डोर। Dor: A Swarachit Kavita in Hindi
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रहे जल में और मगर से बैर, ऐसे मीन का ना कहीं ठिकाना है ।
तोड़ वही सकता है, जिसने बनाया है । आज का नहीं यह चलन पुराना है ॥
उड़ जा और उड़ता चला जा, ढील देंगे तुझे जहां तक जाना है ।
डोर विश्वास का जिस दिन तोड़ दोगे, तब तो गगन से धरा पे तो तुझे आना है ॥
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