दिहाड़ी मजदूर। Daily Wage Worker Story in Hindi: The Cost of Survival

दिहाड़ी मजदूर। Daily Wage Worker Story in Hindi: The Cost of Survival

इस Hindi Kahani के माध्यम से एक दिहाड़ी मजदूर (Daily Wage Worker) की दिल दहला देने वाली कहानी का अनुभव करें जो एक अपने परिवार की रोजी रोटी के लिए दिन-रात संघर्ष कर रहा है बिना अपने शरीर और स्वास्थ्य की चिंता किए हुए।

यह मार्मिक कहानी (Heart Touching Story in Hindi) गरीबी की कठोर सच्चाई और सामाजिक परिवर्तन की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालती है, जो कि एक बहुत ही महत्वपूर्ण और गंभीर विषय है आगामी Antrashtriy Majdur Divas के अवसर पर।

दिहाड़ी मजदूर। Daily Wage Worker Story in Hindi for Survival, Hindi Kahani:

कल सूर्य और रोशनी की स्कूल की फीस भरनी है। 8 महीनों से नहीं भरी है, रोशनी बता रही थी, कि प्रिंसिपल ने कहा है, कि अगर कल फीस नहीं भरी तो स्कूल से निकाल देंगे। शांति अपने पति रामेश्वर से कह रही थी।

रामेश्वर गरीब मजदूर है। जो दिन में मजदूरी करता है, और शाम को एक होटल में साफ सफाई का काम करता है। उसकी पत्नी शांति भी छोटे-मोटे काम कर लेती है, जिससे उसके घर का खर्चा चल रहा था। लेकिन वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाकर उनका भविष्य सुधारना चाहते थे।

रामेश्वर यह कभी नहीं चाहता था, कि उसके बच्चे भी बड़े होकर मजदूरी करें लोगों की गालियां खाएं, और दो वक्त की रोटी के लिए दिन भर अपनी हड्डियों को तोड़ते रहे, फिर भी किस दिन खाने को नसीब होगा, या किस दिन भूखे पेट सोना पड़ेगा, पता नहीं।

रामेश्वर के हालात पहले ऐसे नहीं थे। वह ऑटो रिक्शा ड्राइवर था, जिससे उसकी आमदनी ठीक-ठाक हो जाती थी।कोरोना की महामारी में उसका ऑटो का काम बंद हो गया। रोज कमाने खाने वाला आदमी कितने दिनों बैठ कर खा सकता है, या कितने दिनों की जमा पूंजी रख सकता है। जो भी था, सब खत्म हो गया। अंत में अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए उसने अपने रोजी-रोटी का एकमात्र सहारा अपना ऑटो भी बेचना पड़ा।

 जब हालात में कुछ सुधार हुए, तो सोचा कि बड़े शहर में जाकर कुछ दिन मेहनत मजदूरी करके फिर से कुछ पैसे जोड़कर ऑटो ले लूं तो सब ठीक हो जाए। यही सोचकर रामेश्वर शहर आ गया, अपने परिवार के साथ।

रोज सुबह हजारों मजदूरों के साथ चौराहे पर खड़ा हो जाता, कि कोई काम मिल जाए। लेकिन मजदूर को रोज काम और भरपेट भोजन मिले इस बात की तो कोई गारंटी होती नहीं। वही रामेश्वर के साथ भी होता। किसी दिन काम मिलता, किसी दिन नहीं मिलता।

रोज शाम उसके घर आने का इंतजार होता, कि शाम को रामेश्वर घर आएगा, कुछ कमा कर तो घर का चूल्हा जलेगा नहीं तो पानी पीकर ही गुजारा करना पड़ेगा। इसी तरह धीरे-धीरे सब चल रहा था।

रामेश्वर दिन में तो काम मिलने पर मजदूरी करता, लेकिन मजदूरी के पैसों से वह अपने बच्चों और परिवार का पेट भरता या उनकी पढ़ाई लिखाई करवाता। इसलिए उसने शाम के 6:00 बजे से रात 2:00 बजे तक एक होटल में काम करना शुरू कर दिया।

बच्चे भी पास के सरकारी स्कूल में पढ़ने जाने लगे। समय कट रहा था, की ठंडी की एक ठिठुरती रात थी। एक पुराने से कंबल में रामेश्वर, सिर से मुंह तक छुपाए ठंड से बचने की कोशिश कर रहा था। उसे ऐसा लग रहा था, जैसे कि उसके सारे शरीर में बर्फ जम गई है। इतनी ठंडी तो उसे कभी नहीं लगी, फिर आज क्यों?

 उसने शांति से कहा शांति…………… आज ठंड कुछ ज्यादा ही है क्या?

 शांति……………… जी ठंड तो है ही, लेकिन कल भी तो ऐसी ही ठंड थी। छोटी सी जगह में आग भी तो जलाने में डर लगता है, नहीं तो थोड़ी गर्माहट तो मिलती। देखती हूं कुछ और है क्या, ओढ़ने के लिए।

 शांति ने एक पुरानी सी चादर लाकर रामेश्वर के ऊपर डाल दी।

 शांति,…………… लो यह एक चादर रखी थी, ओढ़ लो ठंड कुछ कम हो जाएगी।

 शांति जब रामेश्वर को चादर ओढ़ने लगी तो, उसे लगा कि रामेश्वर कांप रहा है। उसने रामेश्वर को छू कर देखा तो, उसका बदन तेज बुखार से तप रहा था।

 शांति,…………… तुम्हें तो तेज बुखार है, शरीर तो बुखार से एकदम भट्टी की तरह तप रहा है, इसलिए इतनी ठंड लग रही है। रात के 2:00 बज रहे हैं, इस समय कहां दवा मिलेगी, क्या करूं? देखती हूं, थोड़ी दूर पर जो एक बड़ी बिल्डिंग है, वहां पर गेट के बाहर  गार्ड साहब बैठते हैं सुना है वह बहुत अच्छे  है, और लोगों की मदद भी करते हैं, हो सकता है कुछ मदद मिल जाए।

 शांति भागती हुई उस बिल्डिंग के पास गई, जहां गार्ड हाउस था लेकिन वहां गार्ड साहब नहीं थे, उसने कई बार आवाज लगाई, लेकिन कुछ जवाब नहीं मिला। उसने देखा गार्ड ने आग जला रख रखी थी, उसे लगा थोड़ी सी आग यहां से ले चलूं तो शायद कुछ गर्माहट मिले।

उसने वहां से एक पुराने टिन के डिब्बे के सहारे थोड़ी सी आग ले ली, और अपने झुग्गी में आकर रामेश्वर के पास रख दी। बुखार इतना तेज था, कि रामेश्वर जैसे अचेत सा पड़ा था। शांति ने आसपास की झुग्गी में रहने वालों से मदद मांगी, लेकिन सब यही कहते इस समय कुछ नहीं हो सकता। सुबह होने दो तभी कोई दवा खाना खुलने पर कुछ हो सकता है, बड़े अस्पतालों में तो हमें दरवाजे से ही भगा देंगे।

किसी तरह बड़ी मुश्किल से रात बीती, पड़ोसियों की मदद से रामेश्वर को दवा खाने ले गए, और दवा मिली। दवा से बुखार कम हो गया, लेकिन रामेश्वर काम पर जाने की हालत में नहीं था। 5 दिन हो गए थे, इसी तरह बुखार चढ़ता उतरता रहा, खाली पेट दवा भी क्या असर करती ।

रामेश्वर के काम पर ना जाने से खाने-पीने की भी दिक्कत बढ़ गई। किसी तरह तो दो-तीन दिन बीत गए। अब घर में खाने के लिए भी कुछ नहीं बचा। बच्चों ने 2 दिन से कुछ खाया नहीं भूख से परेशान थे, लेकिन घर की हालत देख कर कुछ कहते नहीं थे।

आज 1 जनवरी की रात थी, चारों ओर नया वर्ष मनाए जाने की धूम थी। इतनी ठंड होने के बाद भी बाजार में काफी भीड़-भाड़ और हलचल थी। रामेश्वर से अपने बच्चों की हालत देखी नहीं गई, उसने शांति से कहा।

 शांति…………. 2 दिन से बच्चों ने कुछ नहीं खाया हमारी बात और है, हम सहन कर सकते हैं। लेकिन बच्चों की हालत देखी नहीं जाती। मैं होटल जा रहा हूं, आज वहां भीड़ भाड़ भी ज्यादा होगी तो कुछ ज्यादा पैसे भी मिल जाएंगे, और खाने को भी कुछ मिल जाएगा।

 शांति………… लेकिन तुम्हारी तबीयत अभी ठीक नहीं हुई है, ऐसी हालत में ठंड में कहां काम पर जाने की बात कर रहे हो, बुखार अभी भी है ,मत जाओ बाहर इतनी ठंड में।

 रामेश्वर,……………. बुखार से मुझे इतनी तकलीफ नहीं शांति जितनी अपने भूखे बच्चों के चेहरे को देखकर होती है। तुम बच्चों को संभालो, मैं आता हूं।

 शांति,…………. लेकिन मेरी बात तो सुनो, बुखार थोड़ा कम हो जाए तब चले जाना।

सूर्य और रोशनी दोनों बच्चे वही एक कोने में बैठे थे। सूर्या ने इस हालत में जब अपने पिता को जाते देखा तो उस नन्हे बच्चे से रहा नहीं गया। वह दौड़कर रामेश्वर से लिपट गया, और बोला।

सूर्या,………पापा बुखार में बाहर मत जाओ जब हमारे पास पैसे होंगे, तब हम खाना खा लेंगे। मुझे अभी भूख नहीं है पापा। तुम बस बाहर मत जाओ। बच्चे की बात सुनकर रामेश्वर अपने आंसू नहीं रोक पाया, और बोला।

रामेश्वर,…………… बेटा मैं बिल्कुल ठीक हूं, तुम चिंता मत करो, तुम मां और रोशनी दीदी के साथ घर पर रहो बाहर बहुत ठंड है, मैं अभी थोड़ी देर में आता हूं, ठीक है।

 रामेश्वर ने बच्चे को समझाया और होटल के लिए निकल गया। उसे होटल का रास्ता जैसे मीलो लग रहा था। बुखार और कमजोरी की वजह से उसे चला भी नहीं जा रहा था। किसी तरह होटल पहुंचा, वहां सेठ जी के पास पहुंचते ही पहले उसे डांट खानी पड़ी।

 सेठ ने कहा, उसने दूसरा आदमी रख लिया है, तुम जा सकते हो। रामेश्वर के बहुत मिन्नत करने और गिड़गिड़ाने पर सेठ ने उसे वापस काम पर रख लिया। होटल में ज्यादा ग्राहकों के आने से काम भी ज्यादा बढ़ गया था। इसलिए आदमी की आवश्यकता तो थी ही, सेठ ने उसे काम पर रख लिया।

 सेठ ने कहा ठीक है, मैं तुम्हें काम पर वापस रख लेता हूं। आज साफ सफाई का काम बाद में होगा, भीड़ ज्यादा है, तो जाकर रसोई में तंदूर वाले की मदद करो वह अकेला है, और संभाल नहीं पा रहा है। रामेश्वर ने सेठ जी का धन्यवाद किया, और जल्दी से रसोई में पहुंच गया।

तंदूर के पास एक आदमी जल्दी-जल्दी हाथ चला रहा था। क्योंकि आर्डर ज्यादा थे, और वह अकेला परेशान हो गया था। तभी रामेश्वर उसके पास पहुंचा, और बोला, भैया,……… सेठ जी ने आपकी मदद करने के लिए कहा है। तंदूर पर काम करते उस आदमी ने सिर उठाकर उसकी तरफ देखा, और मुस्कुरा कर बोला अरे……… रामेश्वर तुम, बड़ा अच्छा हुआ आ गए, बहुत मदद मिल जाएगी।

आज फिर भीड़ भी ज्यादा है, और ज्यादा ग्राहक होने से कमाई भी अच्छी हो जाती है। चलो अब मेरी मदद में लग जाओ। रामेश्वर ने तुरंत अपनी सदरी एक तरफ रखी, और काम में लग गया। थोड़ी देर बाद तंदूर पर पहले से काम कर रहे उस आदमी ने कहा, रामेश्वर,………… भाई तुम फटाफट रोटियां तंदूर में लगा दो मैं जरा बाथरूम से अभी आता हूं।

रामेश्वर भी तेजी- तेजी हाथ चलाने लगा, क्योंकि आर्डर की लाइन लगी थी। एक तो तेज बुखार और 2 दिन से कुछ ना खाने की वजह से उसे अचानक से सिर में जोर से चक्कर आ गया, और वह तंदूर पर रोटियां लगाते लगाते गिर पड़ा। उसे इस तरह गिरा देखकर वहां काम कर रहे, और लोग उसकी मदद के लिए दौड़े। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।

यमराज तंदूर का रूप धारण कर उसके प्राणों का हरण कर चुके थे। चारों तरफ अचानक से डर और अफरा-तफरी का माहौल हो गया। सेठ जी ने तुरंत पुलिस और एंबुलेंस को खबर की, और रामेश्वर को अस्पताल ले गए।

लेकिन अब उससे कोई फायदा नहीं, क्योंकि रामेश्वर तो पहले ही अपने प्राण गवा चुका था। अपनी सारी परेशानियों और कष्टों से मुक्त होकर वह इस संसार से विदा ले चुका था। लेकिन वहां झुग्गी में उसका भूखा परिवार उसके आने की राह देख रहा था।


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आँचल बृजेश मौर्य चाय के पल की संस्थापक के साथ-साथ इस वेबसाइट की प्रमुख लेखिका भी है। उन्होंने ललित कला (फाइन आर्ट्स – Fine Arts) में स्नातक, संगीत में डिप्लोमा किया है और एलएलबी की छात्रा (Student of LLB) है।ललित कला (फाइन आर्ट्स) प्रैक्टिस और अपनी पढ़ाई के साथ साथ, आंचल बृजेश मौर्य विभिन्न विषयों जैसे महिला सशक्तिकरण, भारतीय संविधान, कानूनों और विनियमों इत्यादि पर ब्लॉग लिखती हैं। इसके अलावा उनकी रुचि स्वरचित कहानियां, कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां इत्यादि लिखने में है।

1 Comment on “दिहाड़ी मजदूर। Daily Wage Worker Story in Hindi: The Cost of Survival

  1. बहुत ही मार्मिक एवं हृदय विदारक व्यथा से परिपूर्ण कथा है एक मजदूर की ।दुःखद

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