श्रीमती चटर्जी बनाम नॉर्वे – Mrs. Chatterjee vs Norway: Heartwarming true story of a mother’s fight for her child

श्रीमती चटर्जी बनाम नॉर्वे – Mrs. Chatterjee vs Norway: Heartwarming true story of a mother’s fight for her child
A still shot of the movie trailer Mrs. Chatterjee vs Norway

अगर आप मिसेज चटर्जी बनाम नॉर्वे (Mrs. Chatterjee vs Norway) फिल्म के बारे में जानकारी ढूंढ रहे हैं, तो आप सही जगह पर आए हैं। इस लेख (Article) में हम फिल्म के पीछे की सच्ची कहानी, कलाकार और हम इससे क्या उम्मीद कर सकते हैं, पर चर्चा करेंगे।

1. श्रीमती चटर्जी बनाम नॉर्वे: एक मां का अपने बच्चे को पाने के लिए इंसाफ की लड़ाई । Mrs. Chatterjee vs Norway: A Tale of a Mother’s Fight for Justice:

मिसेज चटर्जी बनाम नॉर्वे (Mrs. Chatterjee vs Norway) एक आगामी फिल्म है जो कि 17 मार्च 2023 को रिलीज़ होगी और ट्रेलर के आने के बाद से ही सुर्ख़ियो में छाया हुआ है।

यह फिल्म 2011 में नॉर्वे में हुई एक वास्तविक घटना पर आधारित है। इस फिल्म में अपने बेटे की कस्टडी ( child custody) के लिए एक माँ की लड़ाई की कहानी बतायी गई है, जिसे नॉर्वेजियन चाइल्ड वेलफेयर सर्विसेज (NCWS – Norwegian Child Welfare Services) ने उससे छीन लिया था। सोशल मीडिया पर इस फिल्म के ट्रेलर ने धूम मचा रखी है और लोग इसके रिलीज होने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

1.1 इस फ़िल्म के पीछे की कहानी – Background Story of Mrs. Chatterjee vs Norway Movie

श्रीमती चटर्जी बनाम नॉर्वे (Mrs. Chatterjee vs Norway Movie) की कहानी एक भारतीय परिवार (Indian Couple),अनुरूप और सागरिका चटर्जी की है। 2011 में हुई घटना के अनुसार नॉर्वेजियन चाइल्ड वेलफेयर सर्विसेज (Norwegian Child Welfare Services), जिसे बार्नवरनेट (Barnevernet) चाइल्ड प्रोटेक्शन के रूप में जाना जाता है ने ऐश्वर्या और अभिज्ञान दोनों को उनके माता-पिता (अनुरूप और सागरिका चटर्जी) से दूर कर दिया ।

नॉर्वेजियन चाइल्ड वेलफेयर सर्विसेज (NCWS) ने ऐसा आदेश पास किया था की जब तक ऐश्वर्या और अभिज्ञान दोनों 18 साल के नहीं हो जाते उन्हें चाइल्ड प्रोटेक्शन में रखा जाए।

NCWS ने दावा किया कि बच्चों की ठीक से देखभाल नहीं की जा रही है और उन्हें हाथों से ज़बरदस्ती खाना खिलाया जा रहा है, जो की नॉर्वे में आम बात नहीं है। उन्होंने यह भी दावा किया कि माता-पिता अपने बच्चों को शारीरिक रूप से दंडित भी करते हैं (सागरिका ने कथित तौर पर एक बार बच्चों को थप्पड़ मारा था)। ऐसे माता-पिता बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं है और ना ही सुरक्षित वातावरण प्रदान कर रहे हैं।

इसके बाद बच्चों को चाइल्ड प्रोटेक्शन में रखा गया, और माता-पिता को हर हफ्ते केवल कुछ घंटों के लिए बच्चों से मिलने की अनुमति दी गई।

जबकि ये चीजें आपको भारतीय संदर्भ में सामान्य लग सकती हैं, लेकिन नार्वे के अधिकारियों के लिए यह सामान्य नहीं था।

इस घटना के कारण भारत में बड़े पैमाने पर हंगामा हुआ और भारत सरकार ने मामले में हस्तक्षेप किया। भारतीय विदेश मंत्रालय ने नार्वे सरकार के साथ इस मुद्दे पर बात की । नॉर्वे में भारतीय समुदाय भी इस जोड़े के समर्थन में सामने आया और पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुए।

सागरिका चटर्जी ने अपने बच्चों को वापस पाने के लिए एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। इस घटना को व्यापक मीडिया कवरेज मिला, और यह पूरी दुनिया में एक चर्चा का विषय बन गया।

नॉर्वे में बच्चों और उनके पालन-पोषण के संबंध में बेहद सख्त कानून हैं और ये कानून सांस्कृतिक अंतरों (Cultural Differences) की परवाह किए बिना सब पर समान रूप से लागू किए होते हैं।

1.2 कलाकार और कास्टिंग क्रू – Cast and Crew of Mrs. Chatterjee vs Norway Movie

फिल्म मिसेज चटर्जी बनाम नॉर्वे ( Mrs. Chatterjee vs Norway ) आशिमा चिब्बर (Ashima Chibber) द्वारा डाइरेक्ट की गई है और इस फिल्म को ज़ी स्टूडियोज द्वारा फिल्माया गया है। फिल्म में  रानी मुखर्जी मुख्य भूमिका में हैं।

1.3 कस्टडी के लिए लंबी लड़ाई जो एक कूटनीतिक विवाद में बदल गई – Long battle for custody which turned into a diplomatic row:

उसके बाद बच्चों की कस्टडी के लिए एक साल से अधिक समय लगा। नॉर्वे के अधिकारियों ने दावा किया कि वह बच्चों को पालने के लिए सागरिका मानसिक रूप से अयोग्य है। इस कहानी ने जल्द ही नॉर्वे और भारतीय मीडिया दोनों का ध्यान आकर्षित किया।

बार्नवरनेट (Barnevernet) के कार्यों की कड़ी आलोचना की गई। मुद्दा यह था कि बार्नवरनेट न केवल भारतीय पालन-पोषण के बारे में सांस्कृतिक रूप से अनभिज्ञ थे, बल्कि वे अपने स्वयं के मामले को मजबूत करने के लिए व्यक्तिगत रूप से एक मां पर हमला करते हुए भी प्रतीत होते थे।

बढ़ते कूटनीतिक दबाव के कारण, तत्कालीन विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा ने मामले पर समझौता करने के लिए ओस्लो नॉर्वे के तत्कालीन विदेश मंत्री से मुलाकात की। लंबी बातचीत के बाद, यह निर्णय लिया गया कि बच्चों की कस्टडी भारत में रह रहे  पैतृक चाचा, अरुणाभस भट्टाचार्य को दी जाएगी।

1.4 बच्चों की कस्टडी के लिए सागरिका एक और लड़ाई भारत में –  Sagarika’s another battle for custody of children in India:

नॉर्वेजियन चाइल्ड वेलफेयर सर्विसेज (NCWS) ने बच्चों को भारत में उनके चाचा को सौंप दिया। हालांकि यह एक स्वागत योग्य कदम था, कस्टडी की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई थी। सागरिका को अब भारत में बच्चों की कस्टडी के लिए कानूनी लड़ाई लडनी पड़ी।

सागरिका ने अपने बच्चों की कस्टडी लेने के लिए नॉर्वे के बार्नवरनेट (Barnevernet) चाइल्ड वेलफेयर कमेटी से संपर्क किया। इस समिति ने सागरिका के पक्ष में फैसला दिया, जबकि नॉर्वे की पुलिस ने इसे लागू नहीं किया, और बच्चों को उनके चाचा के पास छोड़ दिया। 2012 में सागरिका ने कलकत्ता उच्च न्यायालय (Kolkata High Court) में बच्चों की कस्टडी के लिए याचिका दायर की।

2013 में, न्यायाधीश दीपांकर दत्ता ने फैसला सुनाया जिसमे दोनों बच्चों की कस्टडी को सागरिका को देना स्वीकर किया और बच्चों को कभी-कभी उनके चाचा से मिलने की अनुमति भी दी। कोर्ट ने यह भी माना कि ये उनके चाचा के लिए भवनात्मक दृष्टि से सही नहीं है लेकिन बच्चों के अच्छे भविष्य  के लिए माँ को उनकी कस्टडी मिलनी चाहिए।

 2. इस फिल्म से क्या उम्मीद करें – What to expect from this movie:

 मिसेज चटर्जी बनाम नॉर्वे ( rani mukerji mrs chatterjee vs norway) के ट्रेलर ने पहले ही फिल्म देखने वालों के बीच काफी उत्साह बढ़ा दिया है। फिल्म एक भावनात्मक उतार चढ़ाव का वादा करती है, क्योंकि यह अपने बच्चों की कस्टडी के लिए एक मां की लड़ाई से संबंधित है।

फिल्म में विदेशों में अप्रवासियों के सामने आने वाले मुद्दों पर भी प्रकाश डालने की कोशिश की गई है। यह घटना कोई अकेली घटना नहीं है, और ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां अप्रवासी परिवारों को अपने बच्चों को रखने के लिए संघर्ष करना पड़ा है। फिल्म से इस मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने की उम्मीद है।

फिल्म का ट्रेलर भारत और नॉर्वे के बीच सांस्कृतिक अंतर (Cultural Differences) को दर्शता है । नॉर्वेजियन चाइल्ड वेलफेयर सर्विसेज (NCWS) का दावा है कि बच्चों को उनके हाथों से खिलाया जा रहा था, जो कि भारत में एक आम बात है मां का बच्चो को अपने हाथों से खिलाया जाना।

भारत में बच्चों के प्रति मां का प्रेम है, यह मुद्दा दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक अंतर को उजागर करता है। उम्मीद जा रही है कि फिल्म इस पहलू का भी पता लगाएगी और “उचित” पालन-पोषण की परिभाषा पर सवाल भी उठाएगी। लेकिन ये सब तो फिल्म रिलीज के बाद ही पता चलेगा।

 देखा जाए तो श्रीमती चटर्जी बनाम नॉर्वे ( Mrs. Chatterjee vs Norway ) एक विचार करने योग्य फिल्म होने का दावा करती है जो पालन-पोषण, संस्कृति और आप्रवासी भारतीयों के बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती है।

यह एक माँ के प्यार और दृढ़ संकल्प की कहानी है, और यह दुनिया भर के दर्शकों के दिल को छू लेगी ऐसी आशा की जा रही है।

Mrs. Chatterjee Vs Norway | Official Trailer I Zee Studio

3. फिल्म के ट्रेलर को लेकर क्या है विवाद और नॉर्वे के अधिकारियों की क्या है आपत्ति – What is the controversy with the movie trailer and what is objection of Norway officials

मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे ( Mrs. Chatterjee vs Norway or rani mukerji mrs chatterjee vs norway) फिल्म के ट्रेलर रिलीज होते ही विवादों को जन्म दिया है और नॉर्वे के अधिकारियों ने इस पर आपत्ति जताई है। फिल्म में नार्वेजियन चाइल्ड वेलफेयर सर्विसेज (NCWS)  को गलत तरीके से चित्रित किया गया है जो बिना किसी उचित कारण के बच्चों को उनके माता पिता से दूर ले जाती है। नार्वे अधिकारियों द्वारा इसकी आलोचना की गई है

NCWS एक संयोजीत एजेंसी है जो केवल बाल शोषण या उपेक्षा के मामलों में हस्तक्षेप करती है। ट्रेलर के जवाब में भारत में नॉर्वे के राजदूत हैंस जैकब फ्रायडेनलंड ने भारतीय विदेश मंत्रालय को एक पत्र लिखकर उन्होंने कहा कि फिल्म “झूठ और मनगढ़ंत” तथ्यों पर आधारित है और इससे एन.सी.डब्ल्यू.एस. (NCWS) की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंच सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि फिल्म नॉर्वे और इसकी बाल कल्याण समिति के कार्य प्रणाली की “अनुचित और गलत” छवि बना सकती है।

फिल्म को लेकर हुए विवाद ने एन.सी.डब्ल्यू.एस. (NCWS) के चित्रण के बारे में एक बहस छिड़ गई है। कुछ आलोचकों का कहना है कि फिल्म एन.सी.डब्ल्यू.एस. (NCWS) आप्रवासी लोगों के साथ समस्याओं का एक सटीक प्रतिनिधित्व है, जबकि कुछ अन्य लोगों का कहना है कि यह एजेंसी का एक गलत चित्रण है।

4. निष्कर्ष – Conclusion

फिल्म के ट्रेलर के माध्यम से यह एक विचार शील फिल्म होने का वादा करती है। जो पालन-पोषण, संस्कृति और आप्रवासन के बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती है। यह एक माँ के प्यार और दृढ़ संकल्प की कहानी है, और यह दुनिया भर के दर्शकों के दिल को छू लेने वाली है। अपने दमदार प्रदर्शन और भावनात्मक कहानी के साथ मिसेज चटर्जी वर्सेस नॉर्वे ( Mrs. Chatterjee vs Norway or rani mukerji mrs chatterjee vs norway) एक ऐसी फिल्म है जिसे देखा जा सकता है।

जैसा कि ऊपर आपको बताया गया है कि यह फिल्म एक वास्तविक घटना (True Story) पर आधारित है, जिसने महिला सशक्तिकरण (Mahila Sashaktikaran) की चर्चाओं को भी उभारा है। यह वास्तविक घटना और फिल्म उन स्थितियों में महिलाओं के सशक्त (mahila sashaktikaran or women empowerment) होने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालती है जहां उनके बच्चों के हित दांव पर हैं।


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आँचल बृजेश मौर्य चाय के पल की संस्थापक के साथ-साथ इस वेबसाइट की प्रमुख लेखिका भी है। उन्होंने ललित कला (फाइन आर्ट्स – Fine Arts) में स्नातक, संगीत में डिप्लोमा किया है और एलएलबी की छात्रा (Student of LLB) है।ललित कला (फाइन आर्ट्स) प्रैक्टिस और अपनी पढ़ाई के साथ साथ, आंचल बृजेश मौर्य विभिन्न विषयों जैसे महिला सशक्तिकरण, भारतीय संविधान, कानूनों और विनियमों इत्यादि पर ब्लॉग लिखती हैं। इसके अलावा उनकी रुचि स्वरचित कहानियां, कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां इत्यादि लिखने में है।

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