नमक। Salt: An Emotional Story in Hindi on Self-Respect and Empowerment
नमक (Salt) रिश्तों, स्वाभिमान और सशक्तिकरण की एक मार्मिक कहानी है, जिसकी कल्पना और लेखन (Swarachit Kahani in Hindi) आंचल बृजेश मौर्य ने किया है। इस भावनात्मक कथा (Emotional Story in Hindi) में पात्रों की यात्रा के माध्यम से प्रेम, आकर्षण, सम्मान और सामाजिक अपेक्षाओं के विषयों को महसूस करें।
नमक। Salt: A Tale of Self-Respect and Empowerment / An Emotional Story in Hindi / Swarachit Kahani in Hindi
रिशु- रिशु कहां हो?
हां आई………………..
कब से आवाज लगा रहा हूं, क्या कर रही थी?
शौर्य…वह फॉर्म भर रही थी, आज लास्ट डेट है ना फॉर्म भरने की, तो आवाज पर ध्यान नहीं गया।
शौर्य: तुम्हारा तो रोज का ही नाटक हो गया है रिशु।
हुआ क्या शौर्य यह तो बताओ?
शौर्य: हुआ क्या? जैसे तुम्हें कुछ पता ही नहीं?
रिशु: नहीं शौर्य सच मुझे कुछ नहीं पता। मैंने तो नाश्ता बना कर टेबल पर लगा दिया और आप लोगों को आवाज देकर मैं किचन में चाय बनाने के लिए चली गई। चाय बनाते-बनाते फॉर्म भी भर रही थी लेकिन बताइए तो हुआ क्या?
रिशु मन ही मन यह सोचकर घबराने लगी कि कहीं मम्मी जी ने फिर तो कोई शिकायत नहीं कर दी शौर्य से।
शौर्य: रिशु तुम चाहती क्या हो? यह बता दो। क्या तुमसे शादी करके मैंने गलती की या अपने माता-पिता को अपने साथ यहां लेकर आया यह गलती की?
रिशु: शौर्य फालतू की बातें मत करो। मैंने कब कहा यह सब।
कहा नहीं तो यह क्या है? शौर्य ने टेबल पर लगे नाश्ते की तरफ इशारा करते हुए कहा, तुम खा कर दिखाओ इसे।
टेबल पर रखे नाश्ते को चखते ही रिशु के मुंह का स्वाद बिगड़ गया और बोली… सॉरी-सॉरी जल्दी-जल्दी में नमक डालना भूल गई। वह पापा के लिए बिना नमक वाला निकालना पड़ता है, इसलिए लगता है निकालने के बाद सब लोगों के लिए नमक डालना भूल गई। अभी लाती हूं।
रहने दो तुम ही खाओ अब मुझे देर हो रही है। शौर्य चाय तो पी कर जाइए, बन गई है, मैं अभी लेकर आती हूँ।
रिशु तुरंत किचन की तरफ भागी की जल्दी से चाय लेकर आऊं। रिशु जब तक चाय लेकर आई, शौर्य जा चुका था।
मम्मी जी शौर्य चले गए क्या?
हां चला गया। अब तुम मजे से चाय नाश्ता करो। वह बेचारा दिन भर भूखा ऑफिस में सर खपाए और यह महारानी ढंग से चाय नाश्ता भी नहीं करवा सकती पति को। जब देखो फोन में घुसी रहती है। कान में हेडफोन लगाकर कर ना जाने क्या-क्या करती है।
आजकल की लड़कियों को तो शादी का मतलब ही नहीं पता। बस पति बेचारा दिन भर खटता रहे और यह आराम से घर में पैर फैलाए सोती रहे, और फालतू के पैसे उड़ाती रहे। खुद पैसे कमाने हो तो समझ आए।
रोज का नाटक है इनका। कभी नमक नहीं, कभी ज्यादा हो जाता है, कभी मिर्च ज्यादा हो जाती है, तो कभी कुछ तो, कभी कुछ। अगर तुम्हारा मन नहीं लगता खाना बनाने में तो बता दो। मैं इतनी बूढी नहीं हुई हूं की अपने बेटे को ठीक से दो रोटी भी ना बनाकर खिला सकूं।
जब से हम लोग आई हूं देख रही हूं कि शायद ही कोई दिन ऐसा हो जब शौर्य नाश्ता करके खुशी-खुशी ऑफिस गया हो। पता नहीं क्या देखकर शौर्य ने तुमसे शादी की? ना खाना बनाने का गुण, न पहनने ओढ़ने का।
बेटे की ममता में मैंने भी हां कर दी। हटाओ यह सब… ले जाओ ,खाओ खूब पेट भर के। विमला जी की बातों को सुनकर रिशु रोती हुई किचन में चली गई और कामों में लग गई।
यह विमला जी है, शौर्य की मां जो अभी गांव से शहर आई है, अपने बेटे के साथ रहने के लिए। उनके पति यानी शौर्य के पिताजी एक अध्यापक थे। गांव के स्कूल में अब रिटायर हो गए हैं, और काफी बीमार भी रहने लगे थे।
वहां गांव में उनका ठीक से इलाज नहीं हो पा रहा था, इसलिए शौर्य उन लोगों को अपने साथ ले आया। विमला जी जब से आई है तब से शौर्य के कान ही भारती रहती हैं। छोटी-छोटी बातों को बढ़ा-चढ़ा कर उसे बताती हैं।
रिशु की गलती ना होने पर भी वह शौर्य के सामने उसे ही दोषी बना देती है, क्योंकि वह रिशु को पसंद नहीं करती। वह अपने बेटे की दूसरी शादी करना चाहती है अपनी पसंद से। जहाँ जी भर कर अपने अरमान पूरे कर सके और खूब दहेज़ लेकर सबके सामने अपनी शान बढ़ा सके।
रिशु और शौर्य की शादी को 1 साल होने को है। रिशु और शौर्य की लव मैरिज है। दोनों एक कॉमन फ्रेंड की वजह से एक शादी में मिले, फिर दोस्ती हुई और दोस्ती फिर धीरे-धीरे प्यार में बदल गई।
अपने प्यार को एक नाम देने के लिए दोनों ने शादी का फैसला किया। दोनों ने ही अपने-अपने परिवारों से बात की। दोनों ही परिवारों ने मना कर दिया, लेकिन रिशु और शौर्य के जिद के आगे उन्हें झुकना ही पड़ा और दोनों की शादी हो गई।
रिशु को शादी के पहले घर का कोई कामकाज नहीं आता था। खाना बनाना भी नहीं आता था। लेकिन शादी के बाद वह धीरे-धीरे सब सीखने की कोशिश कर रही थी। थोड़ा बहुत ही इस नए जीवन में एडजस्ट कर पाई थी, कि रिशु के सास-ससुर गांव से यहां उन लोगों के साथ रहने आ गए।
विमला जी को तो रिशु वैसे भी पसंद नहीं थी। रोज सुबह होते ही विमला जी के चीखने-चिल्लाने का दौर शुरू होता तो रात के सोने तक चलता।
रिशु ने शादी से पहले ही शौर्य को बता दिया था कि वह शादी के बाद भी पढ़ाई करना चाहती है और कुछ बनकर देश की सेवा करना चाहती है। शौर्य भी रिशु की इस बात को मान गया और रिशु को पढ़ाई से कभी रोक नहीं। लेकिन धीरे-धीरे कुछ बदलाव शौर्य के अंदर रिशु ने महसूस किया। उसके अंदर एक चिड़चिड़ापन दिखने लगा। शौर्य अब पहले की तरह सपोर्ट भी नहीं करता।
रिशु घर का सब काम खत्म करके अपने कमरे में गई की थोड़ी देर कुछ पढ़ लू, तभी विमला जी की आवाज आई जो दरवाजे पर खड़ी थी।
विमला जी: बहु…
रिशु: जी मम्मी जी।
बहु यह क्या तुम फिर से फोन और इस लैपटॉप में लग गई, तुम्हें याद नहीं नहीं है क्या? आज जीजी आने वाली है, अपने पूरे परिवार के साथ। मैंने तुम्हें बताया था ना कल ही, और तुमने अभी तक कुछ चाय नाश्ते का प्रबंध नहीं किया है? रसोई तो खाली है, क्या बाहर का नाश्ता खिलाओगे जीजी को?
5:00 बजे तक पहुंच जाएंगे वो लोग और तुम अभी ना तो तैयार हुई हो और ना ही उनके स्वागत सत्कार की कोई तैयारी की है?
रिशु: मम्मी जी मैं तो सच में ही भूल गई थी बुआ जी के आने के बारे में, माफ कर दीजिए। मैं अभी सब तैयार कर लेती हूं।
विमला जी: और हां यह सलवार सूट नहीं चलेगा। जब तक जीजी है, तब तक घर की बहू की तरह साड़ी पहनना, और जेवर जो शादी में दिए थे वह तुम्हारे पास ही है ना कि, मायके में दान कर दिए।
मेरे पास ही है मम्मी जी, आप ऐसा क्यों बोल रही है।
विमला जी: ठीक है तो वह भी पहन लेना समझ गई। नहीं तो जीजी सोचेगी कि हमने तुम्हें कुछ दिया ही नहीं।
रिशु: लेकिन मम्मी जी मैं साड़ी पहन कर काम नहीं कर पाती हूं।
विमला जी: वह सब मुझे नहीं पता, पहनना है मतलब पहनना है। इतना कहकर वह बड़बड़ाते हुए नीचे चली गई।
रिशु के समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। वह सब कुछ छोड़कर किचन की तरफ भागी और जल्दी-जल्दी नाश्ते की तैयारी में लग गई। पहले नाश्ता बना लूं फिर तैयार हो जाऊंगी।
रिशु अभी नाश्ता बना ही रही थी कि तभी दरवाजे पर गाड़ी के हार्न की आवाज सुनाई दी। उसने किचन से बाहर आकर देखा बुआ अपने पूरे परिवार के साथ आ गई थी और साथ में शायद अपनी नई बहू को भी ले आई थी जिसकी अभी 2 महीने पहले ही शादी हुई थी।
रिशु जल्दी से वापस आकर नाश्ते की तैयारी में लग गई और गैस पर चाय रख दी बनने को। तभी विमला जी की आवाज आई बहू कहां हो इधर आओ बुआ आ गई है। रिशु किचन से बाहर आई उसे देखकर विमला जी गुस्से से लाल हो गई लेकिन मेहमानों के सामने कुछ कह नहीं पाई।
रिशु ने बुआ के पैर छुए और सबको प्रणाम कर सबसे हाल समाचार पूछने लगी। तभी विमला जी बोली बातें ही करती रहोगी या फिर जीजी के चाय नाश्ता भी करवाओगी।
जी भी लाई।
रिशु किचन में चाय नाश्ता लेने चली गई।
भाभी यह तुम्हारी बहु कैसे रहती है,और यह क्या नया फैशन शुरू किया है तुम लोगों ने बहू का सूट पहनने का? ना साड़ी ना जेवर, ना हाथ भर चूड़ियां, ना माथे पर बिंदी,ना सर पर पल्लू यह सब क्या है?
हां भाई तुम लोग तो नए जमाने की हो, इसलिए बेटे ने अपनी मर्जी से शादी कर ली तो बहू तो अपनी मर्जी चलाएगी। मेरी बहू को देखो कैसे सुंदर गुड़िया जैसी लग रही है, और तुम्हारी बहू को देखो।
नहीं जीजी बहू जरा कामों में व्यस्त थी तो तैयार होने का समय नहीं मिल पाया होगा। भाभी जैसा तुम लोगों को ठीक लगे वैसा करो हमें क्या। हमारा काम था तुमको समझाना सो कह दिया।
रोमा और हिना कहां है वह भी तो आने वाली थी? बड़े दिन हो गए उन लोगों को भी देखे हुए। शौर्य की शादी में तो आना हुआ नहीं, इसलिए दोनों बच्चियों को भी नहीं देख पाई। चलो आ रही हैं तो उनसे भी मुलाकात हो जाएगी। अच्छा है सारा परिवार एक साथ इकट्ठा होकर दो-चार दिन हंसी मजाक कर ले तो अच्छा रहता मन अच्छा हो जाता है।
हां जीजी वह दोनों दो दिनों के बाद आने वाली है। अच्छा चलिए आप चेंज करके थोड़ा आराम कर लीजिए सफर से थकान हो गई होगी।
विमला जी अपनी ननद यानी शौर्य की बुआ को रूम में पहुंच कर आग बबूला होते हुए सीधे रिशु के पास पहुंची और गुस्से में आंखें दिखाते हुए बोली की तुमसे मैंने पहले ही कहा था कि यह सब कपड़े बदल कर साड़ी पहन लो फिर क्यों नहीं बदली तुमने।
मेरी बेइज्जती करवाने की कसम खा रखी है क्या? जाओ जाकर बदलो। जब जीजी चली जाए तो जो चाहे पहनना। क्योंकि हमारी तो वैसे भी तुम्हारी नजर में कोई इज्जत नहीं है।
अभी तक रसोई साफ नहीं कि तुमने तो रात के खाने का इंतजाम कब करोगी। रात के खाने में दो-तीन सब्जियां, पूरी, पुलाव,चटनी यह सब बनानी है समझी। जाओ जाकर यह सब बदलो। मेरा मुंह ही देखती रहोगी महारानी या हाथ पर भी चलाओगी।
विमला जी की कड़वी बातें सुनकर रिशु आंखों में आंसू लिए अपने कमरे में चली गई। साड़ी और गहने पहनने की रिशु को आदत नहीं थी, इसलिए वह यह सब पहनकर काम भी नहीं कर पा रही थी। घर में मेहमानों के सामने वह घर का माहौल खराब नहीं करना चाहती थी इसलिए किसी तरह कामों में लगी रही।
शौर्य के ऑफिस से आने के बाद सभी खाना खाने बैठे। रिशु ने सब की प्लेट लगाई और गरम पूरी लेने के लिए रसोई में चली गई।
भाभी अगर मेरे आने से तुम्हें तकलीफ थी तो पहले ही बता देती हम लोग नहीं आते। मेरे बेटे बहू के सामने मेरी इस तरह बेइज्जत करने की क्या जरूरत थी। जीजी यह आप क्या कह रही है, मैं भला ऐसा क्यों चाहूंगी और आप ही बताइए कभी मैंने आपका स्वागत सत्कार में कोई कमी की हो तो?
अच्छा तो यह क्या है खा कर देखो इसे? शाम को भी वही हाल था तुम्हें तो पता है मुझे मीठी चाय अच्छी लगती है। चलो उसके लिए नहीं कहती हूं हो सकता है तुमने बहू को ना बताई हो। लेकिन अब यह बेस्वाद खाना मुझे नहीं खाया जाता। अपने बेटे बहू के सामने मैं तुम्हारे खाने की कितनी तारीफ किया करती थी और तुमने यह खाना खिलाकर उनके सामने मेरा सर ही झुका दिया।
विमला जी ने और शौर्य ने उनके प्लेट से खाना चखा और उनका भी मुंह बिगड़ गया। विमला जी का गुस्सा फूट पड़ा, शौर्य पर चिल्लाते हुए बोली बस यही बचा था आज तूने वह भी सुनवा दिया अब मैं और इस घर में अपनी बेइज्जती करवाने के लिए नहीं रह सकती।
तभी रिशु वहां हाथ में पुरिया लिए पहुंची। कुछ बोलने ही वाली थी कि शौर्य ने एक जोरदार थप्पड़ रिशु के गालों पर जड़ दिया। उस थप्पड़ की गूंज से पूरे घर में सन्नाटा छा गया।
रिशु तुम मेरे माता-पिता से नफरत करती हो यह तो मैं जानता हूं, लेकिन उनको घर से निकालने के लिए इस हद तक गिर जाओगी यह नहीं सोचा था। तुम्हें कभी भी किसी चीज से रोका नहीं, तुम्हें हर सुख सुविधा दी, कभी तुमसे किसी चीज का हिसाब नहीं लिया,और तुम घर में आए मेहमानों को दो वक्त ठीक से खाना नहीं खिला पाई।
तुमसे यह छोटा सा घर नहीं संभलता। चुटकी भर नमक नहीं संभाल पाती और देश संभालने के सपने देखते हो। जब से तुमसे शादी किया है घर के खाने में भी अच्छा स्वाद होता है मैं तो भूल गया हूं। यह बेस्वाद खाना बनाकर दिन भर तुम अपने दोस्तों के साथ फोन पर लगी रहती हो और मेरे आने पर दिखाती हो की बहुत थक गई हो। जैसे ना जाने कौन सा पहाड़ तोड़ रही थी।
इसी सब वजह से लोग बोलते हैं लव मैरिज नहीं करना चाहिए। ना संस्कार, ना मर्यादा… अगर तुम मेरा घर नहीं संभाल सकती, मेरे माता-पिता की सेवा नहीं कर सकती तो अभी इसी वक्त मेरे घर से निकल जाओ। मैं भी तुम्हारे रोज-रोज के इस नाटक से तंग आ गया हूं।
रिशु के सब्र का बांध अब टूट गया था। रोज-रोज सास के ताने और बातें सुनकर वह चुप रह जाती थी कि घर में शांति बनी रहे और समय के साथ धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। क्योंकि रिश्तो को बनाने में और सहेजने में समय तो लगता ही है। हो सकता है सासू मां भी मुझे थोड़े समय बाद समझ सके।
लेकिन मेहमानों के सामने शौर्य ने जो थप्पड़ उसके गाल पर लगाया, आज उसे रिशु बर्दाश्त नहीं कर पाई और बोली। शौर्य… शादी कोई खेल नहीं जो जब चाहा खेल लिया और जब चाहा उसे खत्म कर दिया। अक्सर अक्सर तो मम्मी जी की बातों में आकर मुझ पर हाथ उठाते हो लेकिन बस अब बहुत हो गया अब मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकती।
प्रेम का मतलब तुम क्या समझोगे। क्योंकि मुझे तो आज इस बात का यकीन हो गया कि तुम्हें मुझसे प्रेम नहीं आकर्षण था। क्योंकि जिससे प्रेम होता है उसका क्रोध, घृणा,कटु वचन, उसकी गलतियां, उसकी कमियां इन सब के साथ उसको स्वीकार करना पड़ता है। जैसा कि मैंने किया तुमने नहीं।
प्यार हो तो यह सब भी अच्छा लगता है। प्यार इंसान को सहनशील बनता है। केवल वही यह कर सकता है जिसने सच में प्रेम किया हो। केवल आकर्षण को प्रेम का नाम देने वाले प्रेम किसे कहते हैं उसे क्या पता ?
तुम कहते होना मुझ में ना संस्कार है, ना मर्यादा। तो तुमने कौन सा संस्कारों का अच्छा उदाहरण दिया हर रोज दूसरों की बातों में आकर बिना सच को जाने मुझे दोषी बनाना। लोगो के सामने अपनी पत्नी पर हाथ उठाना, यह कहां का संस्कार और मर्यादा है।
कहते हैं बहु गृहस्वामिनी होती है और उसे एक सवाल पूछने का भी अधिकार नहीं देते हैं। गृहस्वामिनी तो कहते हो लेकिन तुम लोग उसे घर से निकालने की धमकी देते हो, यह कैसी गृहस्वामिनी है जिसका कोई घर ही नहीं। ऐसी गृहस्वामिनी होने से अच्छा है वह एक इंसान ही रहे, जिसका कोई अपना घर तो हो ।
उसकी जरा सी गलती हो उसे बर्दाश्त नहीं कर सकते, उसे घर से ही बेघर कर देते हो। तुम लोगों के सम्मान की खातिर दिन रात चूल्हे में जलती रहती है, कोई विरोध नहीं करती। इसके लिए उसे मिलता क्या है… अपमान?
कहीं वह अपना अधिकार ना मांग ले इस डर से तुम जैसे लोगों ने स्त्री को अन्नपूर्णा बना दिया। कैसी अन्नपूर्णा, कैसी देवी जिसके खाने पर भी रोक-टोक हो। उसकी छोटी-छोटी गलतियों को इतना बड़ा बना दिया कि वह खुद से भी नजरे ना मिल सके। वह हमेशा अपने आप को ही दोषी मानती रहे और किसी भी अन्य का विरोध ना कर सके, अपना अधिकार न पा सके, अपना सम्मान न हासिल कर सके।
तुम कहते हो चुटकी भर नमक नहीं संभाल पाती, उसके सपने देश संभालने के हैं। हां है मेरा सपना कुछ करने का, अपना वजूद बनाने का अपने हिस्से का सम्मान पाने का और मैं अपने सपने को जरूर पूरा करूंगी।
शौर्य, पति को परमेश्वर का दर्जा देने से वह परमेश्वर नहीं बन जाता। परमेश्वर को कम से कम सही गलत का पता तो होता है। कोई भी फैसला सुनने या किसी को कुछ कहने से पहले उसकी बातों को जरूर सुन लेना चाहिए।
यह प्लेट मैंने पापा जी के लिए लगाई थी जिसमें गलती से बुआ जी ने खाना खा लिया। पापा जी रोज इसी कुर्सी पर बैठते हैं इसलिए मैंने उनकी प्लेट इधर ही लगा दी और पूरी लेने चली गई। बाकी सब के खाने में नमक बराबर डाला है लेकिन लगता है कि हमारे रिश्ते में प्यार रूपी नमक खत्म हो गया है।
इसलिए यह बेस्वाद हो गया है। और जिस रिश्ते में विश्वास ना हो, उसे निभाते रहने का कोई फायदा नहीं। मेरे माता-पिता ने मुझे इस लायक बनाया है कि मैं अपना जीवन सम्मान पूर्वक जी सकूं और अपने सपने को भी पूरा कर सकूं। मैं तुम्हारे इस घर को छोड़कर जा रही हूं क्योंकि मैं अब और अपने आपको नीचे नहीं गिरा सकती।
शाबाश बहू… आज तुमने इन लोगों को उनका असली चेहरा दिखा दिया, मैं तो कब से चाहता था कि बोलूं। लेकिन एक शिक्षक होने के नाते मेरा यह कर्तव्य था कि तुम अपने अधिकारों को पहचानो।इसलिए मैंने भी इस मामले में बोलने की जल्दबाजी नहीं दिखाई, और हां अपने साथ मेरा भी सामान पैक कर लो।
क्योंकि जहां मेरी बेटी की इज्जत नहीं, वहां एक पिता कैसे रह सकता है। मेरे लिए तो इस घर का पानी भी हराम है। चलो हम अपने घर चलते हैं और तुम्हारे उस अधूरे सपने को पंख लगाते हैं, जिसे तुम इन जैसे घटिया लोगों के लिए बलिदान करना चाहती थी।
शौर्य आकर्षण और प्रेम में फर्क होता है यह समझाने के लिए मैं सदा तुम्हारी आभारी रहूंगी, और हां शौर्य यदि बार-बार अपमानित होकर भी आपसे कोई जुड़े रहने की कोशिश करें तो इसका मतलब यह नहीं कि वह निर्लज है। हो सकता है, उसके जीवन में आपका स्थान उसके लिए उससे अधिक हो।
इतना कह कर रिशु और शौर्य के पिताजी वहां से चले गए एक नई सुबह को देखने के लिए।
नए-नए अपडेट के लिए ChaikePal व्हाट्सएप, फेसबुक और टेलीग्राम समूह से जुड़ें।
ऐसे ही अन्य मार्मिक और प्रेरणादायक हिंदी कहानियों को पढ़ने के लिए हमारे वेब पेज Emotional Story in Hindi को विजिट करना ना भूले।
ऋशु के किरदार में नारी शक्ति का अनुपम उदाहरण । अधिकार मिलता नहीं , छीनना पडता है।