मैं से हम – Main se Hum । A Hindi Story of Family Unity: When “I” becomes “We”

मैं से हम –  Main se Hum । A Hindi Story of Family Unity: When “I” becomes “We”

दोस्तों क्या मैं से हम (Main se Hum) बनना इतना मुश्किल है? क्या कभी आपने या आपके जान पहचान के लोगो ने मैं से हम बन (Main se Hum) कर देखने की कोशिश की है? क्या इसका परिणाम सुखद रहा है? आइए, इन सभी सवालों का जवाब इस Hindi Kahani में पाएं।

मैं से हम – Main se Hum। पारिवारिक एकता की कहानी – A Hindi Story of Family Unity: When “I” becomes “We”

“बहू जरा दो कप चाय बना दे इलायची वाली, अदरक मत डालना। आराधना जी अदरक वाली चाय नहीं पीती और जरा गरमा-गरम नाश्ता भी बना लेना” अनामिका को आज ऑफिस से जल्दी आया देखकर शीला जी ने फरमान सुनाया। शीला जी अपनी सहेली आराधना जी के साथ बाहर लॉन में बैठी थी।

अनामिका एक बैंक मैनेजर है, जो सुबह 8:00 बजे ऑफिस के लिए निकल जाती है और शाम को 6:00 बजे घर वापस आती है। अनामिका के पति [अमित] को और भी देर हो जाती है क्योंकि वह फील्ड जॉब में है।  

उसे घर वापस आने में रात के 9:00 से 10:00 बज जाते हैं। दोनों की शादी के 2 साल हो गए हैं लेकिन अनामिका आज भी अपनी सास शीला जी के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पाई है। इसलिए  वे अपने फैमिली प्लानिंग भी नहीं कर पा रहे हैं।

आज अनामिका की तबीयत खराब होने से वह लंच टाइम में ही घर आ गई थी। उसने सोचा था कि थोड़ा आराम करके शाम को अमित के साथ डॉक्टर के पास जाएगी। लेकिन आराम तो छोड़ो, आते ही किचन में घुसना पड़ा।

अनामिका बैग रूम में रख , हाथ मुंह धो कर गैस पर चाय चढ़ाई और फोन करके समोसे ऑर्डर कर दिए। चाय बनते-बनते समोसे भी आ गए। अनामिका चाय का ट्रे लेकर बाहर लॉन में गई। ट्रे में समोसे देखकर शीला जी अनामिका पर बरस पड़ी “यह क्या बाहर से समोसे मंगा लिए और ठंडे भी है।

तुझे कुछ समझ में आता भी है कि कुछ घर में ही बना लेती। आजकल की बहुओं को तो काम चोरी की आदत सी हो गई है। आराधना जी की बहू को देख, जब भी मैं जाती हूं मेंरी कितनी सेवा करती है। हमेंशा गरमा गरम नाश्ता खुद बना कर खिलाती है और तू है कि यह बाजार से नाश्ता मंगवा लिए। तेरी मां ने तुझे कुछ नहीं सिखाया क्या?”

अनामिका चाय और नाश्ते की ट्रे टेबल पर रख अंदर आ गई क्योंकि आराधना जी के सामने बोलना कुछ ठीक नहीं समझा।

अनामिका चाय का कप लेकर अपने रूम में आ गई कि चाय पीकर थोड़ा आराम कर लूं। सिर दर्द और बदन दर्द से उसकी हालत खराब हो रही थी। उसने चाय के साथ ही एक टेबलेट ली और जैसे ही आंखें बंद की ही थी कि अनामिका…. अनामिका….. की आवाज उसके कान में सुनाई दी। जल्दी से वह रूम से बाहर आई, “जी मां क्या हुआ”।

“कब से आवाज लगा रही हूं सुनाई नहीं देता क्या? ” नहीं मां वह मेंरे सिर में…………………. “अच्छा ये सब छोड़, आज रात के खाने में पनीर मसाला, भरवा भिंडी और बैगन, मटर पुलाव, आलू के पराठे, और ठंड में तो खाने के बाद गाजर के हलवे की तो बात ही कुछ और है तो मीठे में गाजर हलवा। और हां ज्यादा तीखा मत बनाना।

अमित की बुआ की ननंद यही पास में अपनी बहन के घर आई है तो मैंने आज उन लोगों को सपरिवार खाने पर बुलाया है। वह तो आ ही नहीं रही थी, मैंने ही कहा भाई हमें भी सेवा का मौका दीजिए कहां आप लोग जल्दी आते हैं। उन्हें भी तो पता चले मेंरे स्टैंडर्ड के बारे में” शीला जी ने अपना एक और फरमान सुना दिया बिना अनामिका की बात सुने।

यह सब सुन अनामिका का सिर घूम गया और बोली “मां इतने मेंहमान को बुलाने से पहले मुझे बता तो दिया होता। मेंहमान तो छोड़ो, आज तो मैं हम लोगों के लिए भी खाना नहीं बना पाऊंगी।” मैं तो शाम को मेंड से ही कुछ बनाने का सोच रही थी।

“क्या मतलब नहीं बनाऊंगी, अब मैं तुझसे पूछ कर करूंगी क्या कुछ। यह मेंरा घर है, मेंरे बेटे ने बनाया है और तू कौन होती है मुझे बोलने वाली। मैं जो चाहूं वह करूंगी, मैं जिसे चाहूं बुलाऊंगी। मैं ही इस घर की मालकिन हूं। तुझे नौकरी करने की आजादी दी इसका मतलब यह नहीं है कि तू अपना हुक्म चलाएं मेंरे ऊपर।”

लेकिन मां जी मेंरी बात तो सुनिए………..  “क्या सुनू, मैं ही पागल थी जो मेरे बेटे की बातों में आकर तुझे इस घर की बहू के रूप में स्वीकार किया” शीला जी गुस्से में चिल्लाए जा रही थी और अनामिका को समझ में नहीं आ रहा था क्या करें, कैसे अपनी बात समझाएं।

“वाह मां, तो आप को अभी तक इस बात का अफसोस है कि आप ने अनामिका को इस घर की बहू के रूप में स्वीकार किया और बिना अनामिका की बात सुने कि उसने ऐसा क्यों कहा, बिना इस बात को जाने कि आज ऑफिस से जल्दी क्यों आ गई, क्या बात है, सब ठीक तो है ना कहीं कुछ प्रॉब्लम तो नहीं है?

आप को बहू की फिक्र नहीं, रिश्तेदारों की फिक्र है। मैं दोपहर में अनामिका के ऑफिस गया तो पता चला कि उसकी तबीयत ज्यादा खराब होने से हाफ डे लेकर घर चली गई है। मैं भी इसीलिए जल्दी निकल आया कि अनामिका को डॉक्टर के पास ले जाऊं लेकिन यहां आया तो यह सब हो रहा है।”

“अरे बेटा तुझे कुछ नहीं पता यह क्या क्या बोल रही थी”…….. शीला जी अमित को अचानक देखकर हड़बड़ा गई थी। मुझे सब पता है मां, मैंने सब सुना। कभी आप मैं से हम (Main se Hum) बन कर देखिए, अनामिका के सारे दोष गुणों में बदल जाएंगे। वह रोज हमारा कितना ध्यान रखती है। सुबह ऑफिस जाने से पहले सारा काम करके और शाम को आते समय घर की जरूरत का सामान भी लेकर आती है।

तुम्हारी दवाइयां और डॉक्टर का डेट तो मुझे पता भी नहीं है मां, वह सब अनामिका ही देखती है। तो क्या हम उसकी तबीयत खराब होने पर भी उसका ध्यान नहीं रख सकते? और रही बात गेस्ट की तो हम आपके सम्मान में कोई कमी नहीं होने देंगे। परांठे और पुलाव मेड से बनवा लेंगे और बाकी मैं बाहर से लेता आऊंगा।

लेकिन अभी अनामिका को डॉक्टर को दिखाना ज्यादा जरूरी है। और हां मां, मैं से हम (Main se Hum) तक का सफर इतना मुश्किल भी नहीं है कि हम कोशिश भी ना करें। इतना कह कर अमित अनामिका को लेकर डॉक्टर को दिखाने चला गया।

दोस्तों क्या मैं से हम (Main se Hum) बनना इतना मुश्किल है कि यह भूल जाते हैं कि बहू भी परिवार का एक अहम हिस्सा है। जिसके बिना परिवार ही पूरा नहीं है क्या उस हम में उसका कोई स्थान नहीं है, क्या हमें उसके हिस्से का प्यार और सम्मान नहीं देना चाहिए?


मैं से हम – Main se Hum। पारिवारिक एकता की कहानी – A Hindi Story of Family Unity: When “I” becomes “We”

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आँचल बृजेश मौर्य चाय के पल की संस्थापक के साथ-साथ इस वेबसाइट की प्रमुख लेखिका भी है। उन्होंने ललित कला (फाइन आर्ट्स – Fine Arts) में स्नातक, संगीत में डिप्लोमा किया है और एलएलबी की छात्रा (Student of LLB) है।ललित कला (फाइन आर्ट्स) प्रैक्टिस और अपनी पढ़ाई के साथ साथ, आंचल बृजेश मौर्य विभिन्न विषयों जैसे महिला सशक्तिकरण, भारतीय संविधान, कानूनों और विनियमों इत्यादि पर ब्लॉग लिखती हैं। इसके अलावा उनकी रुचि स्वरचित कहानियां, कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां इत्यादि लिखने में है।

6 Comments on “मैं से हम – Main se Hum । A Hindi Story of Family Unity: When “I” becomes “We”

  1. सराहनीय प्रयास आंचल बृजेश जी!आपकी हर कहानी मार्ग दर्शक बन लोक निन्दा एवं रीति रिवाजों के बंधन में बंध दम तोड़ती आशाओं के बिखरे तिनकों को समेटने की कला सिखाती है।

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