बचपन। Childhood: Reflections on Compassion and Child Labor

बचपन। Childhood: Reflections on Compassion and Child Labor

बचपन (Childhood) आंचल बृजेश मौर्य की स्व-लिखित कहानी (Swarachit Kahani) है जो हमें एक ट्रेन यात्रा पर ले जाती है जहाँ एक यात्री की मुलाकात एक युवा पानी बेचने वाले से होती है, जो बाल श्रम (Child Labor) की कठोर वास्तविकता पर प्रकाश डालती है। सामाजिक असमानताओं पर चिंतन के बीच, कहानी सहानुभूति और दयालुता (Empathy and Kindness) के परिवर्तनकारी प्रभाव पर प्रकाश डालती है, हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए जागरूकता और वकालत का आग्रह करती है।

बचपन। Childhood: Swarachit Kahani in Hindi / A Heartwarming Emotional Hindi Story

उफ यह गर्मी और उस पर से दौड़ना पड़ा वह भी सामान के साथ मेरी तो हालात ही खराब हो गई। गर्मी से परेशान किसी तरह मैं अपनी सीट तक पहुंची। आज ट्रेन पकड़ने के लिए जिस तरह से दौड़ी, अगर इस तरह से मैराथन में दौड़ लगाती, तो पक्का मैराथन जीत जाती।

 सीट पर बैठकर किसी तरह जान में जान आई। सारा सामान ठीक जगह पर लगाने के बाद सोचा आराम से बैठकर पानी पी लूं। प्यास से गला सूख गया था, उस पर से मैराथन वाली दौड़ ने तो थका ही दिया। पानी के लिए बोतल ढूंढने लगी, तो याद आया पानी की बोतल और खाने का सामान जिस बैग में मां ने रखा था, वह बैग तो जल्दी-जल्दी में वही रह गया।

अब तो ट्रेन भी चल पड़ी थी। पानी ले भी नहीं सकती थी। सोचा चलो कोई बात नहीं ट्रेन में तो पानी वाला आएगा उसी से ले लूंगी। लेकिन काफी देर हो गई प्यास से रहा नहीं जा रहा था। तो सामने बैठे यात्री से मैंने पूछा भैया पानी वाला अभी नहीं आया? ए.सी. कोच में आने की मनाही है क्या?

यात्री मेरी बात सुनकर मुस्कुराने लगा, और बोला मैडम इस ट्रेन में खाने-पीने की कोई चीज नहीं मिलती 1 घंटे बाद एक छोटा सा स्टेशन आएगा वही कुछ मिल सकता है। जी वैसे आप कहां तक जाएगी ?

मैंने कहा भैया मैं तो पुणे तक जाऊंगी।

अच्छा-अच्छा फिर तो आप अगले स्टेशन पर जरूर कुछ ना कुछ ले लीजिए। मुझे तो दो स्टेशन बाद ही उतरना है। उस यात्री की बातें सुनकर प्यास जैसे और बढ़ गई। सही कहते है लोग जो चीज पास में ना हो तो उसकी जरूरत कुछ ज्यादा ही महसूस होने लगती है। खैर अब इंतजार करने के सिवा कर भी क्या सकती थी। 

ट्रेन अपनी रफ्तार से चल रही थी। करीब 1 घंटे सवा घंटे के बाद एक छोटा सा स्टेशन आया। ट्रेन रुकी और ट्रेन में पानी बेचने वालों की आवाज भी आने लगी। एक 12-13 साल का छोटा सा बच्चा बाल्टी लिए पानी बेच रहा था। मैंने उसे बुलाया और कहा एक बोतल पानी दे दो। उसने तीन चार पाउच पानी की निकाल कर मुझे पकड़ाने लगा, और बोला यह लीजिए बोतल के बराबर ही पानी है।

मैंने कहा पानी की बोतल नहीं है क्या, इसे रखूंगी कहां? बोतल रहता तो आराम से रख जाता पाउच कहीं फट गया तो सब जगह पानी पानी हो जाएगा, और सबको परेशानी होगी सो अलग।

यहां पानी की बोतल नहीं मिलती क्या? मैडम यहां तो यही चलता है। आपको पानी  की बोतल वह दूर वाले दुकान पर मिल जाएगी। मैंने सोचा अगर पानी लेने के लिए इतनी दूर स्टॉल पर जाऊंगी और इतने में ट्रेन चल पड़ी तो।

 मैंने उसे बच्चों से कहा क्या तुम मेरे लिए उस पानी की दुकान से पानी ला दोगे, मैं तुम्हें पानी लाने के लिए ₹20 अलग से दे दूंगी। वह बच्चा तैयार हो गया। मैंने पर्स खोला तो उसमें छुटे पैसे नहीं थे। ट्रेन की जल्दी में मैंने सारे छुटे पैसे ऑटो वाले को दे दिए।

 मैंने उसे 500 का नोट दिया। 500 का नोट देखकर वह बच्चा बोला मैडम छुट्टा दो ना, तो पानी जल्दी मिल जाएगा। मैंने कहा मेरे पास नहीं है। पानी के और अपने ₹20 लेकर बाकी के पैसे मुझे वापस कर दो।

उसने कहा मेरे पास नहीं है। ठीक है कोई बात नहीं मैं अभी पानी लेकर आता हूं। वह जाने लगा तो मैंने उससे कहा दो बिस्कुट के पैकेट भी लेते आना। वह ठीक है, बोलता हुआ दौड़कर चला गया।

ट्रेन की खिड़की से मैं उसे दौड़ कर दुकान की तरफ जाते हुए देखती रही। तभी ट्रेन की सीटी की आवाज आई, मैं बड़ी बेसब्री से इधर-उधर खिड़की से झांकने लगी, की इतने में ट्रेन चल पड़ी और बच्चा दिखाई नहीं दे रहा था।

ट्रेन में धीरे-धीरे अपनी रफ्तार पकड़ ली, लेकिन बच्चे का कहीं पता नहीं। सामने बैठे यात्री ने मुस्कुराते हुए कहा अब वह नहीं आएगा। आपने भी तो एक अनजान छोटे से बच्चे को 500 का नोट पकड़ा दिया। वह तो दिन भर में भी इतना नहीं कमा पता होगा, उसके तो कई दिनों का काम हो गया।

 उसकी बातें सुनकर अब अपने ऊपर गुस्सा आने लगा। एक तो प्यास से जान निकली जा रही थी उस पर लोग मेरी मूर्खता पर मुस्कुरा रहे थे। इस बात से अंदर का ज्वालामुखी फट रहा था। सही कहते हैं यह लोग कभी भी नहीं सुधरेंगे थोड़े से पैसों के लिए कभी भी कुछ भी कर सकते हैं, किसी को भी धोखा दे सकते है। यह तो अभी इतना छोटा सा है तब यह हाल है बड़ा होकर पता नहीं क्या करेगा। ऐसे लोग ही चोर-लुटेरे बनते है।

मैं मन ही मन उस पर गालियों की बौछार करती और उसे कोसती बैठी रही। कभी सोच रही थी कि वही पाउच का पानी एक बार पी लेती तो क्या होता। फिर मां पर गुस्सा आने लगा कि नाहक ही आने के समय इतना रोती है, कि उसके चक्कर में देर हो गई और जल्दबाजी में पानी का बैग वही छूट गया।

 तभी वह बच्चा पसीने से भीगा एक हाथ में पानी की बोतल और एक हाथ में बिस्कुट के दो पैकेट लिए हाफ्ता हुआ सामने खड़ा हो गया। उसे देखकर मैं हैरान रह गई मैंने पूछा ट्रेन तो चल पड़ी थी तुम कैसे चढ़े?

उसने कहा मैं दौड़ का ट्रेन के आखिरी डिब्बे में चढ़ गया था। वहीं से आपको ढूंढता हुआ आ रहा था। मैंने तो बस यही देखा था कि आप एसी कोच में हो, आपका कोच का नंबर और सीट तो देखना ही भूल गया था। माफ कीजिए इसलिए आपको ढूंढने में देर हो गई। यह लीजिए आपका सामान और यह बाकी के पैसे।

उस बच्चे ने सच में बिस्कुट और पानी के 50₹ काट कर बाकी के 450 मेरे हाथ में रख दिए। मैंने कहा लेकिन तुम वापस कैसे जाओगे ट्रेन तो चल पड़ी है। तो उसने कहा आप परेशान मत होइए मैं अगले स्टेशन पर उतर जाऊंगा और उधर से जो ट्रेन इधर आ रही होगी उसमें चढ़ जाऊंगा।

 मैंने पूछा तुम्हारा कपड़ों को क्या हो गया अभी तो ठीक थे, यह फैट कैसे गए?

 जी वह ट्रेन पर चढ़ने के समय गिर गया था, इसलिए थोड़ा सा फट गया है।

 तुम्हारी पानी की बाल्टी कहां है?

 वह मैं मां के पास रख आया था। वह स्टेशन पर वही दुकान के पास मूंगफली बेचती है। आज तो जब तक वापस नहीं आऊंगा मां बेचारी मेरी वजह से स्टेशन में बैठी रहेगी, घर भी नहीं जाएगी, और जब पहुंच जाऊंगा तो आज डांट जरूर पड़ेगी।

अच्छा यह लो अपने पैसे तो ले लो, मैंने उसे पैसे देने की कोशिश की तो उसने लेने से मना कर दिया और बोला मेरी मां कहती है, हमें लोगों की मदद करनी चाहिए।आप परेशानी में थी इसलिए मैंने आपकी मदद की। किसी की मदद करने के लिए कोई पैसे थोड़ी ना लेते हैं।

 लेकिन मेरी वजह से तुम्हारी शर्ट तो फट गई ना इसके लिए ही ले लो।

 वह बोला, नहीं आपको नहीं पता मेरी मां के हाथों में जादू है वह 2 मिनट में अपने सुई धागे से इसे ठीक कर देगी।

अच्छा तुम पढ़ने क्यों नहीं जाते? मैंने पूछा।

उसे नन्हे बच्चे का मासूम सा चेहरा फीका पड़ गया और बोला पढ़ना तो चाहता हूं, लेकिन  मां अकेले सारा दिन काम करती है फिर भी ठीक से घर नहीं चलता, इसलिए मैं भी  मां के साथ कुछ काम कर लेता हूं तो हमें शाम को ठीक से खाने को मिल जाता है।अच्छा अब मैं जाता हूं स्टेशन आने वाला है। 

वह छोटा सा बच्चा बिना कुछ सुने ही जैसे हवा की तरह गायब हो गया। मैं सोचने लगी कि मेरी वजह से बिचारे को आज घर वापस जाने में इतनी देर होगी। उसकी मां को भी कितनी परेशानी होगी। एक मैं हूं जो अभी थोड़ी देर पहले ही 500₹ के लिए उसे कितना कोस रही थी।

सच्ची कहा जाता है, बचपन (Childhood) की सीख को हम बड़े होने पर भूल जाते हैं। हमने भी तो अपने बचपन (Childhood) में यही सीखा था, कि लोगों की मदद करनी चाहिए। लेकिन बचपन (Childhood) की वह सीख ना जाने कहां चली जाती है?

आज वह बच्चा जो परिवार की और रोटी की जिम्मेदारियां में अपना बचपन भूल गया है। उसने जीवन में एक सीख जरूर दे दी। आज हमारे देश में बाल श्रम (Child Labor) के लिए न जाने कितने ही कानून बनाए गए है, न जाने कितने ही योजनाएं चलाई जाती है, लेकिन इस बच्चे को देखकर ऐसा लगा जैसे जमीनी हकीकत कुछ और ही है।

हमें सच में इस दिशा में कार्य करने की जरूरत है। जिससे इन जैसे मासूमों का बचपन जो रोटी कमाने की बोझ के तले दबा हुआ है उन्हें लौटाया जा सके। शायद हमारे थोड़े से प्रयास से इस देश को बाल श्रम (Child Labor) नामक बुराई से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाए और देश का भविष्य सच में उज्जवल हो। 


नए-नए अपडेट के लिए ChaikePal व्हाट्सएप, फेसबुक और टेलीग्राम समूह से जुड़ें।


ऐसे ही अन्य मार्मिक और प्रेरणादायक हिंदी कहानियों को पढ़ने के लिए हमारे वेब पेज Emotional Story in Hindi को विजिट करना ना भूले।


आँचल बृजेश मौर्य चाय के पल की संस्थापक के साथ-साथ इस वेबसाइट की प्रमुख लेखिका भी है। उन्होंने ललित कला (फाइन आर्ट्स – Fine Arts) में स्नातक, संगीत में डिप्लोमा किया है और एलएलबी की छात्रा (Student of LLB) है।ललित कला (फाइन आर्ट्स) प्रैक्टिस और अपनी पढ़ाई के साथ साथ, आंचल बृजेश मौर्य विभिन्न विषयों जैसे महिला सशक्तिकरण, भारतीय संविधान, कानूनों और विनियमों इत्यादि पर ब्लॉग लिखती हैं। इसके अलावा उनकी रुचि स्वरचित कहानियां, कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां इत्यादि लिखने में है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*