शामली: बाधाओं से साहस तक। A Heartwarming Story of Women Empowerment and Love

शामली: बाधाओं से साहस तक। A Heartwarming Story of Women Empowerment and Love

आंचल मौर्य की यह स्वरचित और काल्पनिक कहानी महिला सशक्तिकरण, प्यार और शिक्षा (A Heartwarming Story of Women Empowerment and Love) के महत्व को दर्शाती है। यह कहानी एक दृढ़ निश्चयी युवा लड़की ‘शामली’ की है जो शिक्षा के माध्यम से अपने जीवन में बदलाव लाने का सपना देखती है। लेकिन पारंपरिक मान्यताओं और अपनी आकांक्षाओं के बीच फंसी शामली को कम उम्र में शादी की चुनौतियों और सामाजिक अपेक्षाओं का सामना करना पड़ता है।

इस कहानी के माध्यम से आइए जानते हैं कैसे वह रूढ़िवादी सोच को चुनौती देते हुए और रास्ते में आने वाली बाधाओं को तोड़ते हुए अपने जीवन में आगे बढ़ती है। इस स्वरचित प्रेरक कहानी (Swarachit Kahani or Swarachit Hindi Stories) में हमारे साथ जुड़ें जो शिक्षा की शक्ति और एक महिला के संकल्प की ताकत पर प्रकाश डालती है।

शामली। Shamli: A Heartwarming Story of Women Empowerment and Love

शामली बेटा लेप लगा लिया कि नहीं? कितनी बार बोलना पड़ता है तुझे लेप लगा ले लेकिन इस लड़की की कान में आवाज ही नहीं जाती। जब देखो कमरे में घुसी रहती हैऔर किताबों में सिर फोड़ती रहती है। बन्द कर इसे और लेप लगा कर आँखो पर यह गुलाब जल लगा कर थोड़ी दूर सो जा। अभी उन लोगो के आने में टाइम है, शायद शाम तक आयेंगें।

यह सुधा जी है, शामली की माँ जो एक सीधी-साधी घरेलू महिला है। उनके पति यानी शामली के पिता पोस्ट आफिस में क्लर्क है। शामली की एक छोटी बहन है और दो छोटे भाई हैं।

शामली अपने माता-पिता, छोटे भाई बहन और दादी के साथ छोटे से गाँव में रहती है। पढ़ने में बहुत होशियार, हमेशा टॉप करने वाली, मृदुभाषी और घर में भी मां पिता का हाथ बटाने वाली, ऐसी है शामली।  

शामली पढ़-लिख कर जीवन में कुछ करना चाहती थी, कुछ बनना चाहती थी ताकि उसके माता-पिता को और गांव के लोगों को उस पर गर्व हो। लेकिन गाव में आज भी बेटी के 18 साल के होते ही उसकी शादी करवा दी जाती थी।

आज शामली को देखने के लिए लड़के वाले आने वाले थे। इसीलिए घर में सुबह से तैयारी चल रही है, विशेष रूप से शामली के साँवले रंग को गोरा बनाने की कवायद चल रही है।

माँ मुझे शादी नहीं करनी है। क्यों आप लोग मेरी बात नहीं सुन रहे है। कम से कम इतना सोच लेते कि इस साल  मेरा एग्जाम है12 वीं का, मैं कैसे पढ़ूगी। माँ प्लीज,…मैं शादी नहीं करना चाहती, मैं पढ़ना चाहती हूं, कुछ करना चाहती हूँ। माँ… आप तो मेरी बात समझो !

सुधा जी–  देख बिटिया हमें जितना पढ़ाना लिखाना था, सो हमने पढा दिया ताकी लोग ये ना कहे कि बिटिया को पढ़ाया लिखाया नहीं। अब जो करना हो, अपने घर जा कर करना समझी! तेरी छोटी बहन भी है, तेरा ब्याह हो जायेगा तभी तो उसके बारे में सोचें, फिर तेरे भाइयों के लिए भी तो करना है।

 गांव में देखा है… तेरी उमर की लडकियों के ब्याह हो गये, कुछ के तो बच्चे भी हो गए। घर के बाहर निकलते शर्म आती है लोग पूछते हैं कि बेटी का ब्याह क्यों नहीं हो रहा है? और तू है कि यह सब लेकर बैठी है,

अरे हमारी इज्जत की नहीं परवाह है, तो कम से कम दादी के बारे में सोच, जो तुझे इतना प्यार करती। उनकी भी उम्र हो गई है, उनकी यही इच्छा है कि मरने से पहले अपने शामली को दुल्हन बने देख लू… क्या तू उनकी छोटी सी इच्छा भी पूरी नहीं कर सकती?

 तेरे लिए दादी की इच्छा, भाई-बहन का भविष्य और पिता का सम्मान… इन सब का कोई मतलब नहीं?

नहीं माँ ऐसा नहीं है। लेकिन आप लोग परीक्षा तक भी नहीं रुक सकते? 

सुधा जी– अब यह सब तो लड़के वालों की मर्जी पर है। अगर शादी की जल्दी नहीं करेंगे तो तेरे परीक्षा के बाद शादी की तारीख रखने की बात करूंगी तेरे पिता जी से… ठीक है। अब ये सब बन्द कर और लेट जा, मैं लेप लगा देती हूँ। फिर मुझे और भी काम है।

 शामली ने बहुत कोशिश की लेकिन वो शादी को नहीं रोक पाई और परीक्षा से पहले ही उसकी शादी कर के उसे ससुराल भेज कर माँ – पिता ने अपनी जिमेदारी पूरी कर ली। शामली के सारे सपने बिखर गये।

उसे घर से विदा होने का, माता- पिता ,भाई- बहन और दादी से दूर होने का दुख कम और अपने सपनों के बिखर जाने का दुख ज्यादा था। 

आज शादी के पाँच सालों के बाद शामली  के सास-ससुर अपने बेटे के घर आ रहे थे। शामली के पति पढ़े-लिखे, खुले विचारों वाले व्यक्ति थे और सास-ससुर पुराने रीति रिवाज और परंपराओं को मानने वाले। शामली के पति बैंक में एक अच्छी पोस्ट पर है।

शामली ने जब से उनके आने की खबर सुनी है, वह परेशान हो उठी। उसका किसी काम में मन नहीं लगता।

शामली ने कहा सोम (शामली के पति), मां-पिताजी आने वाले हैं, क्या करें समझ नहीं आ रहा है? और उन्हें जब यह सब पता चलेगा तो क्या होगा? मुझे तो अभी से घबराहट हो रही है, आप तो मां पिता जी के विचारों को अच्छी तरह जानते हैं। 

सोम– शामली तुम क्यों परेशान हो और कभी ना कभी तो पता चलना ही है।

लेकिन सोम… कुछ नहीं, अब सो जाओ, कल सुबह जल्दी स्टेशन जाना है, उन लोगो को लेने के लिए टाइम से स्टेशन नहीं पहुँचे तो हम लोगों की खैर नहीं।

दूसरे दिन सुबह सोम और शामली स्टेशन पर पहुँच गये, माँ – पिता जी स्वागत किया और उन्हें घर ले आये। आज सोम ने भी छुट्टी लिया हुआ था ऑफिस से तो सारा दिन बातों में कब गुजर गया पता ही नहीं चला।

शामली ने रात का खाना बनाया और सोम से कहा, सोम मुझे तो जाते हुए डर लग रहा है…क्या करूं?

सोम ने कहा, वही करो जो हमेशा करती हो। मैं सब संभाल लूंगा, तुम चिंता मत करो। 

सोम… बहू कहाँ है?   शाम से दिखाई नही दी, बाजार गयी है क्या? तो तुम भी उसके साथ चले जाते, अकेले क्यों जाने दिया है?

सोम को बात करने का यही सही मौका लगा कि इन लोगों को सब बता देना चाहिए। 

सोम– मां शामली ड्यूटी पर गई है, आज उसकी नाइट शिफ्ट है। 

मां– ड्यूटी पर गई है, नाइट शिफ्ट है, इसका क्या मतलब हुआ?

सोम– मां ,शामली एक पुलिस इंस्पेक्टर है और एक हफ्ते उसकी नाइट शिफ्ट है?

मां– सोम यह सब क्या फालतू की बकवास कर रहा है तू। इसलिए तू बहू को यहां लाया था कि उससे नौकरी करवाएगा… तेरी कमाई से घर नहीं चलता क्या? तूने उसे नौकरी करने की इजाजत कैसे दी, और हम क्या मर गए हैं… हमें पूछने की जरूरत नहीं समझी तूने?

अरे जब गांव में लोगों को ये पता चलेगा की बहु नौकरी करती है, और रात-रात भर घर से बाहर रहती है, तो लोग क्या सोचेंगे। हमें तो कही मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा तूने।

सोम के पिताजी… आप देख रहे हैं, यह सब क्या हो रहा है, कुछ बोलते क्यों नहीं?

क्या बोलू सोम की माँ… जब इसने हमें मरा हुआ समझ ही लिया है, तो क्या कर सकते है। बेटा हमारा पिंडदान भी कर देते और हमें बता देते कि हम तुम्हारे लिए मर चुके हैं, तो यहां आकर बहू के हाथों अपने मुंह पर कालिख तो नहीं पुतवाते।

सालों से इतनी जायदाद किसके लिए बनाई हमनें, तेरी शादी गाँव कि लड़‌की से इसलिए कराई की वो घर-बार सहेजे, हमारी सेवा करे, घर की परम्परा निभाये, इसलिए नहीं कि पराये मरदो के साथ रात- रात भर बाहर रहे।

तुझे पैसे चाहिए थे तो हमसे कहता या गांव आ जाता। हम तो हमेशा से कहते आये की तुझे नौकरी करने की क्या जरूरत लेकिन  तूने हमारी एक नहीं सुनी और अब यह सब कर रहा है।

सोम – माँ- पिता जी, आप लोग ये सब क्या बोल रहे हैं। दुनिया कहां से कहां चली गई और आप लोग आज भी इन सब बातों में फंसे हुए हैं कि घर की बहू बेटियों को पढ़ने लिखने का, आगे बढ़ने का और अपने सपने पूरे करने का कोई हक नहीं।

जब सृष्टि के बनाने वाले बिना शक्ति के कुछ नहीं है, तो हम उनके बनाए हुए मनुष्य बिना शक्ति के इस समाज को कैसे चला पाएंगे, कैसे रह पाएंगे, और मैं कौन होता हूं शामली को इजाजत देने वाला।

माँ – क्यों, यह कौन सी बात है। तेरा ब्याह हुआ है, उससे जो तू चाहेगा वही उसे करना होगा समझा, सदियों से यही होता आया है। ब्याह के पहले जो चाहे करे लेकिन ब्याह के बाद तेरी मर्जी के बिना वो खाना भी नहीं खा सकती।

सोम– गलत कह रही है माँ आप। 

माँ – क्या गलत कह रही हूँ, तेरा ब्याह नहीं हुआ है, उससे।

सोम– मां मेरा शामली से ब्याह हुआ है इसका मतलब यह नहीं है कि मैं उसका मालिक हूं। ब्याह का मतलब जीवन साथी होना है ना कि उसका मालिक बनना। मैं उसके सुख-दुख में उसका साथ दूं और वह मेरा। यदि मैं अपनी मर्जी से अपना जीवन जी सकता हूं तो शामली को भी पूरा अधिकार है अपना जीवन अपने मर्जी से जीने का।

शादी के पहले ही जब मैं शामली से मिलने गया तो शामली ने मुझे बता दिया था कि वह पढ़ना चाहती है, जीवन में कुछ करना चाहती है। लेकिन उसके माता-पिता जबर्दस्ती उसकी शादी करवा रहे हैं, तभी मैंने सोच लिया था कि शामली के सपनों को पूरा करने में मैं उसकी मदद जरूर करूंगा और मैंने शामली से यह वादा भी किया था। 

पिताजी… शामली बहुत ही होनहार है, बस उसे हम सब के साथ की जरूरत है। एक दिन आप लोगो को जरूर उस पर गर्व  होगा। 

गर्व  होगा कि नहीं ये तो पता नहीं लेकिन शर्मिंदगी जरूर हो रही है कि हमने तुझ जैसी औलाद के लिए इतनी मन्नते मांगी। इससे तो अच्छा भगवान हमें औलाद ही नही देता, कम से कम इज्जत से तो मर सकते।

अब तक लोगो के यही सवाल थे कि लड़के के ब्याह को सालो हो गए कुछ शुभ समाचार नहीं ? लेकिन अब इस बात का पता चलेगा तो लोग हमारे दरवाजे पर आएंगे क्या? क्या मुँह दिखाऊंगा गाँव – समाज में। 

मां–पिताजी आप लोग ये किस तरह के विचारों में उलझे है। आज दुनिया में लड़कियों ने क्या-क्या मुकाम नहीं हासिल किया। दुनिया भर की छोड़िए अपने देश में लड़कियों ने, महिलाओं ने कितना कुछ किया।

आज लड़कियां फाइटर प्लेन तक उड़ा रही है, अपने देश की रक्षा कर रही है। अब हम उस समय में नहीं है जब देश में कोई पहली शिक्षिका, पहली नेता या पहली महिला पुलिस अफसर बनी है। ना जाने कितनी ही महिलाएं आज हर क्षेत्र में देश का नाम रोशन कर रही हैं। और यह हमारे बनाए गए रूढ़िवादी परंपराओं का समय नहीं संविधान का समय है, कानून का समय है। भारतीय संविधान सबको समानता के अधिकार (Samanta ka Adhikar) की गारंटी देता है जिसमें सब बराबर है, फिर वह चाहे महिला हो या पुरुष। 

पिता जी एक बात बताइए जब मैं छोटा था तो आप से अपने बगीचे मे सिर्फ पीले रंग के फूल के पौधे लगाने की जिद करता था क्योंकि मुझे पीला रंग बहुत पसंद था। तब आप मुझे समझाते थे कि सिर्फ एक रंग के फूल होगे तो हमारा बगीचा अच्छा नहीं लगेगा।  शुरू में तो जब फूल खिलेंगे तो अच्छा लगेगा, लेकिन एक ही रंग को देखकर हम बोर हो जायेगे।

रंग- बिरंगी तितलियां, सुंदर- सुंदर चिड़िया जो बगीचे में आती हैं, वह भी नहीं आएंगी और फिर हमारा बगीचा फूलों से भरा हो कर भी किसी काम का नहीं रहेगा। इसलिए बगीचे में रंग- बिरंगे फूलों के पौधे लगाने चाहिए जिससे बगीचे की सुंदरता बनी रहे और हम लोग उसका लाभ उठा सकें।

तो पिता जी- माँ आप लोग ही बताइए क्या हमारा समाज किसी बगीचे से कम हैं। अगर इसमें एक ही तरह के फूल या पेड़ो को महत्व दिया जाये तो क्या हमारे समाज की, देश की उन्नति और तरक्की हो पायेगी जिसका सपना हम देखते हैं।

तुम कुछ भी कहो, हम तुमहारे लिए अपने धर्म और परम्पराओं में आग नहीं लगा सकते। 

पिता जी इसमें धर्म और परम्पराओ में आग लगाने वाली बात कहाँ से आ गयी। धर्म की किस किताब में लिखा है कि महिलाओ को उनकी मर्जी से जीने का अधिकार नहीं है या उन्हें हम पुरुषों का सेवक बनाकर ईश्वर नें इस धरती पर भेजा है?

 इस संसार में दोनों की समान आवश्यकता है। हमारे धर्म में तो महिलाओं को वो सम्मान और अधिकार दिया जो आज हम सोच भी नहीं सकते, यहाँ तक की अपना जीवन साथी चुनने का भी अधिकार दिया है। लेकिन हम आज – कल के पुरुष प्रधान समाज जिसे महिलाओं के बुद्धि, ज्ञान और उनकी तर्क शक्ति इन सब से भय लगने लगा है और पुरुषो के अहंकार को चोट ना पहुचें इसलिए उन्होंने रीति-रिवाज और परंपराओं के नाम पर बांधकर रखा गया ताकि वो पुरुषो से आगे न बढ़ सके। 

पिता जी हमारे देश में शिक्षा का इतना अभाव रहा कि हम ये समझ ही नहीं पाये कि हमारे धर्म ने नहीं, हमे गुलाम बनाकर इतने साल हम पर राज करने वाले अंग्रेजो के बनाये कानून ने महिलाओं से उनकी स्वतंत्रता उनका अधिकार छीन लिया, और हमारे धर्म को तोड़ मरोड़ कर हमारे सामने परोस दिया।

महिलाओं को शिक्षत नहीं होने दिया और विवाह होते ही पिता के घर से सारे अधिकार खत्म करने का नियम अंग्रेजों ने अपने फायदे के लिए बनाया ना कि हमारे धर्म ने। 

उन्होने अपने फायदे लिए जो भी किया उसे धर्म का नाम लगा दिया क्योंकि उन्हें पता था कि धर्म के नाम पर हम कुछ भी मान लेंगे और वही हुआ, उसे हम आज तक मान रहे है।

हमारे धर्म  में तो यह भी लिखा है की महिलाओं का सम्मान करे, वह लक्ष्मी, सरस्वती और माँ शक्ति का रूप है। तो फिर महिलाओं के खिलाफ अपराधिक मामले क्यों बढ़ते जा रहे है? अपराध करते समय धर्म की याद नहीं आती।

जब महिलाओ ने अपने सम्मान की रक्षा खुद करनी चाही और जीवन में आगे बढ़ना चाहा तो संस्कार और धर्म की याद आ गयी।

लड़के कितना भी गलत काम कर ले हम उन्हें माँफ कर देते है या नजर अंदाज़ कर देते है। वही अगर कोई लड़की हँस कर बात कर ले तो हमारी इज्जत चली जाती है, हम उसे चरित्रहीन होने का ख़िताब दे देते है।

मुझे तो आज तक समझ नहीं आया कि कोई अकेला कैसे चरित्रहीन हो सकता है? अगर है तो दोनो है, वरना कोई नहीं !

पिताजी, हमें भी समाज रूपी इस बगीचे में सभी फूलों को लगाना होगा। तभी हमारा बगीचा सुन्दर और गुणकारी होगा और आने वाली पीढ़ियों के अच्छे व्यक्तित्व निर्माण में मदद मिलेगी। पिता जी हमें इस तरह के विचारो को त्याग कर आगे बढ़ना होगा।

शायद तुम सही कह रहे हो बेटा, लेकिन दुनियाँ वालो को कैसे बदलेंगे ?

सोम- पिताजी, आप को दुनिया वालों को नहीं सिर्फ स्वयं को बदलने की आवश्यकता है। दुनियाँ अपने आप बदल जायेगी। पिता जी हमारे विचारों की यह लड़ाई तो चलती रहेगी लेकिन खाना खाने का समय हो गया है, चलिए खाना खा लीजिए।

सोम ने खाना गरम किया और मां-पिता जी और अपने लिए प्लेट लगाई। सब खाना खा रहे थे, तभी सोम के फोन पर एक मैसेज आया। सोम ने मैसेज देखा और मुस्कुराने लगा।

 सोम को देख कर उसकी मां ने पूछा, “क्या बात है, सोम इतना खुश किस बात से है, ख़ुशी की तो कोई बात हो नहीं रही है बल्की उल्टे हमारा तो डूब मरने को जी चाह रहा है।

 मां–पिता जी मैंने कहा था ना एक दिन आप लोगों को शामली पर गर्व होगा, वह दिन आज है। शामली का मैसेज था, उसने आईएएस का एग्जाम पास कर लिया है, आपकी बहू अब आईएएस अफसर बन गई है पिताजी।

मां को इस बात से कोई ख़ुशी नहीं हुई, उन्हें देखकर तो फिलहाल ऐसा ही लगा। लेकिन पिताजी के चेहरे पर जरूर मुस्कान आ गई और बोले शामली की ड्यूटी कितने बजे खत्म होती है। 

Takeaway or essence from Shamli – A Heartwarming Story of Women Empowerment and Love

इस भावनात्मक कहानी का सार यह है कि महिला सशक्तिकरण का महत्व (importance of mahila sashaktikaran or women empowerment) और पारंपरिक मान्यताओं और सांस्कृतिक मानदंडों को चुनौती देने की आवश्यकता। यह इस बात पर जोर देता है कि महिलाओं को अपने सपनों को साकार करने और पूर्ण जीवन जीने के लिए शिक्षा और आत्मनिर्भरता आवश्यक है।

कहानी एक रिश्ते के भीतर समर्थन और समझ की भूमिका पर भी प्रकाश डालती है, जो सामाजिक बाधाओं पर काबू पाने में प्यार और साझेदारी की शक्ति को दर्शाती है।

कुल मिलाकर, यह समाज को महिला सशक्तिकरण (nari sashaktikaran or women empowerment) को महत्व देने, प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनाने और महिला समावेशन को प्रेरित (Inspire Women Inclusion) करता है ताकि महिलाएं आगे बढ़ सकें और अपनी पूरी क्षमता से योगदान कर सकें।

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आँचल बृजेश मौर्य चाय के पल की संस्थापक के साथ-साथ इस वेबसाइट की प्रमुख लेखिका भी है। उन्होंने ललित कला (फाइन आर्ट्स – Fine Arts) में स्नातक, संगीत में डिप्लोमा किया है और एलएलबी की छात्रा (Student of LLB) है।ललित कला (फाइन आर्ट्स) प्रैक्टिस और अपनी पढ़ाई के साथ साथ, आंचल बृजेश मौर्य विभिन्न विषयों जैसे महिला सशक्तिकरण, भारतीय संविधान, कानूनों और विनियमों इत्यादि पर ब्लॉग लिखती हैं। इसके अलावा उनकी रुचि स्वरचित कहानियां, कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां इत्यादि लिखने में है।

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