वट सावित्री व्रत 2024। Vat Savitri Vrat 2024: A Unique Tale of Cultural Heritage
वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat 2024) हिंदू धर्म में मनाए जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है। जो संपूर्ण भारत में विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
वट सावित्री पूजा के महत्व (Vatt Savitri Puja importance), कथा और रीति रिवाज में के बारे में, साथ ही 2024 में इससे कब मनाया जाएगा उसके बारे में भी जानेंगे।
वट सावित्री 2024 तारीख और समय। Vat Savitri Vrat 2024 Date and Time:
Table of Contents
वट सावित्री का व्रत दो बार मनाया जाता है। एक अमावस्या को और दूसरा पूर्णिमा को। 2024 में वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat 2024) 04 जून से आरंभ होगा, और 06 जून को अमावस्या के दिन पूर्ण होगा, और दूसरा 19 जून से आरंभ होगा और 21 जून को पूर्णिमा के दिन पूर्ण होगा ।
वट सावित्री व्रत का प्रारंभ। Vat Savitri Vrat History or Vatt Savitri Puja History
सावित्री की भक्ति और पतिव्रता से प्रेरित होकर, हिंदू धर्म को मानने वाली विवाहित महिलाएं, इस दिन व्रत रखने लगी। यह व्रत पति की दीर्घायु के लिए रखा जाता है। Vatt Savitri Puja व्रत पूर्णिमा या वट सावित्री व्रत के नाम से भी जाना जाता है।
सावित्री व्रत का महत्व। Vat Savitri Vrat or Vatt Savitri Puja Significance
विवाहित महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं, और अपनी भक्ति और प्रार्थनाओं के माध्यम से अपने पतियों के स्वास्थ्य, समृद्धि, और लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं।
बरगद के वृक्ष का प्रतीक अर्थ । Symbolic Meaning of Banyan Tree
बरगद का वृक्ष, जो वट वृक्ष (Vat Tree) के नाम से भी जाना जाता है, इस व्रत में इसका विशेष महत्व है। वट वृक्ष को प्राचीन काल से ही पवित्र और पूजनीय माना जाता है। कहा जाता है कि इस पर्व में इसकी पूजा करने से पति-पत्नी के प्रेम संबंध और भी ज्यादा मजबूत हो जाते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जैसे बरगद का वृक्ष हजारों साल तक जीवित रहता है, उसी प्रकार इस व्रत में उसकी पूजा करने से पति की आयु भी हजारों साल होगी।
वट सावित्री पूजा विधि । Vat Savitri Puja Vidhi / Vat Savitri Vrat Rituals and Customs
वट सावित्री पूजा त्योहार का एक अभिन्न हिस्सा है, और इसमें कोई रीति-अनुष्ठान और परम्पराएं (Vat Savitri Vrat rituals and customs) शामिल होती हैं।
व्रत के दिन, शादी शुदा महिलाएँ सुबह जल्दी उठकर, स्नान करके,व्रत करने का संकल्प करे और दिन भर व्रत रखे। एक टोकरी में 7 तरह के अनाज रखें फिर बरगद के पेड़ के नीचे विघ्न विनाशक गणेश जी और नवग्रह को स्थापित करें और सावित्री, सत्यवान की तस्वीर भी रखें।
सर्वप्रथम गणेश जी और नवग्रह की पूजा करें रोली, भीगे काले चने, अक्षत, कलावा, फूल, फल, सुपारी, पान, मिष्ठान और बाकी चीजें अर्पित करें फिर उसके बाद सावित्री , सत्यवान की तस्वीर की भी इसी प्रकार पूजा करें और बांस के पंखे से हवा करें।
इसके बाद वट वृक्ष की परिक्रमा करें। इसके लिए कच्चा धागा लेकर वृक्ष के 108,या 5 से 7 बार परिक्रमा करते हुए धागे को वट वृक्ष में बांधे। फिर वहीं, वृक्ष के नीचे बैठकर सावित्री सत्यवान की कथा सुने। फिर अपने पति की लंबी आयु के लिए सच्चे मन से कामना करें। इसके बाद चने के प्रसाद दूसरों को दें।
पूजा के बाद अन्य रस्में भी करते हैं, जैसे अपने बड़ों का आशीर्वाद लेना और उन्हें उपहार देना, सुहाग की सामग्री व अन्य वस्तुएं जैसे कि खाद्य सामग्री, पैसे, कपड़े दान करना, प्रसाद बनाना, और अपने परिवार के साथ भोजन करके व्रत तोड़ना।
इस त्योहार के लिए पूजा सामग्री।Vat Savitri Puja or Vatt Savitri Puja Samagri
वट सावित्री व्रत (vat savitri vrat) और अनुष्ठान के लिए, पूजा सामग्री की आवश्यकता होती है, जो इस प्रकार है।
कलश, लाल या पीला धागा, फूल, फल, अगरबत्ती, दीया, रोली या कुमकुम, हल्दी पाउडर, चावल, मिठाई या प्रसाद, कपूर, सुपारी और मेवे, गंगाजल, पूजा की थाली, श्रृंगार का सामान, बांस की लकड़ी से बना पंखा और टोकरी, पान के पत्ते, लौंग और इलायची, लाल या पीला कपड़ा आम के पत्ते, देसी घी।
भोग प्रसाद । Vat Savitri Vrat Dishes, Vat Savitri Vrat Sweets
वट सावित्री उत्सव के लिए, क्षेत्रीय और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के आधार पर विभिन्न व्यंजन तैयार किए जाते हैं । इस त्योहार के दौरान बनाए जाने वाले कुछ व्यंजन हैं– सत्तू, लड्डू, खीर, पूरी, हलवा, साबुदाना खिचड़ी, काला चना, श्रीखंड, इत्यादि।
वट सावित्री व्रत कथा - Vat Savitri Vrat Katha / Vat Savitri Vrat Story :
भद्र देश के राजा की कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए वह 18 साल तक यज्ञ और तपस्या करते रहे। उनकी तपस्या से सावित्री देवी प्रसन्न हुईं, और उन्हें संतान के रूप में एक रूपवान, गुणवान और तेजस्वी कन्या होने का वरदान दिया।
देवी के वरदान से राजा के घर एक कन्या का जन्म हुआ। राजा ने उस कन्या का नाम सावित्री रखा।
सावित्री की शादी की उम्र होने पर राजा को अपनी कन्या के लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा था। एक दिन सावित्री तपोवन गयी वहाँ उसने एक सुन्दर युवक को देखा जिसका नाम सत्यवान था। सत्यवान साल्व देश के राजा द्युमत्सेन का पुत्र था।
द्युमत्सेन के अंधे होने की वजह से उन्हीं के मंत्रियों ने उनका राज्य हड़प लिया। इसलिए वह जंगल में अपनी पत्नी और पुत्र के साथ जीवन व्यतीत कर रहे थे। सावित्री ने सत्यवान और उसके पिता के बारे में, अपने पिता को बताया और सत्यवान से विवाह करने की इच्छा जताई। सावित्री के पिता अपनी पुत्री की इच्छा को पूरा करने के लिए तपोवन जंगल गए।
वहां पहुंचकर राजा ने सत्यवान के पिता से मिले और उन्हें अपनी बेटी सावित्री के लिए उनके पुत्र सत्यवान से विवाह का प्रस्ताव दिया।
सावित्री के पिता की बात सुनकर, सत्यवान के पिता ने बड़े ही निराश मन से कहा – राजन मुझे आपका प्रस्ताव मंजूर है। मेरा पुत्र सत्यवान बहुत ही बलवान,गुणवान और धर्मात्मा है। इस विवाह से मुझे कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन ऋषि नारद ने मुझे बताया है कि, सत्यवान अल्प आयु है, जिसकी अगले वर्ष अमावस्या के दिन मृत्यु हो जाएगी।
इसलिए मैं आपसे से विनती करता हूं कि आप किसी और युवक से अपनी पुत्री का विवाह करवा दीजिये।
उनकी बात को सुन कर सावित्री और उनके पिता काफी निराश हुए। तब सावित्री ने कहा- मैंने अपने मन से सत्यवान को अपना पति मन लिया है, इसलिए मैं किसी और से विवाह नहीं कर सकती। सावित्री की जिद के सामने सबको झुकना पड़ा।
सावित्री और सत्यवान का विवाह हो गया। विवाह के उपरान्त सावित्री पूरे तन-मन से अपने पति सत्यवान और सास-ससुर की सेवा करने लगी। इसी तरह एक वर्ष का समय निकल गया, और सत्यवान की मृत्यु का दिन करीब आने लगा। जैसे-जैसे दिन कट रहे थे, सावित्री का मन उदास रहने लगा।
तब ऋषि नारद ने सावित्री को बताया की अमावस्या के तीन दिन पहले देवी सावित्री का उपवास करने और वट के पेड़ की पूजा करने से सत्यवान की आयु को बढ़ाया जा सकता है। नारद जी के कहे अनुसार सावित्री ने सत्यवान की मृत्यु वाले दिन से तीन दिन पहले देवी सावित्री के नाम का उपवास किया और वट के पेड़ की पूजा करने लगी, साथ ही अपने पितरों का पूजन भी करने लगी।
देखते देखते धीरे-धीरे यह 3 दिन निकल गए और अमावस्या का दिन आ गया। रोज की तरह ही अमावस्या के दिन सत्यवान जंगल में लकड़ियां काटने के लिए जाने लगा, तब सावित्री ने कहा कि मैं भी आपके साथ जंगल में चलूंगी। सावित्री भी सत्यवान के साथ जंगल में गई।
लकड़ियां काटने के लिए जब सत्यवान पेड़ पर चढ़े तो उनके सिर में तेज दर्द होने लगा। सत्यवान की बात को सुनकर सावित्री समझ गए कि उनकी मृत्यु का समय आ गया है। वही जंगल में एक वट के पेड़ के नीचे सत्यवान का सिर अपनी गोद में रखकर सहलाने लगी।
कुछ ही समय में सावित्री के सामने अनेक यमदूतो के साथ यमराज खड़े थे, और वह सत्यवान के प्राण अपने साथ लेकर जाने लगे। तब सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे जाने लगी। यमराज ने सावित्री को बहुत समझाने की कोशिश की, उन्होंने कहा की यह तो पहले से ही लिखा हुआ है ,मैं तो बस अपना कर्म कर रहा हूं। लेकिन सावित्री ने यमराज की बात नहीं मानी और उनके पीछे-पीछे चलती रही। सावित्री की निष्ठा और पति के लिए उनका प्रेम देखकर यमराज बहुत प्रसन्न हुए, और उन्होंने सावित्री को वरदान मांगने के लिए कहा।
यमराज की बात सुनकर सावित्री ने कहा हे प्रभु मेरे सास-ससुर अँधे है, आप उनकी आंखों की रोशनी वापस करने का वरदान दीजिये। यमराज ने कहा ठीक है ऐसा ही होगा, परंतु अब तुम घर जाओ। ऐसा कहने के बाद यमराज फिर आगे बढ़े परंतु उन्होंने देखा कि सावित्री अभी भी उनके पीछे पीछे चल रही है। यमराज ने सावित्री को वापस जाने के लिए कहा। लेकिन सावित्री ने मना कर दिया।
सावित्री ने यमराज से कहा कि, वह अपने पत्नी व्रत का पालन कर रही है, इसलिए उनके पति जहां जाएंगे, वह भी उनके साथ जाएंगी। सावित्री की इस बात को सुनकर यमराज प्रभावित हुए। उन्होंने सावित्री को एक और वरदान मांगने के लिए कहा। सावित्री ने कहा मेरे ससुर साल्व देश के राजा थे, लेकिन किसी ने उनका राज्य छीन लिया है। आप उन्हें उनका राज्य वापस दें।
यमराज ने सावित्री के इस वरदान को भी पूरा कर दिया और फिर से सत्यवान के प्राण को लेकर चलने लगे, लेकिन अब भी सावित्री उनके पीछे चली आ रही थी। यमराज यह देखकर हैरान हो गए। सावित्री से इसका कारण पूछा तो सावित्री ने बताया कि एक पत्नी का फर्ज है, कि वो वहीं रहेगी जहां उसका पति रहेगा। सावित्री की बात सुनकर यमराज बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने कहा, पुत्री तुम बहुत ही पतिव्रता हो इसलिए मैं, तुम्हें तीसरा वरदान भी देने को तैयार हूं मांगो क्या मांगना चाहती हो।
तब सावित्री ने कहा हे प्रभु यदि आप मुझे कुछ देना ही चाहते हैं तो मुझे सौ पुत्रों की मां होने का आशीर्वाद दें। सावित्री के इस वरदान को सुनते ही यमराज ने कहा पुत्री अब घर जाओ, मैं तुम्हें यह तीसरा वरदान भी देता हूं। तुम सौ साहसी और पराक्रमी संतानों की मां बनोगी।
यमराज के इस वरदान को सुनकर सावित्री ने कहा हे प्रभु मैं एक सनातन धर्म को मानने वाली नारी हूं, और आर्यकुल में जन्मी हूं, इसलिए मेरी जीवन में एक ही पति होंगे वह सत्यवान हैं।
इसलिए आपको अपने वरदान को पूरा करने के लिए मेरे पति को जीवित करना होगा सावित्री की बात सुनकर यमराज ने सत्यवान के प्राण को वापस छोड़ दिया, और सावित्री से कहा पुत्री अब वापस उसी वट के पेड़ के नीचे जाओ, जहां पर तुम्हारे पति का शरीर पड़ा हैं।
मैंने सत्यवान के प्राण को छोड़ा दिया, और तुम को सौ संतानों के साथ ही अखंड सैभाग्यवती होने का वरदान भी दिया।
यमराज की बात सुनकर सावित्री वापस उस वट के पेड़ के पास पहुंची जहां पर उसके पति का शरीर पड़ा था। वह सत्यवान के करीब पहुंची, तो उसने देखा की सत्यवान जिंदा हो गया है।
फिर सावित्री और सत्यवान जंगल से बाहर निकले और साल्व देश पहुंचे। वहां पहुंचकर सावित्री ने देखा कि अब उसके ससुर को उनका राज्य फिर से मिल गया है और उनकी आंखों की रोशनी भी वापस आ गई है।
तभी से हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) को मनाया जाने लगा। इस दिन पूरे विधि-विधान से वट के पेड़ की पूजा-अर्चना की जाती है, और सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
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वट सावित्री व्रत की शुभकामनाएँ । Vat Savitri Vrat Wishes and Messages / Vat Savitri Vrat Quotes
वट सावित्री व्रत की ढेर सारी शुभकामनाएँ।
वट सावित्री पर्व पर आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएँ।
वट सावित्री व्रत के इस पावन पर्व पर भगवान आपकी सभी मनोकामनाएँ पूरी करें।
वट सावित्री की कृपा से आपके दाम्पत्य जीवन में प्रेम और समृद्धि बढ़े।
वट सावित्री व्रत की शुभकामनाएं! इस अवसर पर स्नेह और प्रेम से भरी शुभकामनाएँ, सुख और समृद्धि का आशीर्वाद आपके द्वार पर आये।
इस वट सावित्री व्रत पर, देवी सावित्री की कृपा आपकी जिंदगी में सुख, शांति और सफलता लाए। शुभ वट सावित्री व्रत!
वट सावित्री के पावन पर्व पर हमारी प्रार्थना है कि आपका जीवन संगी के साथ सदैव प्यार और विश्वास से बना रहे। वट सावित्री व्रत की हार्दिक शुभकामनाएँ।
देवी सावित्री की कृपा आपके दाम्पत्य जीवन को अटूट बनाए रखे। वट सावित्री व्रत की बधाई और ढेर सारी शुभकामनाएँ।
वट सावित्री व्रत के इस पावन अवसर पर, भगवान आपकी जिंदगी को आनंद, खुशियां और प्रेम से भर दें। शुभ वट सावित्री व्रत!
सावित्री माता की आराधना में साथ मिलकर हम अपने जीवन संगी के लिए प्रेम और स्नेह की कामना करते हैं। वट सावित्री व्रत की हार्दिक शुभकामनाएँ।
वट सावित्री व्रत की बधाई! इस पावन त्योहार पर माँ सावित्री आपके परिवार को सुख, समृद्धि और धन-धान्य से आशीर्वादित करें।
देवी सावित्री के चरणों में हम अपने दाम्पत्य जीवन की सफलता और विश्वास की कामना करते हैं। वट सावित्री व्रत की शुभकामनाएँ!
वट सावित्री व्रत के इस अवसर पर, आपके जीवन में प्रेम, शांति और आनंद की लहर आए। वट सावित्री व्रत की हार्दिक शुभकामनाएँ।
वट सावित्री व्रत के इस पावन त्योहार पर, आपके दाम्पत्य जीवन को स्थिरता, स्नेह और प्रेम की देवी सावित्री की कृपा सदा बनी रहे। शुभ वट सावित्री व्रत!
आँचल बृजेश मौर्य चाय के पल की संस्थापक के साथ-साथ इस वेबसाइट की प्रमुख लेखिका भी है। उन्होंने ललित कला (फाइन आर्ट्स – Fine Arts) में स्नातक, संगीत में डिप्लोमा किया है और एलएलबी की छात्रा (Student of LLB) है।ललित कला (फाइन आर्ट्स) प्रैक्टिस और अपनी पढ़ाई के साथ साथ, आंचल बृजेश मौर्य विभिन्न विषयों जैसे महिला सशक्तिकरण, भारतीय संविधान, कानूनों और विनियमों इत्यादि पर ब्लॉग लिखती हैं। इसके अलावा उनकी रुचि स्वरचित कहानियां, कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां इत्यादि लिखने में है।
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