किया जा सके। सरकार की तरफ से बच्चों को किताबें और स्कूल की ड्रेस भी दी जाती है तो बच्चों को उनकी शिक्षा से मत रोको । उन्हें स्कूल भेजो, शिक्षा के बिना तुम अपना भविष्य कैसे बदलोगी ।

और अम्मा तुम क्यों नहीं समझाती, तुम्हारा बेटा कहां है, क्या करता है? मैंने उस बूढ़ी औरत की तरफ देखते हुए कहा । मेरे सवाल को सुनते ही वह बूढ़ी औरत रोने लगी । मैंने कहा अम्मा मुझसे कोई गलती हो गई क्या?

उस महिला ने कहा नहीं दीदी, वैसे तो मां रोज ही अपने बेटे को याद करके रोती है । लेकिन यह सवाल जब भी कोई पूछता है तो मां का दुख कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है  क्योंकि मां का बेटा यानी मेरे पति अब इस दुनिया में नहीं रहे ।

अम्मा मुझे माफ कर दो, मुझे पता नहीं था । मत रो अम्मा… किस्मत को हम बदल नहीं सकते और क्या कहूं मैंने उस बूढ़ी औरत को शांत कराने की कोशिश की ।

नहीं दीदी… मेरे पति कहते थे हम अपनी किस्मत को अपनी मेहनत से बदल सकते हैं और शायद कुछ दिनों के लिए हमारी किस्मत बदली भी ।

हम लोग एक गांव से आए हैं दीदी । गांव में पहले हमारा घर, खेती सब था लेकिन किसानों की हालत तो तुम जानती हो । यदि भगवान की कृपा हुई तो फसल अच्छी नहीं तो खाने को भी दाना नहीं ।

मेरे पति का पढ़ने लिखने में बहुत मन लगता था और वह मेहनती भी बहुत थे । मेरे ससुर जी ने बेटे की पढ़ाई के प्रति लगन देखकर कभी पीछे नहीं हटे । उसके लिए अपनी जमीन गिरवी रख दी कि बेटा पढ़ लिख जाएगा, अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा तो जमीन भी छुड़ा लेंगे ।

उनकी पढ़ाई पूरी हुई तो काम की तलाश करने लगे । शहर में छोटी सी नौकरी भी लगी थी । तनख्वाह कम थी लेकिन हमेशा आगे बढ़ने के बारे में सोचते । कभी निराश नहीं होते और ना हम लोगों को होने देते । अपनी मेहनत से उन्हें एक जगह बहुत अच्छी नौकरी फिर से मिली दीदी । पुरानी नौकरी को छोड़कर वह नई नौकरी करने जा रहे थे ।

उस दिन हमारी बात भी हुई थी । मां और बाबू जी ने उनसे कहा, बेटा नई नौकरी में लग गए तो जल्दी छुट्टी नहीं मिलेगी । एक बार घर आ जाओ, फिर नई नौकरी पर जाना  और वह मान गए ।

बात होने के दो दिन बाद वह घर आने के लिए निकले थे कि रास्ते में बस का एक्सीडेंट हो गया । उस बस में सवार सभी लोग मारे गए उसमें मेरे पति भी थे दीदी । इतना बोलते बोलते उसका गला भर आया और वह कुछ आगे बोल नहीं पाई ।

थोड़ी देर तो मुझे भी ऐसा लगा जैसे सब कुछ रुक गया हो । चारों तरफ एक ऐसा मौन छा गया की गाड़ियों की आवाज भी सुनाई नहीं दे रही थी । तभी मेरे बेटे की आवाज ने मुझे वर्तमान में लौटाया । उसने घर जाने की जिद की तो मैंने उसे वहां रखें खिलौने दिखाकर बहलाया ।

मैंने महिला से पूछा आपके बाबूजी ससुर कहां है इस समय?

महिला ने कहा, दीदी वह एक्सीडेंट तो हमारे बुरे समय की शुरुआत थी । इस हादसे से बाबूजी ने खाट पकड़ ली । उनकी बीमारी में जमा पूंजी तो गई ही हमारा घर भी चला गया । जमीन तो पहले ही चली गई थी और हम बाबूजी को भी नहीं बचा पाए । वही हम लोगों का एकमात्र सहारा थे । अब हमारे पास ना घर है ना जमीन और ना ही पैसा

और जिसके पास कुछ नहीं होता, उसका कोई साथ नहीं देता है। अब तो बस यह बूढ़ी मां और तीन बेटियां, इसके सिवा कुछ नहीं। इसलिए हम गांव छोड़कर शहर आ गए  कि कम से कम दो वक्त का खाना तो बच्चों को खिला सकेंगे।

उनकी बातें सुनकर मेरे भी आंसू निकल आए। कुछ समझ नहीं आया कि क्या बोलूं, क्या कहूं। मेरे गले से ना तो आवाज निकल रही थी और ना ही आसू थम  रहे थे।

आज पहली बार किसी के दर्द से मेरी रूह तक कांप गई। कैसे इतनी दर्द में लोग इतनी मेहनत कर रहे हैं… जिंदा है। मेरे पास कोई शब्द नहीं थे तब उनसे कहने को, ना अब है आप लोगों तक उस दर्द को पहुंचाने के लिए।

मैंने उनकी मदद करने के लिए उनको कुछ पैसे दिए की अम्मा यह रख लो और देखती हूं मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकती हूं।

उसने वो पैसे नहीं लिए… बोली हमारे सामान से ज्यादा कीमत हम नहीं ले सकते।  किसी से पैसे नहीं लेते हैं, हमारी मेहनत से जो मिलता है उसमें ही हम गुजर करते हैं। उस बूढ़ी औरत ने कहा जिसे मैं अम्मा कह कर संबोधित कर रही थी।

दीदी… जिस दिन हमने भीख ली उस दिन हमारे पति के लिए हमारा सम्मान, प्यार और उनकी दी हुई सीख (हार मत मानो-Never Give Up… लड़ते रहो- Keep Fighting… कभी तो जीतेंगे ही- will win someday…) सब खत्म हो जाएगा।

और जिस दिन यह खत्म हुआ हमारे जीने की ताकत भी खत्म हो जाएगी इसलिए दीदी हम यह नहीं ले सकते हैं। आप कुछ खरीद लो हमसे तो हमारी जरूर मदद हो जाएगी महिला ने कहा।

मैंने भी उनकी खुद्दारी को ठेस पहुंचाना सही नहीं समझा और उनसे कुछ सामान खरीद लिए। मैंने उनसे उनका नंबर मांगा तो महिला ने कहा दीदी हमारे पास तो फोन ही नहीं है तो नंबर कहां से होगा।

मैंने उन्हें अपना फोन नंबर दिया और कहा कभी किसी मदद की जरूरत हो तो फोन करना और मैं तो इस मार्केट में रोज ही आती हूं तो आपको जब भी जरूरत हो मुझे बताना। ठीक है… अब मैं चलती हूं, बच्चा भी गर्मी से परेशान हो गया था।

बूढ़ी औरत ने कहा ठीक है बहू जी… बच्चा परेशान कर रहा है गर्मी भी बहुत है।

मैं घर तो आ गई लेकिन एक अजीब सी बेचैनी थी अंदर। समझ नहीं आ रहा था क्या करूं। क्यों भगवान दर्द देता है तो इतना कि सहने की क्षमता ही ना हो।

उस दिन उस दर्द के आगे और सब छोटा और बे-मतलब लगने लगा। उस दिन से मेरा जिंदगी को देखने का नजरिया ही बदल गया । उस महिला की हिम्मत और कभी हार मत मानो – Never Give Up का जज्बा जो उसे आज भी मुसीबतों से लड़ने की ताकत दे रहा है हमेशा बनी रहे बस। ताकि जीवन में वह भी कुछ प्राप्त कर सके।


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आँचल बृजेश मौर्य चाय के पल की संस्थापक के साथ-साथ इस वेबसाइट की प्रमुख लेखिका भी है। उन्होंने ललित कला (फाइन आर्ट्स – Fine Arts) में स्नातक, संगीत में डिप्लोमा किया है और एलएलबी की छात्रा (Student of LLB) है।ललित कला (फाइन आर्ट्स) प्रैक्टिस और अपनी पढ़ाई के साथ साथ, आंचल बृजेश मौर्य विभिन्न विषयों जैसे महिला सशक्तिकरण, भारतीय संविधान, कानूनों और विनियमों इत्यादि पर ब्लॉग लिखती हैं। इसके अलावा उनकी रुचि स्वरचित कहानियां, कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां इत्यादि लिखने में है।

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