छत्रपति शिवाजी महाराज। Chhatrapati Shivaji Maharaj: Architect of Maratha sovereignty  

छत्रपति शिवाजी महाराज। Chhatrapati Shivaji Maharaj: Architect of Maratha sovereignty  

भारतीय इतिहास में एक महान व्यक्तित्व छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) को मराठा संप्रभुता के वास्तुकार और विदेशी प्रभुत्व के खिलाफ प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। उनका जीवन वीरता, रणनीतिक प्रतिभा और न्याय से चिह्नित था।

 इस लेख में, हम छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) के प्रारंभिक वर्षों से लेकर एक महान योद्धा और राजनेता के रूप में उनकी स्थायी विरासत तक, के बारे में विस्तार से प्रकाश डालेंगे।

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छत्रपति शिवाजी महाराज: मराठा संप्रभुता के वास्तुकारChhatrapati Shivaji Maharaj: Architect of Maratha sovereignty

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भारतीय इतिहास में, महान मराठा योद्धा और राजनेता छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) का जीवन वीरता, लचीलेपन और अदम्य भावना की एक गाथा है, जो पीढ़ियों को प्रेरित करती रहती है।

 इस लेख में, हम छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) के जीवन के हर पहलू पर प्रकाश डालेंगे, उनके प्रारंभिक वर्षों से लेकर मराठा संप्रभुता के वास्तुकार और भारतीय वीरता के प्रतीक के रूप में उनकी स्थायी विरासत तक।

प्रारंभिक जीवन (Early Life):

छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) का जन्म 19 फरवरी, 1630 को पुणे के पास शिवनेरी के पहाड़ी किले में शाहजी भोसले और जीजाबाई के यहाँ हुआ था। शिवाजी के पिता शाहजी एक सेनापति के रूप में एक त्रिपक्षीय संघ -(बीजापुर, अहमदनगर और गोलकुंडा) की सेवा में थे।

 पुणे के निकट उनके पास एक जागीरदारी थी। जीजाबाई सिंदखेड नेता लखुजीराव जाधव की बेटी थीं,और बहुत धार्मिक महिला थी।चूंकि शाहजी ने अपना अधिकांश समय पुणे के बाहर बिताया, इसलिए शिवाजी अपनी माँ के करीब थे।

 छोटी उम्र से ही उन्होंने साहस, नेतृत्व और न्याय की गहरी भावना के गुण प्रदर्शित किए, जो उनकी मां जीजाबाई ने उनमें पैदा किए थे।शिवाजी की शिक्षा की देखरेख की जिम्मेदारी पेशवा (शामराव नीलकंठ)शिक्षक (दादोजी कोंडदेव)की थी।

 विदेशी आक्रमणों और राजनीतिक अस्थिरता से चिह्नित भारतीय इतिहास के उथल-पुथल भरे दौर में पले-बढ़े शिवाजी महाराज को एक राजकुमार के अनुरूप पारंपरिक परवरिश मिली। उनकी मां जीजाबाई ने उनके चरित्र को आकार देने, उनमें साहस, धार्मिकता और अपने लोगों के प्रति समर्पण के मूल्यों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

वैवाहिक जीवन (Married Life):

शिवाजी महाराज ने 1640 में साईबाई से शादी की, इस विवाह के बाद 1656 में सोयराबाई के साथ उनका विवाह हुआ, जिससे उनकी राजनीतिक स्थिति और मजबूत हुई और संप्रभुता की उनकी खोज में अमूल्य समर्थन मिला।

 शिवाजी की शादी रणनीतिक गठबंधन थी जिसका उद्देश्य उनकी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करना और क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार करना था। अपने राजनीतिक विवाहों के बावजूद, शिवाजी महाराज ने अपनी पत्नियों के प्रति गहरा स्नेह और सम्मान बनाए रखा, अपने सैन्य और प्रशासनिक कर्तव्यों के साथ-साथ एक सामंजस्यपूर्ण पारिवारिक जीवन को बढ़ावा दिया।

 स्वतंत्र साम्राज्य और राज्य का विस्तार (Independent Empire And State Expansion):

शिवाजी महाराज ने अपनी संप्रभुता का विस्तार करने के लिए एक निरंतर अभियान शुरू किया, उन्होंने धीरे-धीरे बीजापुर के आदिल शाही सल्तनत और मुगल साम्राज्य के किलों और क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। उनकी रणनीतिक प्रतिभा और गुरिल्ला युद्ध रणनीति ने उन्हें व्यापक प्रशंसा और सम्मान दिलाया।

कुछ इतिहासकारों का मानना है, कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने ही भारत में पहली बार गोरिल्ला युद्ध रणनीति का अभ्यास किया। अपने शासनकाल के शुरुआती दिनों से, शिवाजी महाराज ने मराठा शक्ति को मजबूत करने और पश्चिमी भारत में एक संप्रभु राज्य स्थापित करने की शुरुआत की।

 सैन्य अभियानों ,रणनीति और राजनितिक गठबंधनों की एक श्रृंखला के माध्यम से, उन्होंने धीरे-धीरे दक्कन के खंडित क्षेत्रों पर अपनी संप्रभुता स्थापित की, बीजापुर के आदिल शाही सल्तनत और मुगल साम्राज्य से किलों और क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया।

शिवाजी ने पुणे के आसपास बीजापुर सल्तनत के कई क्षेत्र पर अपनी विजय हासिल की जैसे की तोरणा,चाकन,कोंडाना,साथ ही सिंहगढ़ और पुरंदर। इस सफलता के बाद वह मोहम्मद आदिल शाह के लिए एक खतरा बनकर थे,1648 में आदिल शाह ने शाह जी को कैद कर लिया और उन्हें इस शर्त पर रिहा किया गया कि शिवाजी राज्य का विस्तार नहीं करेंगे।

 1665 में शाहजी की मृत्यु के बाद शिवाजी ने अपनी विजय यात्रा फिर से प्रारंभ की जिसमें उन्होंने बीजापुरी, जावली की घाटी हासिल की। आदिल शाह शिवाजी के इस विजय यात्रा से काफी चिंतित था। उसने शिवाजी को वश में करने के लिए अपने एक शक्तिशाली सेनापति अफ़ज़ल खान को भेजा।

अफ़ज़ल खान ने शिवाजी को मिलने के लिए बुलाया अफजल खान के निमंत्रण से शिवाजी ने अनुमान लगा लिया था, कि यह एक जाल है। जिसके लिए शिवाजी पहले से ही तैयार होकर आए थे। अफजल खान ने उन पर हमला किया। शिवाजी इस हमले के लिए पहले से ही तैयार थे, इसलिए उन्होंने अफ़ज़ल खान पर बाघ के पंजे से हमला किया,जो वह पहले से ही पहन कर आये थे,जिसमे अफज़ल खान गंभीर रूप से घायल हो गया और उसकी सेना नेतृत्वविहीन हो गयी।

 शिवाजी ने अपनी सेना को नेतृत्वहीन बीजापुर टुकड़ियों पर हमला करने का आदेश दिया।जहाँ मराठा सेना द्वारा लगभग 3000 बीजापुरी सैनिक मारे गए थे।

इस हार के बाद मुहम्मद आदिलशाह ने जनरल रुस्तम ज़मान के नेतृत्व में एक बड़ी सेना भेजी। कोल्हापुर की इस लड़ाई में जनरल रुस्तम ज़मान को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा।

 मोहम्मद आदिल शाह ने हार नहीं मानी और फिर से उसने अपने सेनापति सिद्दी जौहर को बड़ा सैन्य बल के साथ भेजा।

 सिद्दी जौहर ने पन्हाला के किले की सफलतापूर्वक घेराबंदी की, इसके पश्चात उसे जीत हासिल हुई बाद में 1673 में शिवाजी ने पन्हाल के किले पर फिर से कब्ज़ा कर लिया। 

मुगल साम्राज्य में शिवाजी का उदय (Rise of Shivaji in the Mughal Empire): 

16वीं शताब्दी तक, भारत का अधिकांश दक्कन क्षेत्र में मुगल साम्राज्य स्थापित हो चुका था।मुगल साम्राज्य के साथ शिवाजी महाराज का संघर्ष 1659 में पुणे में मुगल चौकी पर उनके साहसी हमले के साथ शुरू हुआ।

 इस मुठभेड़ ने शिवाजी महाराज और मुगल सम्राट औरंगजेब के बीच एक लंबे संघर्ष की शुरुआत को चिह्नित किया, जो मराठा शासक को अपने अधीन कर अपना राज्य विस्तार करने की कोशिश कर रहा था।

शिवाजी के सेनापतियों ने मुगल क्षेत्रों पर हमला किया और लूटपाट की।दिल्ली में उत्तराधिकार की लड़ाई के कारण औरंगजेब विफल रहा।

 औरंगजेब ने दक्षिण के शाइस्ता खान को शिवाजी पर हमला करने का निर्देश दिया। शाइस्ता खान ने शिवाजी पर बड़े सैन्य बल के साथ हमला किया और उनके नियंत्रण वाले कई किलों और यहां तक ​​कि उनकी राजधानी पूना पर भी कब्जा कर लिया।

शिवाजी ने शाइस्ता खान पर गुप्त हमला किया,और शाइस्ता खान को हराकर पूना पर पुनः कब्जा कर लिया। बाद में शाइस्ता खान ने शिवाजी पर कई हमले किये जिसकी वजह से,कोंकण क्षेत्र में किलों पर शिवाजी की पकड़ कम हो गई।

औरंगजेब ने मुगल साम्राज्य को मजबूत करने और अपने सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए शिवाजी को आगरा में आमंत्रित किया

 शिवाजी अपने पुत्र संभाजी के साथ आगरा गए, और औरंगजेब द्वारा उनके साथ किए गए व्यवहार से आहत हुए।

औरंगजेब ने शिवाजी और उनके पुत्र को वहां भवन में कैद कर लिया। कारावास से बचने के लिए शिवाजी ने अपनी बुद्धि और चालाकी का इस्तेमाल किया मंदिर में,प्रसाद के रूप में भेजी जाने वाली मिठाइयों की टोकरियों की व्यवस्था की और उन्हीं टोकरियों में छिपकर 17 अगस्त, 1666 को वहां से फरार हो गए।

मुगलों के साथ संघर्ष 1665 में पुरंदर की घेराबंदी के साथ अपने चरम पर पहुंच गया, जहां शिवाजी महाराज को पुरंदर की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर होना पड़ा, और कई किले मुगलों को सौंप दिए।

 हालाँकि, उन्होंने जल्द ही मुगल शासन के खिलाफ अपना प्रतिरोध फिर से शुरू कर दिया, जिससे कई लड़ाइयाँ की एक श्रृंखला शुरू हुई । सैन्य असफलताओं का सामना करने के बावजूद, शिवाजी महाराज संप्रभुता की अपनी खोज में अविचल रहे और क्षेत्र में मुगल प्रभुत्व को चुनौती देते रहे। 

राज्याभिषेक (Coronation:)

शिवाजी ने दक्षिण में पहली हिंदू संप्रभुता स्थापित करने का फैसला किया, जिस पर अब तक मुसलमानों का प्रभुत्व था। 6 जून 1674 में, रायगढ़ किले में आयोजित एक भव्य राज्याभिषेक समारोह में शिवाजी महाराज को मराठा साम्राज्य के छत्रपति के रूप में ताज पहनाया गया था।

 इस राज्याभिषेक ने एक स्वतंत्र मराठा साम्राज्य की स्थापना करने और एक संप्रभु शासक के रूप में अपने अधिकार का दावा करने के उनके प्रयासों को चिन्हित किया। इस कार्यक्रम में साम्राज्य भर के रईसों, गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया, जो उनके नेतृत्व में मराठा राज्य की एकता और ताकत का प्रतीक था।

दक्षिण में मराठा साम्राज्य का विस्तार (Expansion of Maratha Empire in the South):

दक्कन क्षेत्र में शिवाजी महाराज के सैन्य अभियानों को कई जीतों द्वारा चिह्नित किया गया था, जिसमें राजनीतिक किलों और क्षेत्रों पर कब्जा भी शामिल था।उनका उद्देश्य हिंदू शासन के तहत दक्कन राज्यों को एकजुट करना और मुसलमानों और मुगलों जैसे बाहरी लोगों से देश की रक्षा करना था।

 शिवाजी ने अपने सौतेले भाई वेंकोजी के साथ भी समझौता किया ताकि उनकी तंजावुर और मैसूर पर पकड़ मजबूत बनी रहे।

शिवाजी ने आदिल शाही शासकों द्वारा नियंत्रित वेल्लोर और आसपास के अन्य क्षेत्रों जैसे (खानदेश, बीजापुर, कारवार, कोलकापुर, जंजीरा, रामनगर और बेलगाम) पर कब्जा कर लिया।

 उनकी विस्तारवादी नीतियों ने दक्षिणी भारत में मराठा साम्राज्य के प्रभुत्व की नींव रखी, मुगल साम्राज्य के आधिपत्य को चुनौती दी और पूरे उपमहाद्वीप में मराठा प्रभाव स्थापित किया। दक्षिण में उनकी जीत ने एक दुर्जेय सैन्य नेता के रूप में उनकी प्रतिष्ठा को मजबूत किया और मराठा राज्य की ताकत को और बढ़ा दिया।

शिवाजी और ब्रिटिश शासन काल (Shivaji And British Rule):

शिवाजी महाराज का ब्रिटिश शासन से सीधा संबंध नहीं था, क्योंकि यह उनके समय के बाद उभरा।छत्रपति शिवाजी महाराज 17वीं शताब्दी में थे,जबकि भारत में ब्रिटिश शासन 18वीं शताब्दी में शुरू हुआ।शिवाजी द्वारा स्थापित साम्राज्य मराठों ने उनके शासनकाल के बाद के वर्षों में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ बातचीत की।

18वीं शताब्दी के दौरान, मराठों और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच क्षेत्रीय संघर्ष और गठबंधन दोनों थे। मराठा भारत में एक प्रमुख शक्ति थे, और वे उपमहाद्वीप में बढ़ते ब्रिटिश प्रभाव के संपर्क में आये।

1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई में जहां मराठों ने कुछ ब्रिटिश सहायता से दुर्रानी साम्राज्य (अहमद शाह दुर्रानी के नेतृत्व में) के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।

 ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने हितों की रक्षा करने और क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने के लिए मराठों सहित विभिन्न भारतीय शक्तियों के साथ गठबंधन किया था। 

जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा, मराठों और अंग्रेजों के बीच संबंध और अधिक जटिल होते गए। सहयोग और संघर्ष के उदाहरण थे, और दोनों शक्तियां अक्सर कूटनीतिक युद्धाभ्यास और सत्ता संघर्ष में लगी रहती थीं।

एंग्लो-मराठा युद्ध (1775 में प्रथम एंग्लो-मराठा युद्ध से शुरू) ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठों के बीच संघर्षों की एक श्रृंखला को चिह्नित किया। इन युद्धों की विशेषता बदलते गठबंधन और क्षेत्रीय विवाद थे। अंग्रेजों ने धीरे-धीरे बढ़त हासिल कर ली और तीसरे आंग्ल-मराठा युद्ध (1817-1818) के परिणामस्वरूप मराठों की हार हुई और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया।

मृत्यु और उत्तराधिकार (Death And Succession):

3 अप्रैल, 1680 को वीरता और दूरदर्शी नेतृत्व की विरासत छोड़कर छत्रपति शिवाजी महाराज का निधन हो गया। उनके पुत्र संभाजी महाराज उनके उत्तराधिकारी बने, जिन्होंने विदेशी शक्तियों के खिलाफ प्रतिरोध और मराठा संप्रभुता को मजबूत करने की अपने पिता की विरासत को जारी रखा।

 असामयिक निधन के बावजूद, शिवाजी महाराज का प्रभाव कायम रहा, जिसने आने वाली पीढ़ियों के लिए भारतीय इतिहास की दिशा तय की।

शासनकाल और व्यक्तित्व (Reign And Personality):

शिवाजी महाराज के शासन की विशेषता प्रशासनिक सुधार, धार्मिक सहिष्णुता और अपनी प्रजा के अधिकारों की सुरक्षा थी। शिवाजी ने अपने दरबार में मराठी और संस्कृत के उपयोग को सख्ती से बढ़ावा दिया।उन्होंने मराठा राज्य की समृद्धि की नींव रखते हुए कृषि, व्यापार और बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रगतिशील नीतियां लागू की।

अपने शासन में महिलाओं की स्वतंत्रता को प्रोत्साहित किया। वह जातिगत भेदभाव के सख्त खिलाफ थे और अपने दरबार में सभी जाति के लोगों को नियुक्त करते थे। अपनी सैन्य क्षमता के बावजूद, शिवाजी महाराज अपनी विनम्रता, करुणा और अपने लोगों के कल्याण के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे।

 उन्होंने जाति और धार्मिक बाधाओं को पार करते हुए अपनी प्रजा के बीच एकता और सौहार्द की भावना को बढ़ावा दिया। उनके व्यक्तित्व में साहस, बुद्धिमत्ता और व्यावहारिकता का अनोखा मिश्रण था, जिससे उन्हें सहयोगियों और विरोधियों दोनों से सम्मान और प्रशंसा मिली।

छत्रपति शिवाजी महाराज की राजकीय चिन्ह (शाही मुहर), जो शेर और तलवार के प्रतीक से सुशोभित है, उनके अधिकार और संप्रभुता का प्रतीक है। यह मराठा शक्ति और विदेशी प्रभुत्व के खिलाफ प्रतिरोध के एक शक्तिशाली प्रतीक के रूप में कार्य करता था, जो उनकी प्रजा के बीच वफादारी और वफादारी को प्रेरित करता था। यह मुहर शिवाजी महाराज की अदम्य भावना और मराठा साम्राज्य की गरिमा और संप्रभुता को बनाए रखने के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता का प्रतिबिंब थी।

शिवाजी ने एक मजबूत सैन्य बल बनाए रखा, अपनी सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए कोंकण और गोवा तटों पर एक मजबूत नौसैनिक विकसित की। उन्हें न केवल एक सैन्य नेता के रूप में बल्कि एक उदार शासक के रूप में भी सम्मान दिया जाता था, जो अपनी प्रजा की भलाई को सबसे पहले प्राथमिकता देता था।

प्रमुख तिथियां एवं घटनाएं(Important Dates And Events):

19 फरवरी, 1630: छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म।

1640: सईबाई निम्बालकर से विवाह।

1656: सोयराबाई से विवाह।

1659: पुणे में मुगल छावनी पर हमला।

1674: मराठा साम्राज्य के छत्रपति के रूप में राज्याभिषेक।

3 अप्रैल, 1680: छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु।

निष्कर्ष (Conclusion):

छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन और विरासत लचीलेपन, साहस और दूरदर्शी नेतृत्व की भावना का प्रतीक है। एक युवा राजकुमार से एक शक्तिशाली साम्राज्य के संस्थापक तक की उनकी उल्लेखनीय यात्रा उनकी अदम्य इच्छाशक्ति और अपने लोगों के कल्याण के प्रति अटूट प्रतिबद्धता का प्रमाण है। अपने सैन्य अभियानों, प्रशासनिक सुधारों और व्यक्तिगत उदाहरण के माध्यम से, शिवाजी महाराज ने भारतीय इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ी, जिससे आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा मिली।

उनकी विरासत उन सभी के लिए मार्गदर्शक के रूप में कार्य करती है जो निष्पक्षता, समावेशिता और गरिमा के सिद्धांतों पर आधारित समाज के लिए प्रयास करते हैं। हम उन आदर्शों को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हों जिनके लिए उन्होंने अथक संघर्ष किया, यह सुनिश्चित करते हुए कि एक न्यायपूर्ण और संप्रभु समाज का उनका दृष्टिकोण आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवित रहे।

छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन और विरासत आज भी लाखों भारतीयों को प्रेरित करती है। एक स्वतंत्र मराठा साम्राज्य के लिए उनका साहस, नेतृत्व और दृष्टिकोण भारतीय इतिहास में अंकित है, जो भावी पीढ़ियों के लिए आशा और प्रेरणा की किरण के रूप में काम कर रहा है।

शिवाजी महाराज की विरासत महाराष्ट्र की सीमाओं से कहीं आगे तक फैली हुई है, जो भारतीय इतिहास की दिशा को प्रभावित करती है और स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय के लिए प्रेरक आंदोलनों को प्रभावित करती है। धार्मिक सहिष्णुता, न्यायपूर्ण शासन और आम लोगों के सशक्तिकरण पर उनके जोर ने एक मजबूत और एकीकृत मराठा साम्राज्य के उद्भव के लिए आधार तैयार किया।

शक्तिशाली मुगल साम्राज्य सहित दुर्जेय विरोधियों का सामना करने के बावजूद, शिवाजी महाराज की सैन्य प्रतिभा और अटूट दृढ़ संकल्प ने उन्हें भारत के मध्य में एक स्वतंत्र राज्य बनाने में सक्षम बनाया। मुगलों के साथ उनकी मुठभेड़, चुनौतीपूर्ण थी, उन्होंने लचीलेपन और रणनीतिक कौशल का प्रदर्शन किया, जिससे उन्हें सहयोगियों और दुश्मनों दोनों के बीच सम्मान मिला।

शिवाजी महाराज की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक 1674 में मराठा साम्राज्य के छत्रपति के रूप में उनका राज्याभिषेक था। इस महत्वपूर्ण घटना ने संप्रभुता के लिए उनके आजीवन संघर्ष को चिह्नित किया और अपने लोगों के बीच में उनकी स्थिति को मजबूत किया।

1680 में उनके निधन के बाद, शिवाजी महाराज के पुत्र,संभाजी महाराज, सिंहासन पर बैठे, उन्हें अपने पिता की साहस और लचीलेपन की विरासत, विरासत में मिली। संभाजी महाराज के नेतृत्व में, मराठा साम्राज्य लगातार फलता-फूलता रहा और पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में अपना प्रभाव बढ़ाता रहा।

छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन वीरता, ज्ञान और दूरदर्शी नेतृत्व की गाथा है। अपनी विनम्र शुरुआत से लेकर एक संप्रभु शासक के रूप में उनके राज्याभिषेक तक, शिवाजी महाराज की यात्रा विपरीत परिस्थितियों में लचीलेपन और दृढ़ संकल्प की शक्ति का एक प्रमाण है।छत्रपति शिवाजी महाराज को भारतीय वीरता और संप्रभुता के सच्चे प्रतीक के रूप में सदैव याद किया जाएगा।


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आँचल बृजेश मौर्य चाय के पल की संस्थापक के साथ-साथ इस वेबसाइट की प्रमुख लेखिका भी है। उन्होंने ललित कला (फाइन आर्ट्स – Fine Arts) में स्नातक, संगीत में डिप्लोमा किया है और एलएलबी की छात्रा (Student of LLB) है।ललित कला (फाइन आर्ट्स) प्रैक्टिस और अपनी पढ़ाई के साथ साथ, आंचल बृजेश मौर्य विभिन्न विषयों जैसे महिला सशक्तिकरण, भारतीय संविधान, कानूनों और विनियमों इत्यादि पर ब्लॉग लिखती हैं। इसके अलावा उनकी रुचि स्वरचित कहानियां, कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां इत्यादि लिखने में है।

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