नजरिया – Najariya। A Hindi Story Changing the Way We See Family Relations
यह Hindi Kahani गीता जी के पारिवारिक रिश्तो को देखने के नजरिए (Najariya or Perception) के बारे में है। उनका मानना है कि जब आप समुद्र में कुछ भी डालते हैं वो थोड़ी देर बाद हमें वापस कर देता है, अपने पास कुछ नहीं रखता । हमारे बच्चे भी तो वैसे ही होते हैं। हम उनके साथ जैसा व्यवहार करेंगे, वैसा ही वो भी करेंगे। क्या गीता जी का दुनिया देखने का ये नजरिया (Najariya or Perception) सही है? आईये जानते है इस कहानी में…
नजरिया – Najariya। पारिवारिक रिश्तो को देखने का नजरिया बदलने वाली एक कहानी – A Hindi Story Changing the Way We See Family
नीला… दीप्ति… बेटा आ जाओ… चाय तैयार है । आए मां… नीला और दीप्ति दोनों शाम की चाय के लिए डायनिंग रूम में आ गए । गीता जी ने सबको चाय और गरमा-गरम आलू की टिक्किया परोसी और खुद भी सबके साथ चाय पीने के लिए बैठ गई ।
नीला यानी नीलांश, गीता और विशाल जी की बेटी है । विशाल जी [ गीता जी के पति ] पोस्ट ऑफिस में हेड क्लर्क है और गीता जी हाउसवाइफ है । दीप्ति, गीता जी की बहू है जो कि बहुत ही प्यारी और हँसमुख है । सभी हंसते-मुस्कुराते शाम की चाय का आनंद ले रहे हैं और शादी की तैयारी की चर्चा भी कर रहे हैं ।
दीदी आप क्यों इतना शांत हैं, क्या हुआ सब ठीक है ना? हां छोटी, सब ठीक है । ये निशा जी हैं, गीता जी की बड़ी बहन जो गीता जी के घर आई है क्योंकि नीला [ नीलांश ] की शादी की तारीख आज से 15 दिन बाद है । और गीता और विशाल जी के बहुत आग्रह करने पर वह शादी से 15-20 दिन पहले ही आ गई है ।
“दीदी पूजा का सारा सामान और प्रसाद आप अपनी निगरानी में करवाइएगा क्योंकि आपको तो पता है निखिल [गीता और विशाल जी का बेटा ] की शादी में क्या हुआ था” विशाल जी बोले ।
“हां दीदी… मुझे तो कुछ पता नहीं था, घर में पहली शादी और आप भी निखिल की शादी में अपनी बड़ी बहू की डिलीवरी की वजह से नहीं आ पाई थी । और रिश्तेदारों को तो आप जानती हैं, 100 काम अच्छे हो तो तारीफ नहीं करेंगे लेकिन एक काम जरा सा खराब हो जाए तो राई का पहाड़ बना देते हैं दीदी” गीता जी ने कहा ।
“अरे छोटी तू उसकी चिंता मत कर, मैं आ गई हूं सब संभाल लूंगी” निशा जी ने तसल्ली देते हुए कहा।
“नीला… दीप्ति… बेटा कल पापा ने ऑफिस से छुट्टी ली है, आप लोग कल उनके साथ जाकर ज्वेलरी की शॉपिंग कर लेना” गीता जी बोली ।
“ठीक है माँ… मैं निखिल से अभी फोन करके बात कर लेती हूं कि हो सके तो कल वो भी ऑफ ले ले । सब साथ में चलेंगे तो बाकी की शॉपिंग भी हो जाएगी” दीप्ति बोली ।
ठीक है बेटा… तुम निखिल से बात कर लो, मैं जरा रात के खाने का देख लेती हूं । “मैं भी आपके साथ आती हूं माँ, आज डिनर मौसी की पसंद का बनाऊंगी और बातें भी कर लेंगे कल की शॉपिंग की” नीला ने कहा ।
गीता जी और नीला दोनों किचन में चली गई । दीप्ति भी चाय का बर्तन समेट अपने रूम में चली गई निखिल से बात करने । विशाल जी और निशा जी बातों में व्यस्त हो गए ।
दूसरे दिन विशाल जी और निखिल ने छुट्टी ले रखी थी । सब आराम से चाय नाश्ता कर रहे थे लेकिन दीप्ति के तो हाथों में तो जैसे मशीन लगी हो जल्दी-जल्दी सारा काम खत्म कर लो नहीं तो अभी निखिल और पापा जी का शोर शुरू हो जाएगा जल्दी चलो…. तो तैयार होने का भी मौका नहीं मिलेगा ।
“दीप्ति… बेटा ये क्या कर रही हो, ये सब मैं कर लूंगी, तुम जाकर तैयार हो जाओ” गीताजी बोली । “मां… आप भी चलिए ना, आप साथ रहेंगी तो अच्छा रहेगा” दीप्ति बोली ।
बेटा… घर में पेंटिंग वाले लगे हैं, ऐसे पूरा घर उनके ऊपर छोड़कर नहीं जा सकते हैं ना । और तुम साथ जा रही हो, नीला की पसंद तो तुम अच्छे से जानती हो । मुझे तो तुम पर पूरा भरोसा है, तुम सब अच्छे से संभाल लोगी ।
लेकिन मां… “लेकिन वेकिन कुछ नहीं, ये सब मैं देख लूंगी । और पापा बोल रहे हैं लंच बाहर करने के लिए तो अपना और दीदी का खाना मैं बना लूंगी, तुम जाकर तैयार हो जाओ” । गीता जी ने दीप्ति को तैयार होने के लिए भेज दिया और खुद रसोई में लग गई ।
मां कैसे लग रहे हैं हम लोग… नीला की आवाज से गीता जी ने पीछे मुड़कर देखा । मेरी बेटियां तो हमेशा ही सुंदर लगती है… नजर ना लगे तुम लोगों को । तुम लोगों का ये मां से तारीफ करवाना हो गया हो तो चले, पापा कब से बाहर इंतजार कर रहे हैं । जैसे ही निखिल ने कहा, नीला और दीप्ति दोनों बाहर की तरफ भागी कि कहीं और डांट ना पड़ जाए ।
“दीदी… बाहर आ जाओ… मैं आपका चाय नाश्ता यही ले आई हूं” गीता जी ने निशा जी को आवाज लगाते हुए कहा क्योंकि निशा जी बिना स्नान और पाठ किए कुछ खाती पीती नहीं थी इसलिए वह सुबह सबके साथ नाश्ता नहीं कर पाई थी ।
गीता जी भी वहीं बैठी निशा जी के साथ चाय पी रही थी और सब्जियां भी काट रही थी । ये क्या छोटी… तुम इस समय सब्जियां क्यों काट रही हो, बहू ने अभी तक खाना नहीं बनाया क्या? “बस सब्जी ही बनानी है दीदी, बाकी सब हो गया है” गीता जी बोली।
ये सब क्या है छोटी और आज तुम विशाल जी के साथ बाहर क्यों नहीं गई? तुम्हारा दिमाग तो ठीक है ना… नीला के गहनों की शॉपिंग करने के लिए तुम ने बहू को भेज दिया और खुद यहां बैठी सब्जियां काट रही हो? हल्के और बेकार गहने पसंद कर लिए बहू ने तो ससुराल वालों के सामने नीला की क्या इज्जत रह जाएगी? सब कहेंगे एक ही बेटी थी उसमें भी इस तरह के गहने दिए?
और ये किस तरह के कपड़े पहनती है बहू? ना साड़ी, ना सर पे पल्ला..सबके साथ जब देखो तो हंसी मजाक… सास-ससुर के सामने कैसे रहते हैं इसका भी ढंग नहीं और तू क्यों हमेशा उसके साथ काम में लगी रहती है? सास है उसकी, कोई बाई नहीं… इतने दिनों तक तो किया ना, अब बहू आ गई है तो आराम कर ।
गीता जी निशा जी की बात सुनकर मुस्कुराए जा रही थी और अपने काम में मगन थी । ये क्या छोटी… मैं तुमसे कुछ कह रही हूं और तू है कि मेरी बात सुनने की जगह ये सब्जी काटने में लगी है । छोड़ ये सब… मेरा तो गुस्से में सर फटा जा रहा है ।
दीदी… क्यों बेकार में गुस्सा कर रही हैं । दीप्ति तो मुझसे चलने के लिए कह रही थी लेकिन मैंने ही उसे भेजा है। नीला और दीप्ति दोनों की आपस में बहुत बनती है । दीप्ति साथ रहेगी तो नीला को अपनी चीजें लेने में आसानी हो जाएगी और दीप्ति की पसंद बहुत अच्छी है । आपने देखा नहीं, नीला का लहंगा कितना सुंदर पसंद किया उसने ।
दीप्ति अभी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है, उसे भी पढ़ाई करने के लिए समय की जरूरत होती है । इसलिए मैं भी उसके साथ कामों में लगी रहती हूं कि जल्दी से सब काम खत्म हो जाए और बच्ची को पढ़ाई के लिए ज्यादा समय मिल सके । और हंसना-बोलना तो अच्छी बात है दीदी, उससे हम एक दूसरे को समझ सकते हैं… उसकी पसंद-नापसंद जान सकते हैं ।
रही बात कपड़ों और संस्कारों की, तो ये किस किताब में लिखा है कि साड़ी पहनने और घुंघट करने से बहू संस्कारी होती है। अगर उसने साड़ी की जगह सलवार, कुर्ता या जींस पहन लिया तो उसके संस्कार खत्म हो जाते हैं? मेरे लिए तो जैसे नीला और निखिल वैसी ही दीप्ति ।
जिसे पूरे समाज और भगवान के सामने अपनी बच्ची मानकर घर लाए उसके साथ ऐसा व्यवहार क्यों? बस इसलिए की नीला और निखिल के जन्म पर मुझे दर्द से गुजरना पड़ा और दीप्ति के लिए मुझे दर्द नहीं हुआ । ये तो गलत है दीदी ! किसी और से क्यों, हम प्रकृति से ही क्यों नहीं सीख लेते?
आपने तो समुद्र देखा है ना दीदी… लेकिन कभी ये देखा है कि जब हम उसमें कुछ भी सामान अच्छा या खराब जो भी डालते हैं वो थोड़ी देर बाद हमें वापस कर देता है, अपने पास कुछ नहीं रखता । हमारे बच्चे भी तो वैसे ही होते हैं दीदी… हम उनके साथ जैसा करेंगे, वैसा ही वो भी करेंगे । ये मेरा अपना नजरिया (Najariya or Perception) है दीदी ।
शायद तू सही कह रही है छोटी । मैं भी दुनिया की उस अंधेपन में शामिल हो गई थी जिसकी आंखें रहते हुए भी कुछ दिखाई नहीं देता । अब मैं भी अपना नजरिया (Najariya or Perception) और व्यवहार बदलने की कोशिश करूंगी ताकि मेरी बहू के अंदर मेरे लिए डर और गुस्सा नहीं बल्कि प्यार हो । धन्यवाद छोटी, मुझे दुनिया को एक नए नजरिए (Najariya or Perception) से दिखाने के लिए । और फिर निशा जी ने गीता को गले लगा लिया ।
नजरिया बदलने से हो सकता है हमारा समाज बदल जाए? दोस्तो आपकी क्या राय है इस नए नजरिए के बारे में, कमेंट में जरूर बताएं…
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