दहेज प्रथा – हमारे समाज पर एक अभिशाप। Dowry System: A Curse on Our Society
दहेज प्रथा (Dowry System) एक Hindi Kahani है जिसमें युवा लड़कियों और उनकी शादियों पर दहेज के हानिकारक प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया गया है। यह Hindi Story समाज में दहेज के प्रचलित मुद्दे और इससे प्रभावित लोगों के जीवन पर पड़ने वाले परिणामों पर प्रकाश डालती है।
यह एक मार्मिक और दिल को छू लेने वाली Short Story in Hindi में है जिसका उद्देश्य इस गंभीर मुद्दे के बारे में जागरूकता बढ़ाना और दहेज प्रथा (Dowry System) जैसी कुरीति और रूढ़िवादी परंपरा को खत्म करने के लिए जरूरी कदम उठाने के बारे में है।
दहेज प्रथा – हमारे समाज पर एक अभिशाप। Short Story in Hindi on Dowry System: A Curse on Our Society:
मुझे आज अपनी गलती का एहसास हो रहा है जी, कि हमने समधी जी के साथ कितना गलत व्यवहार किया। सच ही कहते हैं, भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती। तुम सही कह रही हो प्रियंका की मां, आज हमारे कर्मों की सजा हमारी बेटी को मिल रही है।
यह सुलोचना और अर्जुन जी हैं, अर्जुन जी सरकारी इंजीनियर हैं, और सुलोचना जी एक हाउसवाइफ है। जो आज आंगन में बैठे अपनी गलती पर पछता रहे हैं। आइए जानते हैं उन्हें अपनी गलती का एहसास कैसे हुआ।
आज से 6 साल साल पहले उनके बेटे प्रियांशु की शादी, पास के शहर में रहने वाले अजीत जी की बेटी काम्या के साथ तय हुआ था, और शादी में उनकी सभी मांगों को काम्या के पिता ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। काम्या एक सीधी-सादी और घरेलू लड़की थी। विवाह की सारी तैयारियां शुरू हो गई। कपड़े गहने सभी खरीदे जाने लगे।
तभी अर्जुन जी ने अपने रिश्तेदारों की बातों में आकर विवाह मैरिज हॉल की जगह फाइव स्टार होटल से करने की शर्त रखी, और कहा कि अगर आपने यह व्यवस्था नहीं की तो यह शादी नहीं हो सकती। काम्या के पिता ने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन अर्जुन जी अपनी बात पर अड़े रहे।
अर्जुन जी ने कहा मैरिज हॉल हमारी हैसियत के बराबर नहीं है, लोग क्या कहेंगे, कि कहां रिश्ता कर लिया। एक ही बेटा है, मेरा और बेटे की शादी रोज-रोज थोड़े ही होती है।
शादी के कार्ड बट चुके थे, और बहुत सारी शादी की तैयारियां भी हो चुकी थी। इसलिए काम्या के पिता ने किसी तरह कर्ज लेकर फाइव स्टार होटल बुक कर लिया।
शादी का दिन था, और प्रियांशु की बारात नाचते गाते होटल पहुंच गई। शादी का कार्यक्रम भी शुरू हो गया, लेकिन तभी अर्जुन जी का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया । चिल्लाते हुए बारात वापस ले जाने की बात करने लगे। काम्या के पिता ने उन्हें समझाते हुए कहा, कि समधी जी आप बिना वजह नाराज हो रहे हैं। आप पहले मेरी बात तो सुन लीजिए।
आप के बताए अनुसार ही हमने सारी व्यवस्था की थी, लेकिन होटल वालों का कहना है, कि कुछ लड़कों ने बहुत सा खाना बर्बाद कर दिया, जिससे खाना कम पड़ गया।
तो क्या हो गया शादी विवाह में तो यह सब होता है, और अब क्या मेरे रिश्तेदार भूखे ही रहे। अर्जुन जी ने गुस्से में कहा। काम्या के पिता और उसके भाई ने किसी तरह स्थिति को संभाला और शादी हो गई। शादी के बाद भी काम्या के ससुराल वालों की मांगे खत्म नहीं हुई।
काम्या ने इस बारे में जब अपने पति प्रियांशु से बात की तो उसने कहा, मैं इस सबके बीच में नहीं पड़ना चाहता।
दहेज की इस लेनदेन ने एक बेटी को उसके माता-पिता, भाई-बहन के प्यार से जरूर दूर कर दिया था। काम्या शादी के बाद कभी अपने मायके नहीं जा सकी। जब भी उसके मायके जाने की बात करने के लिए काम्या के पिता आते, तो उन्हें कोई ना कोई बहाना बनाकर लौटा दिया जाता, या कोई नई डिमांड बता देते।
काम्या की ननद की शादी में भी अजीत जी को ढेरों सामान की लिस्ट पकड़ा दी गई। यह कह कर कि समधी है, इतना तो करना ही चाहिए। काम्या के पिता भी बेटी के प्यार और उसका घर बसा रहे, इस मोह में सब करते जा रहे थे।
काम्या के ननंद के विवाह में 2 दिन पहले ही अजीत जी सारा सामान लेकर काम्या के ससुराल पहुंच गए। सामान को देखकर काम्या की सास बोली ठीक ही है, हमें क्या पता था, कि आपकी पसंद ही ऐसी है, नहीं तो हम लोग खुद ही पसंद कर लेते। ना साड़ियों का रंग अच्छा है, ना गहने की डिजाइन, और गहने भी कितने हल्के हैं। बेटी के लिए तो कभी आप दिल खोलकर खर्चा ही नहीं करते।
हमारा क्या लोग तो यही कहेंगे कि कैसे पिता है, बेटी के सम्मान और समाज के मान मर्यादा की भी चिंता नहीं है। काम्या के पिता कुछ बोल नहीं सके, चुपचाप सिर नीचे किए बैठे रहे।
लेकिन आज सारे रिश्तेदारों के सामने अपने पिता की बेइज्जती काम्या बर्दाश्त नहीं कर पाई, और बोली मम्मी जी समाज की मान मर्यादा की चिंता क्या सिर्फ मेरी पिताजी को या मेरे मायके वालों को होना चाहिए? आप लोगों को इस बात की कोई चिंता नहीं होनी चाहिए?
सारे रिश्तेदारों के सामने आपने यह तो कहा कि ,यह अच्छा नहीं, वह अच्छा नहीं, यह नहीं लाए, वह नहीं लाए। लेकिन क्या पिताजी से एक बार भी उनका हाल समाचार पूछा। किसी ने भी उनसे चाय नाश्ते के लिए भी पूछा नहीं? क्योंकि आप लोग मेरे पिताजी को अपना समधी नहीं नौकर समझते हैं, और मुझे तो इस घर में एक काम वाली बाई के से भी कम समझा जाता है।
जब जिसके मन में आए मुंह उठाकर कुछ भी कह देता है। कुछ खराब हुआ तो काम्या और कुछ अच्छा हुआ तो आप लोगों ने किया।
काम्या का इस तरह जवाब देना आज सुलोचना जी को बहुत बुरा लगा, और वह भी जब सारा घर मेहमानों से भरा हो। सुलोचना जी ने गुस्से में चिल्लाते हुए कहा, कि देखा समधी जी ऐसे तेवर हैं आपकी लाडली के, वह तो हम जैसे लोग हैं, जो इसका गुजारा हो रहा है, नहीं तो किसी और घर में होती तो कब का घर से बाहर निकाल देते, और आप समझते हैं कि हम लोग ही बुरे हैं।
अपनी लाडली को मुंह चलाने के साथ कुछ अच्छा संस्कार भी दे देते तो अच्छा होता। यह सब क्या हम अपनी बेटी को नहीं दे सकते। आप लोगों की तरह कंगाल थोड़ी है, कि शादी में बारातियों को खाना भी नहीं खिलाए। ले जाइए आप यह सब।
हमने तो यह सब इसलिए कहा था, कि प्रियंका के ससुराल वालों को यह न लगे कि उसकी भाभी के मायके वाले भी किसी से कम नही है, लेकिन आपकी बेटी ने जो आज हमारी जो बेज्जती की है, उसके बाद हम काम्या को नहीं रख सकते। आप यह सारा सामान और अपनी बेटी को लेकर चले जाइए।
काम्या के पिता अजीत जी ने सुलोचना जी को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह कुछ सुनने को तैयार नहीं थी। धीरे- धीरे बात बढ़ती ही गई, तभी वहां काम्या के ससुर और उसके पति प्रियांशु आ गए। उनके सामने सुलोचना जी और उनके रिश्तेदारों ने काम्या को गलत बताया।
प्रियांशु ने कहा काम्या तुम इसी समय अपने पिता को घर से बाहर निकालो, और तुम अपने सारे रिश्ते इनके साथ खत्म करो, तो ही तुम इस घर में रह सकती हो, नहीं तो तुम भी चली जाओ यहां से। मैं अपने माता-पिता का अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकता।
काम्या ने कहा बहुत अच्छे विचार हैं तुम्हारे प्रियांशु,….. तुम्हारे माता-पिता, माता-पिता है और मेरे माता-पिता कुछ भी नहीं। तुमने तो सच जानने की भी जरूरत नहीं समझी। पिताजी की तो छोड़ो तुम्हें तो मेरे सम्मान की भी परवाह नहीं।
वरना तुम इस तरह की बातें नहीं करते, और तुम चाहते हो कि मैं अपने पिता से सारे रिश्ते खत्म कर लूं। तो यह भी सुन लो, पिताजी के साथ मेरा रिश्ता भगवान ने जोड़ा है, वह मेरे पिता है, जन्मदाता है, मैं चाहूं तो भी यह रिश्ता खत्म नहीं हो सकता है।
हां आज अभी तुम से सारे रिश्ते जरूर खत्म करती हूं। मैं भी अपने सम्मान को रोज मारते-मारते थक गई हूं। अब और जिंदा लाश बनकर नहीं रह सकती, और रहूं भी किस लिए? ऐसे घर के लिए जहां मेरी कोई कदर नहीं। मेरी सेवा मेरे प्यार का कोई मोल नहीं, सिर्फ तुम्हारे घर वालों की सेवा करती रहूं, और तुम्हें बिस्तर का सुख देती रहूं, क्या मेरा सिर्फ इतना ही वजूद है तुम्हारी नजरों में?
तो मैं आज इसे भी खत्म करती हूं, और हां प्रियांशु “मांग में सिंदूर तो कोई भी भर देता है लेकिन जो दिल के खालीपन को भरे वही सही मायने में जीवनसाथी होता है”।
काम्या के पिता ने सब को बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन कोई समझने को तैयार नहीं था। काम्या के ससुराल वाले उसका घर टूटने का सारा दोष उसके पिता अजीत जी पर लगाने लगे।
काम्या के पिता ने काम्या को भी समझाया बेटा 2 दिन बाद घर में शादी है, लोग आएंगे जब सबको पता चलेगा कि घर की बहू ही घर में नहीं है, तो क्या सोचेंगे? क्या इज्जत रह जाएगी, समाज में अर्जुन जी और सुलोचना जी की, इस घर की? कैसी कैसी बातें करेंगे लोग तुम्हारे बारे में, पहले प्रियंका की शादी हो जाने दो फिर यह सब देखेंगे।
मेरा क्या है, बेटा तुम्हारा घर बसा रहे, इसलिए तो यह सब सहता आया हूं। तुमसे प्यारा मुझे अपना सम्मान थोड़े ही है। अपने पिता की बातें सुनकर काम्या के आंसू नहीं रुके, लेकिन आज उसने अपने पिता के और अपने सम्मान से कोई समझौता नहीं करने का सोच लिया था।
काम्या अपने 3 साल के छोटे बच्चे, और अपने पिता का हाथ पकड़ उस घर को छोड़कर चली गई। काम्या के जाते ही लोग उसके बारे में उल्टी सीधी बातें बनाने लगे। प्रियांशु और उसके माता-पिता सहानुभूति के पात्र बन गए।
लेकिन समय सब के साथ न्याय अवश्य करता है, जो तकलीफ काम्या और उसके मायके वालों ने सहा आज उसी का समय ने जवाब दिया। प्रियंका की बरात दहेज को लेकर हुई बहस की वजह से वापस चली गई।
यह कहना उचित तो नहीं होगा कि, जैसी करनी वैसी भरनी, क्योंकि एक और बेटी का घर इस दहेज के दानव ने निगल लिया। एक और परिवार का सम्मान बिखर गया। ऐसे ही ना जाने कितने घर इस दहेज के दानव ने निगल लिए, कितनी जिंदगियां बर्बाद कर दी, और कितनों को जिंदा जला दिया।
कब तक और क्यों हम इस दानव को पालते रहेंगे, बेटा हो या बेटी क्या वह अपनी मेहनत से अपने लिए रोटी नहीं कमा सकते। हम यह क्यों भूल जाते हैं, पैसा चाहे जितना भी किसी के पास क्यों ना हो, खाता वह रोटी है, पैसा नहीं खा लेता, हां खाने के तरीके अवश्य बदल सकता है।
अब तो बस यही इच्छा है, कि दहेज के दानव को पालना बंद करें और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दें, ताकि वह खुद अपना भार स्वयं उठा सके, और हमें उनके लिए दहेज प्रथा (Dowry System) जैसी कुरीति को पालना न पड़े।
डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर (Dr Babasaheb Ambedkar) ने भी कहा है “कि तुम्हारे पैरों में जूते हो ना हो लेकिन हाथों में किताब अवश्य होनी चाहिए” । शिक्षा से ही दहेज प्रथा (Dowry System) जैसी कुरीति का अंत हो सकता है, तो अपने बच्चों को शिक्षित करें और एक स्वस्थ समाज की नींव रखें ।
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