प्रेम या व्यापार – Love or Trading। Love Story in Hindi
प्रेम या व्यापार (Love or Trading) एक प्रेम कहानी (Love Story in Hindi) है कात्यायनी की जो प्रेम या व्यापार (Love or Trading) के भंवर में अटकी अपने सवालों के जवाबों की तलाश पिछले 20 वर्षों से कर रही है। क्या उसे अपने सवालों के जवाब मिले, आइए जानते हैं इस प्रेम कहानी (Love Story in Hindi) में।
बसंत के इस सुहावने मौसम में दिल को छू लेने वाली प्रेम कहानी (Love Story in Hindi) जो एक अलग ही रंग में रंगी है।
प्रेम या प्यार क्या है? इसे शब्दों में समझाना आसान नहीं है। बस इतना कह सकते हैं कि प्यार एक एहसास है। वो एहसास जिसको किसी की जरूरत नहीं, ना किसी बंधन की, ना किसी रिश्तो की, ना किसी शब्द की। प्रेम तो बस देना जानता है, लेना नहीं । अगर प्रेम में लेन-देन हो तो वह प्रेम नहीं व्यापार होता है ।
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प्रेम या व्यापार – Love or Trading। A Heart-touching Love Story in Hindi
आज उन तंग गलियों और घाटों पर घूमती, अपना तन मन उसमें डूबाती, उस शहर के रंग में डूबती, अपने जीवन के कुछ सुनहरे पलों को याद करते कात्यायनी न जाने कितने वर्षों बाद अपने अंदर एक सुकून महसूस कर रही थी की अचानक उसकी आंखें किसी पर जाकर रुक गई ।
उसकी आवाज ना जाने क्यों दिल पर दस्तक देने लगी। उसके दिमाग ने उसे समझाने की कोशिश की ये वो नहीं है लेकिन दिल उसे मानने को तैयार नहीं था । वो बार-बार कात्यायनी को उस तरफ चलने को मजबूर कर रहा था लेकिन उसका मस्तिष्क उसे रोक रहा था ।
कहते हैं अगर दिल और दिमाग में जंग हो तो जीतता हमेशा दिल ही है । और ना चाहते हुए भी उसके कदम उसकी ओर बढ़ गए ।
आज 20 वर्षों बाद उसके सामने खड़े होकर वो अपने आप को संभाल नहीं पा रही थी । ऐसा लगा जैसे उसे कोई धक्का दे रहा हो जीवन के उन पन्नों को पढ़ने के लिए जिसे वो हमेशा फाड़ कर फेंक देना चाहती थी ।
उसने कभी नहीं सोचा था कि जीवन में कभी ये समय भी उसे देखना पड़ेगा । वो शब्द जैसे पिघले शीशे के समान आज फिर उसके कानों में गूंजने लगे । जितना दर्द शायद उस समय हुआ उससे लाखों गुना अब महसूस हो रहा था।
बार-बार उसके वो शब्द तुम मेरे जीवन से चली जाओ कात्यायनी, मैं तुमसे प्यार नहीं करता… ये शायद सिर्फ एक आकर्षण था । मैं अपनी मां के पसंद की लड़की से शादी करना चाहता हूं, तुमसे नहीं । मेरे जीवन में अब तुम्हारा कोई स्थान नहीं ।
इन शब्दों को सुनते ही कात्यायनी जैसे शून्य में चली गई । उसके बाद उसने ना जाने क्या-क्या कहा जो कात्यायनी को सुनाई ही नहीं दे रहे थे, सिर्फ उसका चेहरा देखकर ऐसे लग रहा था जैसे वह कुछ बोल रहा है । उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी गीले कपड़े को निचोड़ कर सारा पानी निकाल लेते हैं वैसे ही किसी ने उसका रक्त निकाल लिया है । ना पैरों में खड़े होने की ताकत थी और ना उसे कुछ जवाब देने की ।
उसके जाते-जाते कात्यायनी ने उससे सिर्फ इतना कह पाई कि मुझे छोड़कर मत जाओ । मेरा जीवन तुम्हारे बिना शून्य है और शून्य का महत्व भी तभी होता है जब वह किसी के साथ हो ।
लेकिन आज वो कात्यायनी को किसी तिनके की तरह बिखेर कर चला गया जीवन में कभी ना लौटने को कह कर और कात्यायनी ना जाने कितने घंटों तक वही घाट किनारे शून्य सी बैठी रही ।
अंधेरा घिरने को आया। एक मांझी ने कात्यायनी को देखकर कहा… बिटिया यहाँ क्यों बैठी हो, अंधेरा होने को आया, यहाँ इस तरह बैठना ठीक नहीं है ।
उस दिन कात्यायनी किस तरह घर पहुंची उसे पता नहीं ।
आज इतने वर्षों बाद फिर से उसे सामने देखकर लगा कि शायद वो गंगा की धारा में बहती जा रही है । कात्यायनी की हिम्मत नहीं हुई कुछ बोलने की और वो अपने आप को एक लाश की तरह ढोती हुई सामने एक सकरी सी गली की तरफ बढ़ गई ।
गली में दोनों तरफ दुकानें सजी थी । लोगों की भीड़ भाड़ थी और फूलों- अगरबत्तियो की महक पूरे वातावरण में फैली थी । वह जितना आगे बढ़ती उस गली में, उतना ही यादों के भंवर में फंसती जाती ।
उन यादों का भार इतना ज्यादा लग रहा था कि कात्यायनी के कदम ही नहीं उठ रहे थे । उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसका गला घोट रहा हो । वो सांस नहीं ले पा रही थी, लगा जैसे आंखों के सामने अंधेरा सा छा गया और सिर घूमने लगा ।
कात्यायनी वही एक दुकान के चबूतरे पर किसी तरह से बैठ गई । उसका चेहरा पसीने से भीगा हुआ था । आंखें लाल हो गई जैसे शरीर का सारा रक्त प्रवाह आंखों में हो रहा है । हाथ पैर ठंडा पड़ गया था । इतने भीड़-भाड़ वाली जगह पर भी जैसे लग रहा था कि कोई है ही नहीं, बस एक भयावाह सन्नाटा है चारों तरफ ।
बिटिया क्या हुआ.. ठीक हो? इतने सुहावने मौसम में इतना पसीना और तुम्हारी आंखें भी बहुत लाल है! क्या हुआ बिटिया… तबीयत ठीक नहीं… कुछ परेशानी है… मुझे बताओ?
कात्यायनी ने देखा एक बूढ़ा सा व्यक्ति उसके बगल में खड़ा है और उसके सिर पर हाथ फेर रहा है । और उसके चेहरे पर एक अद्भुत चमक है, उम्र लगभग 80 के ऊपर ही लगती है । कपड़े इतने साफ की लगता है अभी धुल कर पहने हो ।
उसके सिर पर हाथ फेरने से कात्यायनी बच्चों सी बिलख पड़ी । वो बूढ़ा वही कात्यायनी के पास बैठ गया । बोला बिटिया क्या बात है? बताओ तो, हो सकता है मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं ।
नहीं बाबा मेरी कोई मदद नहीं कर सकता… आप जाइए, मैं ठीक हूं ।
बिटिया, बाबा भी कहती हो और बोलती हो आप जाइए । अपनी बिटिया को ऐसी हालत में कैसे छोड़ कर जा सकता हूं । एक बार मुझे बताओ तो क्या बात है, तुम्हें देख कर लगता है बहुत तकलीफ में हो ।
उस बूढ़े व्यक्ति के बार-बार पूछने पर कात्यायनी ने सारी बातें उसे बता दी । बूढ़ा व्यक्ति बड़े धैर्य के साथ सुनता रहा और मुस्कुरा कर बोला, बिटिया तुम्हारी परेशानी का हल तो तुम्हारे पास ही है ।
कात्यायनी ने उस बूढ़े व्यक्ति की तरफ देखा तो उसने कहा बिटिया सबसे पहले उसे माफ कर दो और अपने आप को उस दर्द से मुक्त कर दो जो सालों से तुम्हारे अंदर हैं और रहे तुम्हारे सवालों के जवाब तो इस तरह से नहीं मिलेंगे । जवाब भी वही देगा जिसने सवाल बनाएं ।
बिटिया… प्रेम को तो किसी की जरूरत नहीं, ना किसी बंधन की, ना किसी रिश्तो की, ना किसी शब्द की । प्रेम तो बस देना जानता है, लेना नहीं। अगर प्रेम में लेन-देन हो तो वह प्रेम नहीं व्यापार होता है ।
बाबा… माफ तो मैंने उसे कब का कर दिया । दोष कभी उसे नहीं सदा अपने आप को दिया । हमेशा यही सोचती रही शायद कमी मुझमे ही थी। इसलिए मुझे अपनाया नहीं, मेरे सारे अधिकार भी किसी और को दिए ।
बाबा… तो क्या नाराज होने का अधिकार भी मेरा नहीं रहा? जो दर्द मैं सह रही हूं, क्या उससे मुक्त होने का अधिकार भी नहीं है?
क्यों नहीं है बिटिया… तो उसके लिए इस तरह से भागो मत, जाओ और सामने खड़े होकर सवाल पूछो ।
बाबा लेकिन अगर वो मुझे नहीं पहचाने तो? इसी बात से डर लग रहा है ।
बिटिया… अगर उसने नहीं पहचाना तो समझ लेना कि प्रेम उसके दिल में कभी था ही नहीं तुम्हारे प्रति । वो सिर्फ आकर्षण था जो समय के साथ खत्म हो गया । क्योंकि प्रेम कभी खत्म नहीं होता और अगर प्रेम है तो उसने भी उतना ही दर्द सहा होगा । हो सकता है वो फैसला उसकी मजबूरी थी ।
प्यार तो प्यार ही होता है बिटिया… फिर उसके लिए साथ में रहे या नहीं इससे कोई फर्क नहीं । इसे समझना आसान नहीं है बिटिया ।
प्रेम तो मीरा ने भी किया था कृष्ण से तो क्या वह यथार्थ में उनके साथ जीती थी, नहीं ना । वो तो बस महसूस करने की जरूरत है बिटिया ।
अंधेरा घिरने को आया है बिटिया, जाओ और अपने सवालों के जवाब तलाश कर लो । मैं भी चलता हूं ।
कात्यायनी को अब एहसास हुआ कि ना जाने कितने देर से वो यहाँ है । सचमुच अंधेरा होने को आया । लेकिन बूढ़े बाबा की बात सुनकर उसका मन कुछ जरूर शांत हो गया था ।
तभी उसने देखा वो बूढ़ा व्यक्ति चला गया था और गली में भीड़-भाड़ तो कम नहीं हुई । लेकिन बल्ब की जगमगाहट से अद्भुत छटा बिखरी थी। जैसे किसी नई नवेली दुल्हन के गले में हीरे का हार चमक रहा हो।
कात्यायनी भी देर न करते हुए घाट की तरफ चल पड़ी अपने सवालों के जवाब की तलाश में । आज 20 वर्षों के बाद ही सही शायद कात्यायनी को उसके क्रोध और तकलीफ से मुक्ति मिल सके…
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धन्य हो, कात्यायनी…अंतस को छू लेने वाली कहानी.