डोर। Dor: A Swarachit Kavita in Hindi

डोर। Dor: A Swarachit Kavita in Hindi

रहे जल में और मगर से बैर,
ऐसे मीन का ना कहीं ठिकाना है ।

तोड़ वही सकता है, जिसने बनाया है ।
आज का नहीं यह चलन पुराना है ॥

उड़ जा और उड़ता चला जा,
ढील देंगे तुझे जहां तक जाना है ।

डोर विश्वास का जिस दिन तोड़ दोगे,
तब तो गगन से धरा पे तो तुझे आना है ॥

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आँचल बृजेश मौर्य चाय के पल की संस्थापक के साथ-साथ इस वेबसाइट की प्रमुख लेखिका भी है। उन्होंने ललित कला (फाइन आर्ट्स – Fine Arts) में स्नातक, संगीत में डिप्लोमा किया है और एलएलबी की छात्रा (Student of LLB) है।ललित कला (फाइन आर्ट्स) प्रैक्टिस और अपनी पढ़ाई के साथ साथ, आंचल बृजेश मौर्य विभिन्न विषयों जैसे महिला सशक्तिकरण, भारतीय संविधान, कानूनों और विनियमों इत्यादि पर ब्लॉग लिखती हैं। इसके अलावा उनकी रुचि स्वरचित कहानियां, कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां इत्यादि लिखने में है।

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