बिछुए। Bichhuye: अटूट प्रेम की अनकही कहानी
बिछुए (Bichhuye or Toe-Ring) एक दिल को छू लेने (Heart Touching Story in Hindi) वाली देवेश शर्मा और उनकी पत्नी माधुरी के गहरे प्यार और त्याग की कहानी है, जिनका रिश्ता जीवन और मृत्यु से परे है। यह कहानी की कल्पना और लेखन (swarachit kahani) आंचल बृजेश मौर्य ने किया है जो पारिवारिक गतिशीलता, निस्वार्थ भक्ति और जीवन के अंतिम अलविदा के मार्मिक क्षणों की बारीकियों को खोजती है।
बिछुए : अटूट प्रेम की अनकही कहानी । Bichhuye: An Unspoken Tale of Eternal Love
देवेश जी यह आप क्या कर रहे हैं भाभी जी के बिछुए और चूड़ियां क्यों निकल रहे हैं, यह तो उनके सौभाग्य के निशानी है, उनके साथ ही जाने चाहिए। भरा पूरा परिवार दे गई आपको। दो-दो बेटा है, वह भी नौकरी वाले, फिर भला आप उनके बिछुए क्यों उतार रहे हैं। आपको किस बात की कमी है? इसे रहने दे।
देवेश शर्मा… जैसा नाम वैसा ही सरल स्वभाव, सीधे सच्चे और मृदभाषी। कभी किसी जानवर को भी तेज आवाज में ना बोलने वाले, लोगों से मित्रता और स्नेह इतना कि लोगों की भीड़ हमेशा लगी रहती उनके दरवाजे पर। शर्मा जी बैंक में क्लर्क थे। आज से 50-60 साल पहले पढ़े लिखे लोग ही ज्यादा नहीं थे, तो बैंक में नौकरी करने वालों की तो शान ही अलग थी।
लेकिन शर्मा जी की सरलता की वजह से किसी को कुछ भी काम हो बिना कुछ सोच, सीधे चला आता। रात के 9:10 बजे तक लोगों का उनके घर लोगों का आना-जाना लगा रहता था। ईश्वर ने उनकी जोड़ी भी खूब चुनकर बनाई थी।
माधुरी जी… शर्मा जी की पत्नी, नयन – नक्श तो साधारण ही थे, परंतु स्वभाव भाषा ऐसी की जैसे कोई सुबह-सुबह मंदिर में मंत्र पाठ कर रहा हो। क्या बूढ़े, क्या बच्चे सभी का आदर सम्मान और सबसे प्रेम से बात करना। गुस्सा तो जैसे किस चीज का नाम है उन्हें पता ही नहीं। शरारती बच्चों को उनकी शरारत पर भी इतने प्यार से डांटती की बच्चों को लगता कि वह उन्हें डांट नहीं रही है, वह फिर से शरारत करने लग जाते। उन्हें शरारत करता देखा वह मुस्कुरा कर फिर से अपने कामों में लग जाती।
घर पर आया कोई भी व्यक्ति बिना चाय- पानी के जा नहीं पाता। इतनी ऊर्जा कहां से आती थी उनके अन्दर पता नहीं, ईश्वर का आशीर्वाद था उनके ऊपर। सुबह 4:00 बजे पूरे मोहल्ले वालों की नींद माधुरी भाभी की पूजा की घंटियो की आवाज से ही खुलती थी। फिर आधी रात तक कामों में लगी रहती। ना जाने कब सोती कब उठ जाती, पता नहीं।
शायद उनके ही पुण्य प्रताप का फल था, शर्मा जी के घर पर, ना खेत, ना खलियान सिर्फ नौकरी के बल पर दो-दो बहनों की शादी की, फिर अपने तीनों बच्चों की परवरिश, पढ़ाई लिखाई, शादी ब्याह सब किया।आस पड़ोस, मोहल्ले में किसी के घर मांगलिक कार्य हो या कोई घटना माधुरी भाभी वहां सहायता के लिए जरूर उपस्थित मिलती।
उनके साथ ससुर यानी कि शर्मा जी के माता-पिता तो माधुरी भाभी के गुणगान करते नहीं थकते। हाथों में ऐसी कला की बेकार चीज को भी साज सवार कर नया बना देती। सास-ससुर तो ज्यादा दिन उनकी सेवा का सुख ना उठा सके और जल्दी ही स्वर्गवास हो गया। अपने पीछे अपनी दो जवान बेटियों को छोड़ गए, लेकिन माधुरी भाभी ने कभी भी अपने बच्चों और उनमें भेदभाव नहीं किया।अपने बच्चों जैसा प्यार दिया और अच्छे घर में दोनों का ब्याह किया। दोनों ही अपने-अपने घरों में रच बस गई।
धीरे-धीरे बच्चे भी बड़े हो गए, बेटी का ब्याह हो गया, दोनों बेटों की नौकरी लग गई, उनका भी ब्याह हो गया। बड़े बेटे का ब्याह हुआ तो माधुरी भाभी ने घर की सारी जिम्मेदारी बहू को दे दी, बस पूजा पाठ और भजन कीर्तन में दोनों पति-पत्नी रहते।कभी किसी चीज में रोक-टोक नहीं करती ना ही हिसाब रखती। बहु को अपनी बेटी की तरह मानती और उसे भी सारे कामों की पूरी आजादी दी थी। शर्मा जी भी अपनी पेंशन आते ही बहू के हाथ में रख देते, कभी कोई हिसाब नहीं करते। बहू तुम्हारा घर है संभालो बेटा हम लोगों ने बहुत दिन संभाला।
शुरू-शुरू में तो सब ठीक था, लेकिन धीरे-धीरे बहू के व्यवहार में बदलाव आने लगा।छोटे बेटे की शादी के बाद तो घर का माहौल ही बदल गया। माधुरी जी हमेशा से संतोषी थी, किसी चीज के लिए कुछ कहा नहीं। बहुए धीरे-धीरे अपने परिवार और बच्चों में लगी रहने लगी। अब दोनों बूढ़े उन्हें बेकार लगने लगे। उन्हें लगता की मां और बाबूजी बेकार में तो दो कमरे ले रखे हैं। एक पूजा के लिए और दूसरा रहने के लिए एक में रहते हैं। इसी बात को लेकर रोज बहुएं उन्हें सुनाती।
एक दिन शर्मा जी और माधुरी भाभी ने अपना कमरा खाली कर दिया, और बाहर बारामदे में रहने लगे। पूजा घर में अपना सामान रख दिया और दोनों पति-पत्नी बारामदे में पड़े रहते। बहुओ को ना उनके खाने-पीने के समय का ध्यान ना ही किसी और चीज का।
बुढ़ापे का शरीर धीरे-धीरे और कमजोर होने लगा। कमजोर शरीर को बीमारियों ने अपना घर बना लिया माधुरी भाभी अब बहुत बीमार रहने लगी, लेकिन फिर भी अपने नित्य के पूजा पाठ और व्रत उपवास को नहीं छोड़ सकी। वह पहले की तरह ही चलता रहा।
बच्चों को उनकी पूजा पाठ और 4:00 बजे घंटे की आवाज से दिक्कत होने लगी, जिसकी वजह से उन्होंने घंटी बजानी बंद कर दी। लेकिन अपना पूजा पाठ का समय नहीं बदल पाई। शर्मा जी जब पेंशन के पैसों से दवा का खर्च उठाना चाहा तो घर में अलग ही कलह शुरू हो गई, बेचारे मजबूर होकर दवा और इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों के चक्कर काटते।
जिस घर में देर रात तक लोगों का आना-जाना लगा रहता, जिस दरवाजे से बिना खाए पिए कोई नहीं जाता उसी घर के मालिक आज बिना खाए पिए दरवाजे पर पड़े रहते। बहुओ के व्यवहार की वजह से कोई उस घर में आना-जाना नहीं चाहता था।
बहुए तो दूसरे घर से आई, लेकिन बेटों को न जाने क्या हो गया की माता-पिता की दशा उन्हें दिखाई ना पड़ती। लेकिन आज माधुरी भाभी को सभी दुखों और बीमारियों से ईश्वर ने उन्हें मुक्ति दे दी। सुबह-सुबह शर्मा जी के हृदय विदारक चीखों ने पूरे मोहल्ले को दर्द से भर दिया।
आज शर्मा जी के दरवाजे पर ऐसी भीड़ लगी थी, कि हर कोई जैसे उस देवी के दर्शन करना चाहता है जिसकी एक झलक मात्र से सभी दुखों का विनाश हो जाता है। शर्मा जी को तो जैसे ना जाने क्या हो गया है? मूचित अवस्था में सब कर्म उनको बच्चों की तरह हाथ पड़कर करवाया जा रहा था।
आखिरी बेला पर जब माधुरी भाभी को ले जाने के लिए अर्थी उठाई जाने लगी, तब ना जाने शर्मा जी को क्या हो गया, वह उठकर माधुरी भाभी के हाथों से चूड़ियां और पैरों से बिछुए निकलने लगे। जब लोगों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, तो उन्होंने कहा, भाई मेरी माधुरी को कभी भी उधार की चीज खरीदने की आदत नहीं थी। उसे कर्ज का एक दाना तक हराम लगता था। उसे भूखा रहना पसंद था, लेकिन उधार की चीजों से अपना घर चलाना पसंद नहीं था, तो मैं उसके ऊपर इतना बड़ा कर्ज लादकर कैसे विदा कर सकता हूं, वह कभी मुझे माफ नहीं करेगी।
वह तो अपने साथ मेरी आत्मबल भी ले गई, पता नहीं मैं यह कर्ज चुकाने के लिए जीवित रह भी पाऊंगा कि नहीं। उधार की चूड़ियां और बिछुए?
सुनते ही सबका मुंह खुला रह गया। शर्मा जी की आंखों से आंसू बहने लगे, और बोले हां कल जीवन में पहली बार मेरी मधु ने कुछ मांगा। कल चूड़ियां बेचने वाला आया था, उसकी आवाज सुनकर माधुरी ने कहा, जी आज आपसे कुछ मांगू मना तो नहीं करेंगे? जानती हूं मुश्किल है, लेकिन पता नहीं आज मेरा बड़ा मन कर रहा है।
मैंने कहा बोलो तो, तुमने तो आज तक एक धागा तक नहीं मांगा जो मिला पहन लिया, जो मिला खा लिया, किसी चीज की कभी शिकायत ना की, एक ही साड़ी न जाने कितने वर्षों तक पहना करती थी, तुम्हारी वजह से यह सारा घर बना है। बोलो तो सही क्या चाहिए?
जी आज बड़ा मन कर रहा है, लाल- हरी चूड़ियां और सुंदर नगों वाली बिछुए पहनने का। कहना तो नहीं चाहती, न जाने क्यों आज बार-बार मन हो रहा है। मैंने जब बहू और बेटों से पैसे के लिए कहा तो उन्होंने उल्टा सीधा बोलते हुए पैसा देने से मना कर दिया। पेंशन के पैसों में से ही कुछ देने की बात कही तो बहुएं बोली कैसे पेंशन के पैसे आप लोग खाते नहीं हो क्या? पेंशन के पैसे से ज्यादा तो आप दोनों को खिलाने में चला जाता है।
लेकिन माधुरी की इच्छा ने मुझे बैठने नहीं दिया। मैं उसकी छोटी सी इच्छा को पूरा करने के लिए तड़प उठा, और उसे बिना बताए यह चीज उधार में ले आया। मुझे क्या पता था कि मेरी माधुरी की ये आखिरी इच्छा थी, और अगर मैं उसे बता देता कि यह चीज मैं उधर लाया हूं, तो वह उसे कभी नहीं पहनती।
इतना कहते ही शर्मा जी की जैसे हिचकियां बंध गई। वहां खड़े सभी लोगों की आंखों से बहते आंसुओं से ऐसा लग रहा था जैसे आज इस धारा का अंत होने वाला है। किसी तरह से लोगों ने शर्मा जी को संभाला और माधुरी भाभी को अंतिम विदाई देने के लिए उनकी अर्थी को उठाया।
घाट पर तो ऐसी लोगों की भीड़ की बस शब्द ही नहीं। आज वह मृदुभाषिणी पांच तत्वों में विलीन हो गई। शर्मा जी माधुरी भाभी की चिता को अग्नि देने के बाद मूर्छित होकर वहीं गिर पड़े और देह त्याग दिया। शर्मा जी की चिता भी माधुरी भाभी की चिता के साथ ही जला दी गई। आज उन दोनों को ही अपने सभी दुखों से मुक्ति मिल गई। शर्मा जी की चिता भी माधुरी भाभी की चिता के साथ ही जला दी गई।
प्रेम का ऐसा दृश्य आज देखा कि इसके लिए कोई शब्द नहीं रहा। इस प्रेम के लिए मेरा तो कुछ कहने का ही सामर्थ्य नहीं, मेरी कलम तो आज निशब्द है। कोई शब्द ही नहीं समझ आ रहा इस प्रेम की व्याख्या कर सके।
प्रेम ऐसा जिसमें आत्मा बंध गई और जीवन हो या जीवन के पार साथ नहीं छोड़ा। ऐसा प्रेम न कहीं देखा ना सुना, मुझे तो प्रेम की कोई परिभाषा नहीं पता, लेकिन शायद जिससे आत्मा का बंधन हो जाए वही प्रेम है।
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